
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सरकार ने 7 महानगरों में बेहतर पुलिसिंग के लिए कमिश्नरी प्रणाली शुरू की है। सरकार ने अब गाजियाबाद, आगरा और प्रयागराज जिले में भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का एलान कर दिया। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। इससे पहले राजधानी लखनऊ, कानपुर, गौतमबुद्ध नगर और वाराणसी में कमिश्नरेट प्रणाली लागू की गई थी। मौजूदा समय में ये प्रणाली देश के 100 से ज्यादा शहरों में लागू है। कमिश्नर सिस्टम (Commissionerate System) में पुलिस अधिकारियों के पास अधिक शक्तियां होती हैं। अधिकारियों को गिरफ्तारी करने और कानून व्यवस्था लागू करने के लिए नागरिक अधिकारियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। हालांकि, कुछ लोगों का ये भी मानना है कि, कमिश्नर प्रणाली से पुलिस को ज्यादा शक्तियां मिल जाती हैं। आखिर कमिश्नर सिस्टम क्या होता है, पुलिस को कैसे अधिक अधिकार मिल जाते हैं, इसके लाभ क्या है, चलिए हम आपको बताते हैं इस खास रिपोर्ट में।

आसान भाषा में समझें तो पुलिस अधिकारी कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं होते हैं। वो आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम या मंडल कमिश्नर या फिर शासन के आदेश अनुसार ही कार्य करते हैं। लेकिन पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने पर जिला अधिकारी और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के ये अधिकार पुलिस अधिकारियों को मिल जाते हैं।
कैसे होता है काम
पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू होने पर कमिश्नर का मुख्यालय बनाया जाता है। एडीजी स्तर के सीनियर आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाकर तैनात किया जाता है। महानगर को कई जोन में विभाजित किया जाता है। हर जोन में डीसीपी की तैनाती होती है। जो एसएसपी की तरह उस जोन में काम करता है, वो उस पूरे जोन के लिए जिम्मेदार होता है। सीओ की तरह एसीपी तैनात होते हैं ये 2 से 4 थानों को देखते हैं।
फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं पुलिस कमिश्नरी
कमिश्नर प्रणाली लागू होने पर पुलिस के अधिकार काफी हद तक बढ़ जाते हैं। कानून व्यस्था से जुड़े तमाम मुद्दों पर पुलिस कमिश्नर ही फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं। डीएम के पास अटकी फाइलों पर भी अनुमति लेने की समस्या खत्म हो जाती है। यहां ये जानना भी जरूरी है कि, कमिश्नर सिस्टम में एसडीएम और एडीएम को दी गई एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रियल पावर पुलिस को मिल जाती है। इस तरह की पावर मिलने से पुलिस गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और रासुका तक लगा सकती है।
भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के अंतर्गत जिलाधिकारी यानी डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस पर नियत्रंण के अधिकार भी होते हैं। इस पद पर आईएएस अधिकारी बैठते हैं। लेकिन, पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू हो जाने के बाद ये अधिकार पुलिस अफसर को मिल जाते हैं, जो एक आईपीएस होता है। जिले की बागडोर संभालने वाले डीएम के तमाम अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास चले जाते हैं।
पुलिस कमिश्नर को मिलती है ज्यूडिशियल पॉवर
पुलिस कमिश्नर प्रणाली में पुलिस कमिश्नर सर्वोच्च पद होता है। ज्यादातर ये प्रणाली महानगरों में लागू की गई है। पुलिस कमिश्नर को ज्यूडिशियल पॉवर भी होती हैं। सीआरपीसी के तहत कई अधिकार इस पद को मजबूत बनाते हैं। इस प्रणाली में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस ही मजिस्ट्रेट पॉवर का इस्तेमाल करती है।
जानें कमिश्नर प्रणाली के लाभ
कमिश्नर प्रणाली में किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को डीएम समेत अन्य अधिकारियों के फैसले के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ता। पुलिस खुद किसी भी स्थिति में फैसला ले सकती है। जिले की कानून व्यवस्था से जुड़े सभी फैसलों को लेने का अधिकार कमिश्नर के पास होगा। होटल के लाइसेंस, बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार भी इसमें शामिल होता है। धरना प्रदर्शन की अनुमति देना ना देना, दंगे के दौरान लाठी चार्ज होगा या नहीं, कितना बल प्रयोग हो ये भी पुलिस ही तय करती है। जमीन की पैमाइश से लेकर जमीन संबंधी विवादों के निस्तारण का अधिकार भी पुलिस को मिल जाता है।
बता दें कि देश जब आजाद नहीं हुआ था तब अंग्रेजों के दौर में कमिश्नर प्रणाली लागू थी। आजादी के बाद भारतीय पुलिस ने इसे अपनाया। भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861 के भाग 4 के तहत जिला अधिकारी के पास पुलिस पर नियंत्रण करने के कुछ अधिकार होते हैं। इसके अलावा, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को कानून और व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ शक्तियां देता है। कमिश्नर प्रणाली में इस तरह के अधिकार पुलिस को मिल जाते हैं।