रहस्यों से भरी है मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा…

देवी छिन्नमस्ता, दस महाविद्याओं में से छठी महाविद्या हैं। अन्य महाविद्याओं में मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां काली, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला शामिल हैं। इनका स्वरूप काफी भयावह और विकराल माना गया है। इनकी उत्पति को लेकर एक बड़ी ही विचित्र कथा मिलती है। तो चलिए जानते हैं वह कथा।

कैसा है इनका स्वरूप

देवी छिन्नमस्ता के स्वरूप की बात करें, तो उन्होंने अपने बाएं हाथ में स्वयं का ही कटा हुआ सिर लिया हुआ है। उनकी कटी हुए गर्दन से रक्त की तीन धाराएं निकल रही है। जिसमें से एक स्वयं उसके मुख में जा रही हैं और दो धाराएं उनकी दो परिचारकों के मुख में जा रही हैं। अपने दाहिने हाथ में खड्ग धारण करती हैं और वह एक मैथुनरत जोड़े पर खड़ी हुई हैं।

मिलती हैं कई कथाएं

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां पार्वती अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने गईं। तभी अचानक उनकी दो सखियों को बहुत तेज भूख और प्यास लगने लगी। भूख व प्यास से उनका उनका हाल, बेहाल हो गया और उनका चेहरा सफेद से काला पड़ने लगा। जब दोनों को भोजन हेतु कुछ नहीं मिला, तो दोनों सखी मां पार्वती से तत्काल भोजन का प्रबंध करने की मांग करने लगी। तब देवी पार्वती ने तत्काल अपने खड्ग से अपना सिर काट लिया। जिससे उनका कटा सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और उनकी गर्दन से रक्त की तीन धाराएं निकली। दो धाराओं से सहचरियों आहार ग्रहण किया और तीसरी रक्त धारा से मां स्वयं रक्त पान करने लगी।

माता पार्वती से जुड़ी कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार मां काली अपने अनुचरों के साथ रणभूमि में राक्षसों से युद्ध लड़ रहीं थी। इस दौरान मां काली को थकान का अनुभव हुआ और उन्हें प्यास भी लगने लगी। तब उन्होंने अपने अनुचरों को पानी लाने को कहा, लेकिन सभी अनुचर युद्ध करने में व्यस्त थे।

तब मां काली ने अपने खड्ग से अपना ही सिर काट दिया और रक्त की धारा अपने मुख में भरने लगीं। यह देखकर उनके सभी अनुचर हैरान रह गए। तभी मां काली ने अपने अनुचरों को यह आदेश दिया कि वह रणभूमि में बह रहे रक्त को इकट्ठा करें। आदेश का पालन करते हुए अनुचर ने एक खप्पर में रक्त को इकट्ठा किया। इसके बाद मां काली पुनः अपना सिर धड़ पर लगा लिया और राक्षसों का वध करने लगीं।

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