पापमोचनी एकादशी पर इस विधि से करें मां तुलसी की पूजा

पापमोचनी एकादशी अपने आप में बहुत महत्व रखती है। यह दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस साल यह चैत्र महीने में 25 मार्च (Papmochani Ekadashi 2025 Tulsi Puja Vidhi) को मनाई जाएगी। इस दिन व्रत रखने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। साथ ही जीवन में शुभता आती है। वहीं इस दिन तुलसी पूजन का भी खास महत्व है।

हिंदुओं में पापमोचनी एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इसे सबसे पवित्र एकादशी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसमें भक्तों के पापों को दूर करने की शक्ति होती है। पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi 2025) का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। पापमोचनी एकादशी होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के बीच मनाई जाती है, जब यह व्रत इतना खास होता है, तो चलिए इसे और भी ज्यादा फलदायी बनाने के लिए इस तिथि पर तुलसी पूजा कैसी करनी चाहिए? आइए यहां पर जानते हैं।

पापमोचनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त (Papmochani Ekadashi 2025 Shubh Muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 मार्च को सुबह 05 बजकर 05 मिनट पर शुरु होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 26 मार्च को देर रात 03 बजकर 45 मिनट पर होगा। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए 25 मार्च को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा।

पापमोचनी एकादशी पर ऐसे करें मां तुलसी की पूजा (Papmochani Ekadashi 2025 Tulsi Puja Vidhi)
सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करें।
पूजा घर की सफाई अच्छी तरह से करें।
इसके बाद तुलसी जी और भगवान विष्णु को एक साथ विराजमान करें और विधिपूर्वक पूजा करें।
मां तुलसी के सामने घी का दीपक जलाएं।
उन्हें कुमकुम अर्पित करें।
16 शृंगार की सामग्री चढ़ाएं।
आंटे के हलवे और ऋतु फल का भोग लगाएं।
तुलसी जी की 11 या 21 बार परिक्रमा करें।
इसके बाद तुलसी चालीसा व कवच का पाठ करें।
अंत में भव्य आरती करें।
शंखनाद करें।
पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगे।
तामसिक चीजों से परहेज करें।
पूजा में पवित्रता का खास ख्याल रखें।

तुलसी पूजा मंत्र ( Tulsi Puja Mantra)
वृंदा देवी-अष्टक: गाङ्गेयचाम्पेयतडिद्विनिन्दिरोचिःप्रवाहस्नपितात्मवृन्दे ।
बन्धूकबन्धुद्युतिदिव्यवासोवृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥
ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ॥
समस्तवैकुण्ठशिरोमणौ श्रीकृष्णस्य वृन्दावनधन्यधामिन् ।
दत्ताधिकारे वृषभानुपुत्र्या वृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥

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