सुप्रीम कोर्ट ने ऑड-ईवन को कहा अवैज्ञानिक, दिल्ली में प्रदूषण रोकने में इसका असर क्या?

दिल्ली में प्रदूषण मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस संजय किशन कौल ने ऑड-ईवन को अवैज्ञानिक करार दिया। जस्टिस कौल ने दिल्ली सरकार से कहा, ‘यह सब सिर्फ दिखाने के लिए है।’
दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में प्रदूषण से स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। मंगलवार को भी दिल्ली में वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में बना हुआ है। ऐसे में दिल्लीवासियों को तत्काल राहत मिलने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं।

वहीं, दूसरी तरफ राजधानी में प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन को लागू किया है। हालांकि, यह फॉर्मूला दिल्लीवासियों के लिए नया नहीं है, बल्कि वर्षों से प्रदूषण की खराब स्थिति के बीच इसे लागू किया जाता रहा है। आज प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस फॉर्मूले को लेकर सवाल किया। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस संजय किशन कौल ने ऑड-ईवन को अवैज्ञानिक करार दिया। जस्टिस कौल ने दिल्ली सरकार से कहा, ‘आप पहले भी ऑड ईवन सिस्टम ला चुके हैं, क्या यह सफल हुआ है, यह सब सिर्फ दिखाने के लिए है।’

ऐसे में हमें जानना चाहिए कि दिल्ली में लागू ऑड-ईवन क्या है? पहले कब-कब इसे लागू किया गया है? क्या पूर्व में इस फार्मूले से प्रदूषण को रोकने में मदद मिली? आइये समझते हैं…

दिल्ली में लागू ऑड-ईवन क्या है?
दिल्ली-एनसीआर में बढ़े प्रदूषण के बीच सोमवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उच्च स्तरीय बैठक की थी। बैठक में निर्णय लिया गया कि राजधानी में ऑड-ईवन लागू होगा। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने जानकारी दी कि 13 से 20 नवंबर के बीच इसे लागू किया जाएगा।

बता दें कि ऑड-ईवन यातायात नियम एक ऐसी प्रणाली है, जिसके तहत ऑड नंबर (1,3,5,7,9) पर खत्म होने वाले पंजीकरण संख्या वाले वाहनों को सप्ताह के ऑड दिनों (13, 15, 17 और 19 नवंबर) पर चलने की अनुमति होती है। ईवन नंबर (0,2,4,6,8) पर समाप्त होने वाली पंजीकरण संख्या वाले वाहनों को सप्ताह के अन्य वैकल्पिक दिनों (नवंबर 14, 16, 18 और 20) में सड़कों पर चलने की अनुमति है।

पहले कब-कब इसे लागू किया गया है?
पिछले कुछ वर्षों में साल के अंत में देश की राजधानी दिल्ली गैस चैंबर बनती रही है। ऐसे समय में दिल्लीवासियों की सांसों पर संकट आता है। राजधानी में पहली बार जनवरी 2016 में और फिर अप्रैल 2016 में अरविंद केजरीवाल वाली आप सरकार ने इस फॉर्मूले को लागू किया था। तब ऑड-ईवन वाहनों से होने वाले प्रदूषण और पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) के बढ़ते स्तर को काबू पाने के लिए क्रियान्वित किया गया था। इसके बाद 2017 और 2019 में भी दिल्ली में ऑड-ईवन नियम लागू किया गया था।

क्या इस फार्मूले से प्रदूषण को रोकने में कितनी मदद मिली?
दिल्ली में लगने वाले सम-विषम नियम को लेकर कई शोध किए जा चुके हैं। इनमें से कुछ अध्ययनों को मानें तो, फॉर्मूले का सकारात्मक असर हुआ है जबकि कुछ इसकी प्रभाविकता को नकारते हैं। शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) से जुड़े संस्थान ईपीआईसी-इंडिया ने दिल्ली में जनवरी 2016 में एक पखवाड़े के लिए पहली बार लागू हुए नियम का अध्ययन किया था।

ईपीआईसी-इंडिया के शोधकर्ताओं ने वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों से डेटा का उपयोग करके पाया कि पायलट कार्यक्रम के प्रभावी होने के घंटों के दौरान दिल्ली की हवा में सूक्ष्म कणों की सांद्रता 14-16% कम थी। वहीं, रात में जब नियम लागू नहीं था तो इसका कोई प्रभाव नहीं देखा गया। अप्रैल 2016 में जब दूसरी बार फॉर्मूले को अपनाया गया तो इसने गर्म महीने के दौरान दिल्ली की वायु गुणवत्ता को प्रभावित नहीं किया। शोधकर्ताओं ने संभावना जताई कि तापमान अधिक होने पर वातावरण में प्रदूषकों के तेजी से फैलाव के कारण असर नहीं हुआ।

सर्दियों में एक आपातकालीन उपाय
ईपीआईसी-इंडिया ने अपने शोध के निष्कर्ष में कहा कि दिल्ली में ऑड-ईवन जैसे नियम का मुख्य महत्व सर्दियों के महीनों के दौरान एक आपातकालीन उपाय के रूप में है जब कार उत्सर्जन वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने में अधिक प्रमुख भूमिका निभाता है।

प्रदूषण में कारों का योगदान महज दो फीसदी
दिल्ली में ऑड-ईवेन की प्रभाविकता को लेकर आईआईटी कानपुर ने भी एक अध्ययन किया है। अध्ययन की शुरुआत में कहा गया कि सरकार को उम्मीद होती है कि फॉर्मूले से प्रदूषण का स्तर 15 प्रतिशत कम हो जाएगा। अध्ययन में कहा गया है कि वाहन से होने वाली प्रदूषण की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत है। इस प्रदूषण में कारों का योगदान महज दो फीसदी है। धूल इसका प्रमुख कारण है क्योंकि इसकी हिस्सेदारी 38 फीसदी है। इसके अलावा, दोपहिया वाहन भी वजह हो सकते हैं क्योंकि लगभग 56 प्रतिशत प्रदूषण उनके कारण होता है। कुल मिलाकर, अध्ययन में कहा गया है कि कारों से उत्सर्जित प्रदूषक तत्व कुल प्रदूषण का दो प्रतिशत से भी कम है।

अध्ययन से पता चलता है कि उद्योगों ने 2016 में पीएम 2.5 में 30 प्रतिशत का योगदान दिया, वाहन 28 प्रतिशत के करीब थे और बायोमास का योगदान 14 प्रतिशत रहा। इस तरह से आईआईटी कानपुर के अध्ययन के मुताबिक ऑड-ईवन लागू करने से हवा की गुणवत्ता में सिर्फ एक फीसदी का सुधार होगा।

ऑड-ईवन लागू करना एक सकारात्मक कदम
वहीं, एक अन्य संस्था एक्सप्रेस ड्राइव्स का मानना है कि पहली नजर में सम-विषम नियम थोड़ा असुविधाजनक लग सकता है, लेकिन इसके कुछ अप्रत्यक्ष लाभ भी हैं। यह अधिक सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को प्रोत्साहित करेगा। यह काफी हद तक भीड़भाड़ को कम करेगा। ऑड-ईवन लागू करना एक सकारात्मक कदम नजर आता है। संस्थान का मानना है कि यह कुछ लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन चुनने के लिए मजबूर कर सकता है जो लंबे समय में फायदेमंद साबित होंगे।

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