20वें जन्‍मदिन पर संत बन जाते यहां के लोग, वजह है दिलचस्‍प

योगी आद‍ित्‍यनाथ (Yogi Adityanath) हों या फ‍िर बाबा बालकनाथ (Baba Balak Nath) दोनों संत परंपरा से आए. दोनों ही नाथ संप्रदाय (Nath Sampradaya) से ताल्‍लुक रखते हैं. दोनों राजनीत‍ि में हैं और साथ में जनसेवा भी करते हैं. दोनों बहुत कम उम्र में इस संंप्रदाय का हिस्‍सा बने. बहुत सारे लोग गृहस्‍थ जीवन छोड़कर संत परंपरा की ओर बढ़ रहे हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मुल्‍क के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां 20वें जन्‍मदिन पर संत बन जाने की परंपरा है. सिर्फ कुछ लोग नहीं, सभी लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संत बनें और धार्मिक श‍िक्षा ग्रहण करें. सद‍ियों से ये परंपरा चली आ रही है. पुराने जमाने में राजा सहित सभी पुरुष अपने 20वें जन्मदिन से पहले कुछ समय के लिए संत बनते थे, लेकिन आजकल कुछ युवा ही इस प्रथा का पालन करते हैं.

हम बात कर रहे थाईलैंड की. यहां बौद्ध धर्म का पालन किया जाता है. थाई संस्कृति में यह परंपरा है कि जब कोई व्यक्ति 20 वर्ष का हो जाता है, तो उसे दीक्षा दी जानी चाहिए. भगवान बुद्ध की शिक्षाओं, धर्म का अध्ययन करने के लिए कुछ समय के लिए उसे मठ में प्रवेश करना चाहिए. इस परंपरा को धार्मिक सेवा का एक महान कार्य माना जाता है. सद‍ियों से जो प‍र‍िवार इस योग्‍यता को पूरा करता है, उसे बेहद सम्‍मान की नजर से देखा जाता है. थाई पुरुषों के लिए यह अपना पालन-पोषण करने वाले माता-पिता के प्रतिआभार जताने का तरीका है. इस समारोह को ‘बुआट नाक’ (Buat Nak) संस्‍कार कहा जाता है.

बौद्ध पुरुष तीन महीने तक भिक्षु बने रहते
थाइलैंड फाउंडेशन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, बौद्ध पुरुष तीन महीने तक भिक्षु बने रहते हैं. इस दौरान उन्‍हें खाओ फांसा कहा जाता था. आमतौर पर बरसात के मौसम के दौरान यह समारोह होते थे. वे हर जगह घूमते थे. लोगों को बौद्ध धर्म की शिक्षा देते थे. कहा जाता है कि जब वे बरसात के दिनों में खेतों से गुजरते थे तो अपने पैरों से कीमती चावल के पौधे रौंद देते थे. एक दिन भगवान बुद्ध ने दर्शन दिया और वर्षा ऋतु के दौरान अपनी तीर्थयात्राएँ रोकने का आदेश दिया था. इसके बजाय, उनसे कहा गया कि वे अपने मठों में ही रहें, अध्ययन करें और धर्म का अभ्यास करें. तब से यह भ‍िक्षु तीन महीने तक मठों में ही रहकर दीक्षा लेते हैं.

इसल‍िए परंपरा कुछ बदली गई
आजकल की लाइफस्‍टाइल में तीन महीने तक सांसारिक जीवन छोड़कर कोई मठ में नहीं रह सकता, इसल‍िए परंपरा कुछ बदली गई है. अब भिक्षुक 15 दिन या एक महीने तक भी दीक्षा ले सकता है. आज भी वर्षा ऋतु के आरंभ में ही नहीं, बल्कि वर्ष के किसी भी समय अभिषेक किया जा सकता है. बुआट नाक में बुआट शब्‍द का अर्थ है नियुक्त करना जबकि नाक का अर्थ है नागा. भारत समेत पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में नागाओं को दैवीय, शक्तिशाली और अत्यधिक सम्मानित माना जाता है.

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