अंतरिक्ष में फसलें उगाने की संभावना तलाशेगा भारत, डॉकिंग तकनीक का भी करेगा प्रदर्शन
भारत पीओईएम-4 यानी पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल-4 के तहत बीज के अंकुरण का प्रदर्शन और हरित प्रणोदन प्रणाली का परीक्षण कर ‘सफलता की एक और कविता’ रचने की तैयारी कर रहा है। इस प्रयोग के जरिये अंतरिक्ष में फसलें उगाने की संभावना तलाशी जाएगी। इस अनोखे और सस्ते अंतरिक्ष प्लेटफॉर्म को पीएसएलवी सी-60 रॉकेट के पीएस-4 चरण का इस्तेमाल कर विकसित किया जाएगा।
कचरे की समस्या से निपटने में मिलेगी मदद
दरअसल, पीओईएम या पोएम इसरो का प्रायोगिक मिशन है। इसके तहत कक्षीय प्लेटफॉर्म के रूप में पीएस-4 चरण का उपयोग करके कक्षा में वैज्ञानिक प्रयोग किया जाता है। पीएसएलवी चार चरणों वाला रॉकेट है। इसके पहले तीन चरण प्रयोग होने के बाद समुद्र में गिर जाते हैं और अंतिम चरण उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद अंतरिक्ष में कबाड़ बन जाता है। इसरो के पीओईएम मिशन से अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगी।
अंतरिक्ष डॉकिंग प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करेगा भारत
पीएसएलवी-सी60 रॉकेट से इसी साल ‘स्पैडेक्स’ को लांच किए जाने की संभावना है। मिशन में सफलता हासिल करने के साथ ही भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद अंतरिक्ष ‘डॉकिंग’ प्रौद्योगिकी में सक्षम दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। स्पैडेक्स मिशन के तहत दो छोटे अंतरिक्ष यान ‘चेजर और टारगेट’ पीएसएलवी-सी60 रॉकेट से एक साथ 470 किमी वृत्ताकार कक्षा में प्रक्षेपित किए जाएंगे।
बेहद अहम है स्पैडेक्स मिशन
मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यान को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करने की क्षमता को प्रदर्शित करना है। एक अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डॉकिंग और अंतरिक्ष में जुड़े दो यानों के अलग होने को अनडॉकिंग कहते हैं। स्पैडेक्स मिशन से भारत को अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने में मदद मिलेगी। यह प्रौद्योगिकी भारत के महत्वाकांक्षी मिशनों जैसे चंद्रमा से नमूने वापस लाने, भारतीय अंतरिक्ष केंद्र (बीएएस) के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है।
24 प्रयोग करेगा पीओईएम
पीओईएम अंतरिक्ष में 24 प्रयोग करेगा। इनमें से 14 विभिन्न इसरो प्रयोगशालाओं से और 10 प्राइवेट विश्वविद्यालयों और स्टार्ट-अप से संबंधित हैं। इसरो ने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र द्वारा विकसित आर्बिटल प्लांट स्टडीज (सीआरओपीएस) के लिए बीज के अंकुरण की योजना बनाई है। एमिटी यूनिवर्सिटी, मुंबई द्वारा विकसित एमिटी प्लांट एक्सपेरिमेंट मॉड्यूल इन स्पेस के जरिये अंतरिक्ष वातावरण में पालक के विकास का अध्ययन करने की भी योजना है।
वीएसएससी द्वारा विकसित डेब्रिस कैप्चर रोबोटिक मैनिपुलेटर, अंतरिक्ष वातावरण में मलबे को कैप्चर करने की क्षमता प्रदर्शन करेगा। इससे पहले इसरो ने पीएसएलवी सी-58 रॉकेट का इस्तेमाल कर पोएम-3 और पीएसएलवी-सी55 मिशन में पीओईएम-2 का उपयोग करके इसी तरह का सफल प्रयोग किया था।