ज्ञानवापी की लड़ाई अब सबूतों पर आई, कोर्ट ने खारिज की मुस्लिम पक्ष की अर्जी
जिला कोर्ट ने कहा, ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने की मांग का मुकदमा सुनवाई योग्य
–सुरेश गांधी
वाराणसी : ज्ञानवापी पर ’अज्ञान’ का अंत क़रीब है। इस मामले में हिंदू पक्ष को बड़ी कामयाबी मिली है। ज्ञानवापी केस में मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है. वाराणसी जिला कोर्ट ने मामले को सुनने योग्य माना। इसी आधार पर मस्जिद समिति की आपत्ति को खारिज किया है जबकि मुस्लिम पक्ष ने जोर देकर कहा था कि ज्ञानवापी परिसर का कब्जा हिंदुओं को सौंपने सहित 3 मांगों से जुड़ा मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। इसकी सुनवाई नहीं होनी चाहिए, ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए। अब 2 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी। गुरुवार को ज्ञानवापी परिसर का कब्जा भगवान आदि विश्वेश्वर को सौंपने और वहां मिले शिवलिंग के दर्शन-पूजन का अधिकार देने संबंधित मुकदमे की सुनवाई सिविल जज सीनियर डिवीजन महेंद्र कुमार पांडेय की फास्ट ट्रैक कोर्ट में हुई। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने उस मामले को पोषणीय माना है और इसी आधार पर याचिका को खारिज किया है। विश्व वैदिक सनातन संघ के के कार्यकारी अध्यक्ष संतोष सिंह ने कहा की यह हमारी बड़ी जीत, अब सुनवाई के बाद हमारी मांगे भी मानी जाएंगी यही उम्मीद है। इस बाबत सिविल जज फास्ट ट्रैक कोर्ट सीनियर डिवीजन महेंद्र कुमार पांडेय की अदालत में दाखिल प्रार्थना पत्र में ज्ञानवापी परिसर को मंदिर बताते हुए हिंदुओं को सौंपने और वहां मिले शिवलिंग के दर्शन-पूजन की मांग की गई थी। इस पर पूर्व में मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्ति जताते हुए इसे खारिज करने की मांग भी की गई थी। लेकिन ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने, शिवलिंग की पूजा का अधिकार देने और ज्ञानवापी में मुस्लिमों का प्रवेश प्रतिबंधित करने की मांग करने वाली याचिका को अदालत ने सुनवाई योग्य माना है।
कोर्ट ने इसी के साथ पक्षकारों को लिखित बयान दाखिल करने और वाद बिंदु तय करने के लिए दो दिसंबर की तिथि नियत कर दी। इस तारीख पर मुद्दे पर सुनवाई होगी कि पूजा की इजाजत मिले या नहीं। उधर श्रृंगार गौरी वाद की चार महिलाओं की तरफ से भगवान आदि विश्वेश्वर का मुकदमा श्रृंगार गौरी वाद के साथ सुनवाई किए जाने की अर्जी जिला जज की अदालत में दी है। जिस पर 21 नवंबर को सुनवाई होनी है। हिंदू पक्ष के वकील के अनुसार यह बहुत बड़ी सफलता है। हमारा केस पहले से ही बहुत मजबूत है। यहां पर भी वर्शिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता। अब हिंदू पक्ष अगली सुनवाई में ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग की पूजा का अधिकार मांगेगा और परिसर का एक और सर्वे की मांग करेगा। वहीं मुस्लिम पक्ष सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ जिला जज की अदालत में जा सकता है।
वादिनी के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह, शिवम गौड़ और अनुपम द्विवेदी ने दलील में कहा था कि वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर अंजुमन की तरफ से जो आपत्ति उठाई गई है वो साक्ष्य व ट्रायल का विषय है। ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का है। यह भी दलील दी थी कि विशेष धर्म स्थल स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। वक्फ एक्ट हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता है। ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य है। वहीं अंजुमन की तरफ से मुमताज अहमद, तौहीद खान, रईस अहमद, मिराजुद्दीन खान और एखलाक खान ने कोर्ट में प्रतिउत्तर में सवाल उठाया था कि जब देवता की तरफ से मुकदमा किया गया तब वादी पक्ष की तरफ से पक्षकार 4 और 5 विकास शाह और विद्याचन्द्र कैसे वाद दाखिल कर सकते है। यह वाद किस बात पर आधारित है इसका कोई पेपर दाखिल नहीं किया गया है और कोई सबूत नहीं है। साथ ही कानूनी नजीरें दाखिल कर कहा था कि वाद सुनवाई योग्य नहीं है। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि ज्ञानवापी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति है। ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का अधिकार नहीं है। इस पर वादिनी पक्ष की दलील थी कि वक्फ बोर्ड में वही मुकदमा चल सकता है जिसमे दोनों पक्ष मुस्लिम पक्षकार हो। बता दें कि इसी तरह श्रृंगार गौरी वाद में भी जिला जज की अदालत ने सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद ऑर्डर 7 रूल 11 के अंजुमन के आवेदन को खारिज करते हुए वाद को सुनवाई योग्य पाया था। दीन मोहम्मद के फैसले के जिक्र पर कहा कि कोई हिंदू पक्षकार उस मुकदमे में नहीं था इसलिए हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता है।
यह भी दलील दी कि विशेष धर्म स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। स्ट्रक्चर का पता नहीं कि मंदिर है या मस्जिद। जिसके ट्रायल का अधिकार सिविल कोर्ट को है। कहा कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने और मस्जिद बनवाने का आदेश दिया था। वक्फ एक्ट हिन्दू पक्ष पर लागू नहीं होता है। ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य है और अन्जुमन की तरफ से पोषणीयता के बिंदु पर दिया गया आवेदन खारिज होने योग्य है। हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने दलीलें रखी थी कि राइट टू प्रॉपर्टी के तहत देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। ऐसे में नाबालिग होने के कारण वाद मित्र के जरिये यह वाद दाखिल किया गया है। भगवान की प्रॉपर्टी है, तब माइनर मानते हुए वाद मित्र के जरिये क्लेम किया जा सकता है। स्वीकृति से मालिकाना हक हासिल नहीं होता है। यह बताना पड़ेगा कि संपत्ति कहां से और कैसे मिली। अदालत में वाद के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग और संविधान का हवाला भी दिया गया।
19 नवंबर से 16 दिसंबर तक भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में ’काशी-तमिल संगमम’ का आयोजन किया गया है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की अनौपचारिक शुरुवात 17 नवंबर से होगी। माह पर्यंत चलने वाला यह कार्यक्रम बीएचयू के एमपी थियेटर ग्राउंड में होगा. जिसका शुभारंभ पीएम मोदी 19 नवंबर को करेंगे। पीएम मोदी 19 नवंबर को दोपहर में वाराणसी के एयरपोर्ट पहुंचेगे। वहां से हैलीकाप्टर से बीएचयू हैलीपैड आएंगे. फिर पीएम काशी-तमिल संगमम में लगी प्रदर्शनी का उद्घाटन करेंगे। इसके बाद वहां मौजूद लोगों को संबोधित भी करेंगे. पीएम करीब साढ़े तीन घंटे बिताने के बाद वापस दिल्ली रवाना हो जाएंगे. उद्घाटन समारोह में तमिलनाडु के 12 प्रमुख मठ मंदिर के आदिनम (महंत) को काशी की धरा पर पहली बार सम्मानित भी किया जाएगा। सम्मान समारोह के बाद पीएम मोदी भगवान शिव के ज्योर्तिलिंग काशी विश्वनाथ और रामेश्वरम के एकाकार पर आधीनम से संवाद भी करेंगे।