सांसारिक मोहमाया से मुक्त होने का मार्ग है अमरनाथ यात्रा

ऊबड़-खाबड़ रास्‍ते और बर्फ से ढकी चोटियां। अध्‍यात्‍म की भूमि हिमालय की ऊंची चोटी पर गुफा में हिम स्‍वरूप में विराजमान भगवान भोलेनाथ के दर्शन से अमरत्‍व की राह प्रशस्‍त करने की चाह में सब कष्‍टों को सहते हुए श्रद्धालु निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं। अमरेश्‍वर धाम अर्थात अमरनाथ भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, इसलिए इसे सब तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है।

पुराणों के अनुसार यह यात्रा अनंतकाल से चल रही है और तब भी शिवभक्‍त और ऋषि-मुनि भगवान शिव के इस दुर्लभ स्‍वरूप के दर्शन के लिए कश्‍मीर के जंगल में जाया करते थे। स्‍कंदपुराण में श्रीअमरेश्‍वर धाम की महिमा की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि अमरेश तीर्थ सब पुरुषार्थों का साधक है, वहां महादेव और देवी पार्वती निवास करते हैं। 11वी शताब्‍दी में महकवि कल्हण द्वारा कश्‍मीर के इतिहास पर रचित ग्रंथ राजतरंगिणी में अमरेश्वर महादेव का वर्णन किया गया है।

राजतरंगिणी की प्रथम तरंग के 267वें श्लोक में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। इसी ग्रंथ में अन्यत्र भी कवि कल्हण भगवान शिव के हिम स्वरूप को अमरेश्वर के नाम से संबोधित करते हैं। स्‍पष्‍ट है कि यह यात्रा हजारों वर्षों से चलती आ रही है। भगवान अमरनाथ की यह यात्रा जहां सृष्टि की अमरता का दर्शन कराती है वहीं दूसरी ओर सृष्टि विन्यास का आत्मबोध भी कराती है। यही वजह से यह यात्रा मंगलकारी है ही, साथ ही यह यात्रा मनुष्य को आत्मबोध कराकर सांसारिक मोहमाया से मुक्त होने का मार्ग भी प्रशस्त कराती है।

पौराणि‍क कथाओं के अनुसार इसी गुफा में भगवान शिव ने मां पार्वती को अमरत्‍व की कथा सुनाई थी। उससे पूर्व इस राह पर बढ़ते हुए उन्होंने गले में विराजे शेष नाग, अपनी सवारी नंदी, ललाट पर सुशोभित चंद्रमा को भी पीछे छोड़ दिया और श्रीअमरनाथ की गुफा की ओर बढ़ते गये। यहां पहुंचकर उन्‍होंने पंच तत्‍वों आकाश, वायु, अग्‍न‍ि, जल और पृथ्‍वी का भी परित्‍याग कर दिया। ऐसा कर उन्‍होंने प्राणीमात्र को स्‍पष्‍ट संदेश दिया कि सब त्‍यागकर ही अमरता की यात्रा संभव है।

आवश्‍यक है कि देह के प्रति हमारा अभिमान भी समाप्त हो जाए। अगर बाहर के तमाम वैभव का परित्‍याग कर हम अपने भीतर अमरता के एक विराट सौंदर्य को रच लेते हैं, जो यही जीवन का सत्य है और यही शिव भी है। आवश्यक है कि हम त्‍याग के इस भाव को भी धारण करें। यह यात्रा हमें ईश्‍वर के अवनिाशी स्‍वरूप से एकाकार होने की प्रेरणा करती है। शरीर नाशवान भले ही है पर आत्‍मा अमर है और हमें इस तथ्‍य को स्‍वीकारते हुए अमरता के पथ का वरण करना चाहिए।

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