मासिक दुर्गाष्टमी पर करें व्यास जी कृत भगवती स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात

हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी मनाई जाती है। तदनुसार, मार्गशीर्ष महीने में 20 दिसंबर को मासिक दुर्गाष्टमी है। इस दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही मां दुर्गा के निमित्त व्रत रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में मां दुर्गा की महिमा का वर्णन विस्तार पूर्वक किया गया है। ममतामयी मां दुर्गा बेहद दयालु और कृपालु है। मां दुर्गा अपने भक्तों का उद्धार करती हैं और उनके दुखों को हरती हैं। वहीं, दुष्टों का संहार करती हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से मां दुर्गा की उपासना करते हैं। अगर आप भी जगत जननी मां दुर्गा की कृपा पाना चाहते हैं, तो मासिक दुर्गाष्टमी पर विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय व्यास जी कृत दुर्गा स्त्रोत का पाठ करें।
जय भगवति देवि नमो वरदे,
जय पापविनाशिनि बहुफलदे ।।
जय शुम्भनिशुम्भ कपालधरे,
प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ।।
जय चन्द्रदिवाकर नेत्रधरे,
जय पावकभूषित वक्त्रवरे ।
जय भैरवदेहनिलीन परे,
जय अन्धकदैत्य विशोषकरे ।।
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे,
जय लोकसमस्तक पापहरे ।
जय देवि पितामह विष्णुनते,
जय भास्कर शक्र शिरोऽवनते ।।
जय षण्मुख सायुध ईशनुते,
जय सागरगामिनि शम्भुनुते ।
जय दु:खदरिद्र विनाश करे,
जय पुत्रकलत्र विवृद्धि करे ।।
जय देवि समस्त शरीर धरे,
जय नाकविदर्शिति दु:ख हरे ।
जय व्याधि विनाशिनि मोक्ष करे,
जय वांछितदायिनि सिद्धि वरे ।।
एतद् व्यासकृतं स्तोत्रं,
य: पठेन्नियत: शुचि: ।
गृहे वा शुद्ध भावेन,
प्रीता भगवती सदा ।।
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणी का त्वदन्या,
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयंबके गौरि नारायणि नमोस्तु ते।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपराणये।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते।
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा,
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां,
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।
सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।