हिमालय की पहाड़ियों के दरकने का कारण चौंकाने वाले तथ्य
-प्रो. भरत राज सिह
जोशीमठ में भूधंसाव की खतरनाक स्थिति बताई जा रही है क्योंकि यहां की जमीन मौजूदा भार को वहन करने की स्थिति में नहीं है। रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह भी कही गई है कि यहां की जमीन बेहद कमजोर है। इसके वैज्ञानिक कारण भी एक बार फिर पुष्ट किए गए हैं। राज्य सरकार को सौंपी गई विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ की जमीन भूस्खलन के मलबे से बनी है। यह भी कहा गया है कि न सिर्फ यहां की जमीन कमजोर है, बल्कि इसके नीचे से हिमालय की उत्पत्ति के समय अस्तिस्त्व में आया ऐतिहासिक फाल्ट मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) भी गुजर रहा है। जिसके चलते यहां भूगर्भीय हलचल होती रहती है और पहले से कमजोर सतह को इससे अधिक नुकसान होता है। जो भी हो यह तो शोध का विषय है, वर्तमान में वहां के लोगो को सुरक्षित स्थानो पर विस्थापित करना प्रदेश व केंद्र सरकार की प्राथमिकता है।
जोशीमठ में भूधंसाव के कारण पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हो चुके दो होटलों मलारी इन और माउंट व्यू को सुरक्षित तरीके से ध्वस्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। अब पुलिस ने दोनों होटलों के पास बैरीकेड लगाकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरु करवा दी है। इस दौराना बद्रीनाथ हाइवे जाम कर दिया गया है। वहीं वाहनों को औली आर्मी रोड से आवाजाही कराई जा रही है। एनडीआरएफ की टीम मौके पर मौजूद है। वहीं प्रशासन द्वारा अनाउंसमेंट कर आसपास के लोगों को हटाया गया। इस दौरान लोगों से गिराए जाने वाले भवनों से दूर रहने की अपील की गई। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआइ), नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम), राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरआफ) और लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) की टीम को तकनीकी रूप से ध्वस्तीकरण की जिम्मेदारी दी गई है । 9 जनवरी 2023 की शाम सीबीआरआइ के विज्ञानी ने प्रशासन के साथ दोनों होटलों का मौका-मुआयना किया। 10 जनवरी 2023 को टीम के सभी सदस्यों के पहुंचने के बाद ध्वस्तीकरण को लेकर रणनीति बनाई गई।
हिमालय की उत्पत्ति का इतिहास व अस्तिस्त्व का खतरा यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद यह समुद्री-समुद्री अब महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया और (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई। तब से लेकर अब तक तकरीबन 2500 किमी की भूपर्पटीय लघुकरण की घटना हो चुकी है। आइये कुछ तथ्य हिमालय पर्वत की उत्पत्ति एवं विशेषताओं के बारे में जाने – हिमालय पर्वत पूर्व से पश्चिम दिशा में विस्तृत दुनिया की सबसे लम्बी पर्वत श्रेणी है| इसके अलावा अन्य पर्वत श्रेणियों का विस्तार जैसे- एंडीज पर्वत श्रेणी, रॉकी पर्वत श्रेणी, ग्रेट डिवाइडिंग रेंज तथा यूराल पर्वत श्रेणी ये सभी पर्वत श्रृंखलाएं उत्तर से दक्षिण दिशा में हैं| हिमालय की लम्बाई पूर्व से पश्चिम दिशा में लगभग 2500 किमी है और पश्चिम में जम्मू-कश्मीर में नंगा पर्वत से लेकर पूर्व में अरूणाचल प्रदेश के उत्तर में स्थित तिब्बत पठार के नामचा बरवा पर्वत चोटी तक विस्तृत है| इसकी चौड़ाई पश्चिमी भाग में अधिक है, जबकि पूर्व भाग में कम है|
पूर्वी भाग में हिमालय की स्थिति संकरी होने के कारण यह ऊँचा उठ गया है| हिमालय की आकृति चापाकार अथवा धनुषाकार है और इसका क्षेत्रफल लगभग 5,00,000 वर्ग किमी. है| इसके उत्तर में तिब्बत का पठार तथा उसके उत्तर में क्यूनलून पर्वत श्रेणी स्थित है| यह अपने पूर्वी छोर एवं पश्चिमी छोर पर दक्षिणवर्ती मोड़ दर्शाता है और दक्षिणवर्ती मोड़ पहाड़ को पाकिस्तान में सुलेमान पर्वत और अफगानिस्तान में हिन्दुकुश पर्वत कहते हैं, जिसे पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है –अरूणाचल प्रदेश मे पटकई बुम, नागालैण्ड में नागा पहाड़ी, मणिपुर में मणिपुर पहाड़ी और मिजोरम में मिजो पहाड़ी। हिमालय पर्वत की एक शाखा म्यांमार तक फैली है इसे आराकानयोमा कहते है|
हिमालय पर्वत का निर्माण सेनोजोइक महाकल्प में हुआ था| इसकी उत्पत्ति की सबसे अच्छी व्याख्या जर्मनी के भूगर्भशाष्त्री कोबर का भू-सन्नति सिद्धांत करता है| टेथिस भू-सन्नति के दक्षिण में गोंडवानालैंड था तथा टेथिस भू-सन्नति के उत्तर में अंगारालैंड था| जैसे-जैसे मलबे का जमाव बढ़ता गया, दबाव के कारण टेथिस भू-सन्नति में अवतलन होने लगा, इसके साथ-साथ यहाँ अवसादी मलबे का जमाव भी बढ़ता गया| कोबर के अनुसार कुछ समय बाद अवतलन होने से टेथिस भू-सन्नति में सिकुड़न होने लगा जिससे उसकी चौड़ाई घटने लगी| टेथिस भू-सन्नति में सिकुड़न होने से उसमें जमा अवसादी चट्टानों में मोड़ पड़ने लगा अथवा वलन होने लगा| कोबर कहते हैं कि मोड़ पड़ने की क्रिया मलबे के दोनों किनारों पर अधिक हुई परिणामस्वरूप बीच का भाग समतल के रूप में ही ऊपर उठ गया| इसके एक तरफ का मोड़ हिमालय पर्वत है तथा दूसरे तरफ का मोड़ क्यूनलून पर्वत है तथा बीच का भाग तिब्बत का पठार है कोबर के अनुसार गोंडवानालैंड तथा अंगारालैंड दोनों भू-खण्डों में अनेक नदियाँ बहती थीं | इन नदियों ने लम्बे समय तक टेथिस सागर में अवसादों का निक्षेपण किया जिससे टेथिस भू-सन्नति में मलबा जमा हो गया|
हैरीहेस के सिद्धांत के अनुसार हिमालय पर्वत के उत्पति की सबसे प्रमाणित व्याख्या कोबर के भू-सन्नति सिद्धान्त को माना जाता है | कोबर के भू-सन्नति सिद्धान्त के अलावा हैरीहेस का प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत भी हिमालय पर्वत के उत्पत्ति का सफल व्याख्या करता है| पृथ्वी की सतह से 200 किमी० की गहराई में दृढ़ भूखण्ड पाया जाता है| प्लेट टेक्टॉनिक थियरी के अनुसार ये भू-खण्ड 6- भागों में विभाजित हैं, इन्हीं भू-खंडों को प्लेट कहते हैं, जो निम्नलिखित हैं – इंडियन प्लेट, यूरेशियन प्लेट, अफ्रीकन प्लेट, अमेरिकन प्लेट, पैसिफिक प्लेट (प्रशांत महासागर का प्लेट) और अंटार्कटिका प्लेट। प्लेट टेक्टॉनिक थियरी के अनुसार ये प्लेटें स्थिर नहीं हैं, बल्कि गतिशील अवस्था में हैं| भारत इंडियन प्लेट के ऊपर स्थित है| इस सिद्धांत के अनुसार इंडियन प्लेट जब उत्तर की ओर प्रवाहित होते हुए यूरेशियन प्लेट से टकराया, तब इन दोनों प्लेटों के मध्य टेथीस सागर में जमें अवसादी मलबे में वलन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई, इन्हीं वलन के परिणामस्वरूप हिमालय जैसे नवीन वलित पर्वत का निर्माण हुआ| हिमालय के अंतर्गत चार पर्वत श्रेणियों को शामिल किया जाता है– ट्रांस हिमालय, वृहद् हिमालय, लघु हिमालय और शिवालिक हिमालय। उक्त क्रम में, डा. भरत राज सिह ने 2013 में केदारनाथ विभीषिका के उपरांत कई बार अपने पत्र-पत्रिकाओ के माध्यम से जनता को आगाह कर चुके हैं कि वैश्विक तापमान में हो रही बढोत्तरी के कारण हिमालय की ग्लेशियर अधिक मात्रा में पिधल रही हैं, जो पिछले दशक के सापेक्ष 3-4 गुना बढ चुकी हैं । यहाँ तक की ग्लेशियर की चट्टानो में क्रैक होने से थोडी सी वारिस में ही बहुत बडी विभिषका का आगाज 2013 से प्रारम्भ हो गया था और प्रत्येक वर्ष इसकी संख्या में बढोत्तरी हो रही है । इसका विस्तृत जिक्र डा. सिह की ग्लोबल वार्मिग -2015 की पुस्तक में भी किया गया है। इसके 4-मुख्य कारण हैं –
अ). मनुष्य जनित पेडो का अधिक से अधिक कटान के कारण वैश्विक तापमान का बढना।
ब). पहाडो में अंधाधुंध सडको, मकानो व हाइड्रो पावर परियोजनाओ का निर्माण।
स). टाइटेनिक प्लटो के दवाव में पहाडी इलाके भूकम्प के खतरनाक जोन-5 में आना।
द). हिमालय ग्लेशियर 2,500 किलोमीटर लम्बाई में फैला हुआ है, जो उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव के बाद तीसरा बडा ग्लेशियर है, इसकी भी हजारो साल से जमी वर्फ का दो-तिहाई हिस्सा पिघल चुका है जिसके कारण पहाडियो पर वजन कम हो रहा है और पहाडिया ऊपर उठ रही हैं तथा पानी के श्रोत ऊपर से उठी हुयी पहाडियो के दरारो से वैली के आस-पास बने हुये सडको, मकानो व अन्य आधारित संरचना से बाहर निकल रहा है और उन्हे कमजोर कर उनमें दरारे बढा रही हैं ।
मैंने अभी 1-2 दिसम्बर 2023 के अमेरिका आये बर्फीले तूफान लेख में उल्लखित किया था कि भारतवर्ष तीन तरफ से समुद्र से और चौथी ओर हिमालय की पहाड़ियां से घिरा हुआ है, भी भारी शीत लहर, विनाशकारी व तीव्र गति के तूफानो से बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। हिमालय के ग्लेशियर क्षेत्र के पास बर्फ की चट्टाने टूट-टूट कर परवतीय घाटी में गिरती है; आजीविका को भारी नुकसान हो सकता है। यह उम्मीद की जाती है कि अगले दशक तक हर साल स्थिति बद से बदतर होती रहेगी। पहाडिया व वर्फीले चट्टाने टूटकर टूटकर खाडियो में गिरती रहेगी, इससे पहाडी क्षेत्र में रहने वालो के अन्यत्र विस्थापित करना होगा। उपरोक्त स्थित अभी जोशीमठ में दिख रही है। परन्तु इस प्रकार की परिस्थित से सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र प्रभावित होगा, इससे नकारा नही जा सकता है। अब हमें जल्दी से जल्दी प्रत्येक ख़तरनाक इलाको से विस्थापन की कार्यवाही चरणवद्ध तरीके से अपनाना होगा जिससे जन-जीवन की हानि से बचा जा सके।