भगवान विश्वकर्मा की पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ

देशभर में विश्वकर्मा जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। आज के दिन अनंत चतुर्दशी और भाद्रपद पूर्णिमा भी है। इस शुभ अवसर पर शिल्पकार विश्वकर्मा जी की भक्ति भाव से पूजा की रही है। सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिमा स्थापित कर भगवान विश्वकर्मा की विशेष पूजा की जा रही है। धार्मिक मत है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही करियर और कारोबार को नया आयाम मिलता है। इससे धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो आज भगवान विश्वकर्मा की पूजा के समय मंगलकारी श्रीविश्वकर्मा अष्टकम और विश्वकर्मा स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

विश्वकर्मा स्तोत्र

आदिरूप नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं पितामह ।

विराटाख्य नमस्तुभ्यं विश्वकर्मन्नमोनमः ॥

आकृतिकल्पनानाथस्त्रिनेत्री ज्ञाननायकः ।

सर्वसिद्धिप्रदाता त्वं विश्वकर्मन्नमोनमः ॥

पुस्तकं ज्ञानसूत्रं च कम्बी सूत्रं कमण्डलुम् ।

धृत्वा संमोहनं देव विश्वकर्मन्नमोनमः ॥

विश्वात्मा भूतरूपेण नानाकष्टसंहारक ।

तारकानादिसंहाराद्विश्वकर्मन्नमोनमः ॥

ब्रह्माण्डाखिलदेवानां स्थानं स्वर्भूतलं तलम् ।

लीलया रचितं येन विश्वरूपाय ते नमः ॥

विश्वव्यापिन्नमस्तुभ्यं त्र्यम्बकं हंसवाहनम् ।

सर्वक्षेत्रनिवासाख्यं विश्वकर्मन्नमोनमः ॥

निराभासाय नित्याय सत्यज्ञानान्तरात्मने ।

विशुद्धाय विदूराय विश्वकर्मन्नमोनमः ॥

नमो वेदान्तवेद्याय वेदमूलनिवासिने ।

नमो विविक्तचेष्टाय विश्वकर्मन्नमोनमः ॥

यो नरः पठते नित्यं विश्वकर्माष्टकमिदम् ।

धनं धर्मं च पुत्रश्च लभेदान्ते परां गतिम् ॥

श्रीविश्वकर्मा अष्टकम

निरञ्जनो निराकारः निर्विकल्पो मनोहरः ।

निरामयो निजानन्दः निर्विघ्नाय नमो नमः ॥

अनादिरप्रमेयश्च अरूपश्च जयाजयः ।

लोकरूपो जगन्नाथः विश्वकर्मन्नमो नमः ॥

नमो विश्वविहाराय नमो विश्वविहारिणे ।

नमो विश्वविधाताय नमस्ते विश्वकर्मणे ॥

नमस्ते विश्वरूपाय विश्वभूताय ते नमः ।

नमो विश्वात्मभूथात्मन् विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥

विश्वायुर्विश्वकर्मा च विश्वमूर्तिः परात्परः ।

विश्वनाथः पिता चैव विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥

विश्वमङ्गलमाङ्गल्यः विश्वविद्याविनोदितः ।

विश्वसञ्चारशाली च विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥

विश्वैकविधवृक्षश्च विश्वशाखा महाविधः ।

शाखोपशाखाश्च तथा तद्वृक्षो विश्वकर्मणः ॥

तद्वृक्षः फलसम्पूर्णः अक्षोभ्यश्च परात्परः ।

अनुपमानो ब्रह्माण्डः बीजमोङ्कारमेव च ॥

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