आर्थिक तंगी से हैं परेशान, तो शुक्रवार के दिन इस स्तोत्र का करें पाठ

शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित है। अगर आप धन की देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें। इसके बाद देवी की विधि अनुसार पूजा करें ज्योतिष शास्त्र में लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ बेहद फलदायी माना गया है। ऐसे में लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ जरूर करें।

माता लक्ष्मी को धन की स्वामिनी कहा गया है। ऐसा कहा जाता है कि देवी अगर किसी पर भी प्रसन्न हो जाए, तो उसके जीवन में धन-धान्य और वैभव की कभी कमी नहीं होती है। शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित है। अगर आप धन की देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें। इसके बाद देवी की विधि अनुसार पूजा करें।

ज्योतिष शास्त्र में लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ बेहद फलदायी माना गया है। ऐसे में लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ जरूर करें। अंत में घी के दीये से मां लक्ष्मी के पूजन का समापन करें।

॥लक्ष्मी स्तोत्र॥

‘इन्द्र उवाच’

”ऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम: ।

कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नम: ॥॥

पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम: ।

पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नम: ॥॥

सर्वसम्पत्स्वरूपायै सर्वदात्र्यै नमो नम: ।

सुखदायै मोक्षदायै सिद्धिदायै नमो नम: ॥॥

हरिभक्तिप्रदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नम: ।

कृष्णवक्ष:स्थितायै च कृष्णेशायै नमो नम: ॥॥

कृष्णशोभास्वरूपायै रत्नपद्मे च शोभने ।

सम्पत्त्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नम: ॥॥

शस्याधिष्ठातृदेव्यै च शस्यायै च नमो नम: ।

नमो बुद्धिस्वरूपायै बुद्धिदायै नमो नम: ॥॥

वैकुण्ठे या महालक्ष्मीर्लक्ष्मी: क्षीरोदसागरे ।

स्वर्गलक्ष्मीरिन्द्रगेहे राजलक्ष्मीर्नृपालये ॥॥

गृहलक्ष्मीश्च गृहिणां गेहे च गृहदेवता ।

सुरभी सा गवां माता दक्षिणा यज्ञकामिनी ॥॥

अदितिर्देवमाता त्वं कमला कमलालये ।

स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्यदाने स्वधा स्मृता ॥॥

त्वं हि विष्णुस्वरूपा च सर्वाधारा वसुन्धरा ।

शुद्धसत्त्वस्वरूपा त्वं नारायणपरायणा ॥1॥

क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा च शुभानना ।

परमार्थप्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा ॥11॥

यया विना जगत् सर्वं भस्मीभूतमसारकम् ।

जीवन्मृतं च विश्वं च शवतुल्यं यया विना ॥1॥

सर्वेषां च परा त्वं हि सर्वबान्धवरूपिणी ।

यया विना न सम्भाष्यो बान्धवैर्बान्धव: सदा ॥॥

त्वया हीनो बन्धुहीनस्त्वया युक्त: सबान्धव: ।

धर्मार्थकाममोक्षाणां त्वं च कारणरूपिणी ॥॥

यथा माता स्तनन्धानां शिशूनां शैशवे सदा ।

तथा त्वं सर्वदा माता सर्वेषां सर्वरूपत: ॥॥

मातृहीन: स्तनत्यक्त: स चेज्जीवति दैवत: ।

त्वया हीनो जन: कोsपि न जीवत्येव निश्चितम् ॥॥

सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके ।

वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्यं सनातनि ॥॥

वयं यावत् त्वया हीना बन्धुहीनाश्च भिक्षुका: ।

सर्वसम्पद्विहीनाश्च तावदेव हरिप्रिये ॥॥

राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि ।

कीर्तिं देहि धनं देहि यशो मह्यं च देहि वै ॥॥

कामं देहि मतिं देहि भोगान् देहि हरिप्रिये ।

ज्ञानं देहि च धर्मं च सर्वसौभाग्यमीप्सितम् ॥॥

प्रभावं च प्रतापं च सर्वाधिकारमेव च ।

जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च” ॥॥

॥फलश्रुति:॥

”इदं स्तोत्रं महापुण्यं त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।

कुबेरतुल्य: स भवेद् राजराजेश्वरो महान् ॥

सिद्धस्तोत्रं यदि पठेत् सोsपि कल्पतरुर्नर: ।

पंचलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥

सिद्धिस्तोत्रं यदि पठेन्मासमेकं च संयत: ।

महासुखी च राजेन्द्रो भविष्यति न संशय:” ॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे इन्द्रकृतं लक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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