एनसीपी ,शिवसेना और भाजपा के बीच महाराष्ट्र की राजनीति में रस्साकशी का खेल लगातार जारी..
एनसीपी , शिवसेना (उद्धव गुट) और भाजपा के बीच महाराष्ट्र की राजनीति में रस्साकशी का खेल लगातार जारी है। कभी एक साथ सरकार चलाने वाली भाजपा और शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता आज के समय एक-दूसरे के खिलाफ जमकर राजनीतिक टिप्पणी करते हैं।
वहीं, एनसीपी के खिलाफ भाजपा के तेवर भी काफी आक्रमक होते हैं। हालांकि, कुछ सालों पहले भाजपा और एनसीपी पार्टी एक साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने की ख्वाहिश देख रही थी, लेकिन ऐन मौके पर एनसीपी ने भाजपा का साथ छोड़ दिया, जिसकी वजह से देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।
जब महाराष्ट्र में हुआ था राजनीतिक ड्रामा
साल 2019 में में हुए हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामा की चर्चा आज तक हो रही है। कुछ दिनों पहले देवेंद्र फडनवीस ने ये दावा किया था कि पहले शरद पवार हमारे साथ (भाजपा) सरकार बनाने के लिए राजी हो गए थे, लेकिन वो बाद में मुकर गए।
फडणवीस के इस बात पर प्रतिक्रिया देते हुए शरद पवार ने कहा,”हां उस समय एनसीपी, बीजेपी के साथ सरकारी बनाने के लिए बातचीत कर रही थी। लेकिन वो एक गुगली थी, जिसमें देवेंद्र फडणवीस क्लीन बोल्ड हो गए।
सुप्रिया सुले ने भाई और पिता का किया बचाव
दोनों नेताओं के बीच चले इस वाकयुद्ध को लेकर जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, भाजपा पिता शरद पवार और चचेरे भाई अजीत पवार के प्रति आसक्त है। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा पार्टी के पास देश या राज्य के लिए कोई दृष्टिकोण नहीं है।
उनके पास देश और राज्य के विकास के लिए एक दृष्टिकोण तैयार करने का समय नहीं है।”
देवेंद्र फड़णवीस अप्रासंगिक मुद्दा उठाते हैं: सुप्रिया सुले
नवंबर 2019 में अल्पकालिक भाजपा-अजित पवार सरकार को लेकर उपमुख्यमंत्री के बीच चल रहे वाकयुद्ध पर सवालों का जवाब देते हुए सुले ने कहा कि फड़णवीस के पास मुद्रास्फीति को कम करने या महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपाय करने का समय नहीं है। डिप्टी सीएम के पास वित्त और गृह विभाग हैं।
सुप्रिया सुले ने साल 2019 की घटना पर कहा कि च्यूइंगगम का स्वाद शुरुआत में अच्छा होता है, लेकिन फिर यह बेस्वाद हो जाता है।
आखिर क्या था साल 2019 में हुआ क्या था?
साल 2019 में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा और शिवसेना में टकराव हो गया। इसके बाद 12 नवंबर को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। लेकिन, 23 नवंबर को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अचानक राष्ट्रपति शासन हटाकर देवेंद्र फडनवीस को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी और अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री का शपथ दिलाया गया।
हालांकि, सदन में फडनवीस बहुमत साबित करने में नाकामयाब रहे और उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।