लोन को लेकर आरबीआई ने जारी किया ये निर्देश, इन ग्राहकों को होगा सीधा फायदा….

आरबीआई (RBI) ने माइक्रो फाइनेंस कंपनियों (संस्थानों) से कर्ज लिए या लेने वाले ग्राहकों (Borrowers) को बड़ी राहत दी है. माइक्रो फाइनेंस कंपनियां अपने ग्राहकों से मनमाना ब्याज वसूलती है इसलिए आरबीआई ने माइक्रो फाइनेंस कंपनियों (Microfinance Institutions) से साफ कहा है कि वे शर्तों के साथ लोन की ब्याज दर तय कर सकती हैं, लेकिन ग्राहकों से ज्यादा ब्याज नहीं वसूल सकती हैं. क्योंकि ये शुल्क और दरें केंद्रीय बैंक की निगरानी के दायरे में होंगी.

आरबीआई ने इन कंपनियों को यह निर्देश दिया है ऐसे ग्राहक जिनकी आय सालाना तीन लाख रुपये तक हो उन परिवारों को बिना किसी गारंटी के लोन देना होगा. पहले यह कर्ज सीमा ग्रामीण कर्जदाताओं के लिए 1.2 लाख रुपये और शहरी कर्जदाताओं के लिए दो लाख रुपये थी. आपको बता दें कि आरबीआई का यह नया नियम एक अप्रैल 2022 से लागू होगा.

मनमाना ब्याज नहीं वसूल सकतीं कंपनियां

आरबीआई ने इसके लिए दिशा निर्देश जारी किया है. इस निर्देश के अनुसार, ‘माइक्रो फाइनेंस कंपनियों को कर्ज से जुड़े शुल्कों की एक लिमिट तय करनी होगी. यानी ये कंपनियां ग्राहकों से मनमाना ब्याज नहीं वसूल सकती हैं. इसके साथ ही सभी रेगुलर इकाइयों को निदेशक-मंडल की अनुमति वाली एक नीति लागू करनी चाहिए. इसमें माइक्रो फाइनेंस लोन की कीमत, कवर, ब्याज दरों की अधिकतम सीमा और सभी अन्य शुल्कों के बारे में स्पष्टता लानी होगी.’

इस हालत में नहीं लगेगा जुर्माना 

आरबीआई ने इस दिशा निर्देश में निर्धारित समय के पहले कर्ज चुकाने वाले ग्राहकों के लिए कहा है, ‘प्रत्येक रेगुलर इकाई को एक संभावित कर्जदार के बारे में कीमत-संबंधी जानकारी एक फैक्टशीट के रूप में देनी होगी. कर्ज लेने वाला अगर अपने कर्ज को समय से पहले चुकाना चाहता है तो उस पर किसी तरह की जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिए. अगर किस्त के भुगतान में देरी होती है तो माइक्रो फाइनेंस कंपनियां ग्राहक पर जुर्माना लगा सकते हैं लेकिन वह भी पूरे कर्ज की राशि पर नहीं बल्कि बकाया राशि पर ही

कर्ज समझौता हो आसान भाषा में 

इसके साथ ही आरबीआई ने कहा है कि अगर किसी कर्जदाता ने लोन लिया है तो माइक्रोफाइनेंस कंपनियां उसकी मासिक आय का अधिकतम 50 फीसदी हिस्सा ही कर्ज रीपेमेंट के लिए तय कर सकती हैं. इससे ग्राहकों पर ज्यादा बोझ नहीं बढ़ेगा. माइक्रो फाइनेंस कंपनियों और ग्राहक के बीच समझौता भी ऐसी भाषा में होनी चाहिए, जिससे कर्ज लेने वाला आसानी से समझ सके.

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