Subhash Ghai ने सुनाया Saudagar से जुड़ा मजेदार किस्सा

फिल्म ‘सौदागर’ में वीर सिंह (दिलीप कुमार) और ठाकुर राजेश्वर सिंह (राज कुमार) की 25 साल की दुश्मनी के बाद दोस्ती का सीक्वेंस होली के साथ मनाया गया था। उस सीक्वेंस पर गाना इमली का बूटा आज भी लोगों की जुबान पर है। होली के मौके पर फिल्म के निर्देशक सुभाष घई ने उससे जुड़ी कई यादों को ताजा करते हुए किस्से साझा किए।
होली पर सब बराबर होते हैं
निर्देशक सुभाष घई कहते हैं, ‘अगर आप ध्यान से देखें तो जो होली का त्योहार है उसमें हम चेहरे पर रंग डालते हैं, फिर हमारे दिल मिल जाते हैं। वरना पूरे साल में आप किसी को रंग नहीं डाल सकते हैं, लेकिन होली पर दोस्तों, दोस्तों के दोस्तों और घर आए मेहमान पर भी रंग डालते हैं। उसमें सब बराबर से शामिल होते हैं। फिर वे किसी भी वर्ग या समुदाय के हों। होली समानता लेकर आती है।
हमें इस त्योहार को लेकर खुशी होती थी कि इसमें कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। प्रेम भावना दिल से आती है। यह एकता का भाव लाती है। यही इमोशन लेकर जब मैंने ‘सौदागर’ की कहानी लिखी तो सार यही था कि बचपन के दोस्त हैं। बड़े होकर उनके बीच दुश्मनी हो जाती है, बुढ़ापा आने पर फिर दोस्त बन जाते हैं। जब बुढ़ापे में दोस्त बनें तो किस तरह से दोस्त बनेंगे? कौन सी ऐसी बात की जाए तो मैंने यह बात जब आनंद बख्शी साहब से कही तो उन्होंने कहा कि अगर बचपन की दोस्ती है तो बचपन की बातें होनी चाहिए।
ऐसे फिल्माया गया ‘इमली का बूटा’ गाना
उन्होंने आगे लिखा, ‘इमली का बूटा, बेरी का पेड़, इमली कच्ची मीठे बेर, इस जंगल में हम दो शेर…। यह उनके दिल के अंदर गहराई थी तो जब यह गाना मैंने पिक्चराइज किया कि दोनों मिलते कैसे हैं तो मैंने कहा कि होली से बड़ा कोई त्योहार नहीं हो सकता है। जिसमें लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और उस रंग में रंग जाते हैं। दोस्ती के प्रतीक के तौर पर मैंने शहनाई, म्यूजिक और होली से उसका उपयोग किया। दिलीप साहब का किरदार राज कुमार पर रंग फेंकता है और फिर दोनों गले लग जाते हैं। इस गाने को हमने मनाली में शूट किया था। मनाली में होटल के अंदर भी इसे शूट किया गया था। उसे काफी पसंद भी किया गया।’
इसी गाने में एक सीन है जब दिलीप साहब गिलास को अपने सिर पर रखते हैं। जब आदमी अपनी धुन में होता है तो इस तरह की हरकतें बचपन की ओर ले जाती हैं। उसके अंदर का बच्चा जग जाता है। दरअसल, जितने भी कलाकार होते हैं वो दिल से बच्चे होते हैं। दिलीप साहब और राज साहब में भी बच्चा था। जब कलाकार में बच्चा हो तभी वह अच्छा एक्टर बन सकता है।’ इस सीन में सफेद और लाल रंग के गुलाल का प्रयोग हुआ है। दोनों रंगों के प्रयोग को लेकर सुभाष कहते हैं, ‘यह प्रोडक्शन ने तय किया था। जब आपका स्वभाव आर्टिस्ट का होता है तो यह चीजें स्वभाविक होती हैं।’