भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए लकड़ी काटने से पहले निभाई जाती है ये रस्म

पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष महत्व है। इस शुभ अवसर का इंतजार भक्त बेसब्री के साथ करते हैं। इसे ‘रथों के त्योहार’ के रूप में भी जाना जाता है, यह अवसर आषाढ़ महीने में शुरू होता है। यह पर्व भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की वार्षिक यात्रा का भी प्रतीक है। हर साल रथ यात्रा नौ दिनों तक चलती है और इसे पूरी दुनिया में सबसे बड़ी रथ यात्रा के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है इसमें शामिल होने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन की सभी बाधाओं का नाश होता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 7 जुलाई, 2024 से होगी।
यह उत्सव हर साल नौ दिनों तक चलता है।
रथ यात्रा से एक दिन पहले, भगवान जगन्नाथ के भक्तों द्वारा गुंडिचा मंदिर की सफाई की जाती है। गुंडिचा मंदिर की सफाई की रस्म को गुंडिचा मार्जाना के नाम से जाना जाता है।
इस पवित्र यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को तीन अलग-अलग रथों में ले जाया जाता है।
रथों का निर्माण हर साल नई सामग्रियों से किया जाता है।
रथों के लिए छतरियां लगभग 1200 मीटर कपड़े से बनाई जाती हैं।
रथ बिना एक सुई के उपयोग के लकड़ी से बनाए जाते हैं, लकड़ियों का संग्रह बसंत पंचमी के शुभ दिन से शुरू होता है।
भगवान का 108 घड़े के पानी से अभिषेक किया जाता है, जिसे सहस्त्रधारा स्नान कहा जाता है।
आषाढ़ शुक्ल दशमी के आठवें दिन रथ वापस लौटते हैं, इस प्रक्रिया को बहुदा यात्रा कहा जाता है।
जगन्नाथ मंदिर में हर दिन कुल 56 व्यंजन बनाए जाते हैं।
इस दौरान मंदिर में ‘महाप्रसाद’ तैयार किया जाता है, जिसे सात मिट्टी के बर्तनों या फिर लकड़ी के बर्तनों में बनाया जाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए इस नियम से काटी जाती है लकड़ी
जगन्नाथ रथ यात्रा के अहम भाग में से एक रथ के लिए लकड़ी इकट्ठा करना होता है। इसके लिए हर साल 12 पेड़ों के 800 से ज्यादा टुकड़े लगते हैं। जानकारी के लिए बता दें, लकड़ी नया गढ़ जिले के दसपल्ला और महिपुर के जंगलों से लाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इन जंगलों से हर कोई लकड़ी नहीं काट सकता है, क्योंकि ये नयागढ़ बनखंड की देवी बड़ राउल के पूजा स्थल हैं।

इसके लिए जंगल की देवी से अनुमति ली जाती है, और उन्हें भगवान जगन्नाथ की एक पोशाक और फूल भेंट किया जाता है। फिर दो घंटे भजन-कीर्तन करने के बाद माथा टेकते हुए माफी मांग कर लकड़ी काटी जाती है।

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