विश्व साइकिल डे पर इस शख्स ने पेश की मिसाल साइकिलिंग के शौक में न खरीदी स्कूटी और न बाइक
शिक्षक जहां समाज का दर्पण होता है, वहीं चिकित्सक मन और शरीर की सेहत के लिए समाज का अटूट हिस्सा है। रुड़की में दोनों ही वर्ग के लोग साइकिलिंग कर यूथ ही नहीं, बच्चों और बुजुर्गों को भी प्रेरणा दे रहे हैं। आश्चर्यजनक यह है कि रुड़की में आईएमए के चेयरमैन डॉ. विकास त्यागी ने तो साइकिलिंग के चलते घर में कोई दोपहिया वाहन ही नहीं रखा है। जबकि प्रो. मनीष श्रीखंडे साइकिल से घर और आफिस पहुंचकर आईआईटी छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हैं।
रुड़की आईएमए के अध्यक्ष डॉ. विकास त्यागी के पास वर्तमान में एक कार और साइकिल है। इन्होंने साइकिलिंग के शौक में कभी बाइक या स्कूटी खरीदी ही नहीं। पहले इन्हें साइकिलिंग का शौक था और बाद में इसे आदत बना लिया। उनका कहना है कि वह नियमित साइकिल चलाते हैं। इसके साथ ही हफ्ते में तीन बार 10 से 12 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं। जबकि तीन दिन दौड़ लगाते हैं।
लंबी साइकिलिंग में वह नरेंद्रनगर, बिजनौर, बिहारीगढ़, हरिद्वार, देहरादून तक साइकिल चला चुके हैं। इसी तरह चिकित्सक डॉ. वीरिका सहारन भी साइकिलिंग से ही सभी जरूरी काम निपटाती हैं। वहीं आईआईटी के प्रो. मनीष श्रीखंडे संस्थान में डीन हैं। मीडिया सेल प्रभारी सोनिका श्रीवास्तव एक वाकया बताती हैं कि एक बार एक कार्यक्रम में वह कार से मेन बल्डिंग से सभागार के लिए निकलीं।
तभी प्रो. श्रीखंडे साइकिल से चले और वह उनसे पहले पहुंच गए। प्रो. श्रीखंडे का कहना है कि प्रत्येक भारतीय को सोच में बदलाव लाना होगा। प्रयास करें कि वाहन का कम से कम प्रयोग हो और छोटे-छोटे कार्यों के लिए साइकिल का इस्तेमाल कर इसे आदत बनाएं।
साइकिलिंग का क्रेज बढ़ा तो ब्रिकी में भी आया उछाल
कर्फ्यू के बावजूद दुकानों पर मात्र साइकिलों की ही 20 से 25 फीसदी तक खरीदारी बढ़ी है। पिछले लॉकडाउन में अन्य महीनों की अपेक्षा कोरोना काल में 20 फीसदी साइकिल की सेल बढ़ गई थी। इस बार भी क्रेज बरकरार है। संजय गांधी कॉलोनी निवासी मंजीत रावत बताते हैं कि संक्रमण के इस दौर में वह प्रतिदिन एक घंटे का समय दे रहे हैं। शेरपुर निवासी सोमवाल सैनी ने बताया कि पहले उन्होंने एक मित्र की साइकिल से कुछ दिन सैर की। इसके बाद अपनी साइकिल खरीद ली है। पीडी जैन साइकिल शॉप के मालिक आकाश जैन ने बताया कि लोग अपनी सेहत के ख्याल से साइकिल ही खरीद रहे हैं। वहीं नाम न छापने की शर्त पर एक दुकानदार ने बताया कि उनकी दुकान से हर महीने 70 से 80 साइकिलों की ब्रिकी हो रही है। जबकि पिछले सालों में यह ब्रिकी 20 से 25 तक ही सीमित थी।
साइकिल ट्रैक से महरूम हुए शहरवासी
साइकिलिंग के लिए सबसे बेहतर जगह मानी जाने वाली गंगनहर पटरी से भी शहरवासी महरूम हो गए हैं। सुबह की सैर और साइकिलिंग के लिए लोगों के लिए कोई स्पेशल ट्रैक नहीं बनाया गया है। ऐसे में सबसे बेहतर विकल्प गंगनहर पटरी था। बरसों से यहां पूरे शहर के लोग सुबह ही अपने वाहनों से पहुंचकर गंगनहर पटरी पर सुबह की सैर करते थे। साथ ही साइकिलिंग करते हुए गंगनहर पुल से मेहवड़ व कलियर और आसफनगर झाल तक सैर करते थे। पटरी के चौड़ीकरण से वाहन बढ़े तो यह ट्रैक भी साइकिलिंग के लिए महफूज नहीं रहा।
रोजाना 15 किमी साइकिल चलाते हैं मे.ज. नवीन कुमार
सेवानिवृत्त मेजर जनरल नवीन कुमार ऐरी रोजाना करीब 15 किमी साइकिल चलाते हैं। इसके जरिए वह आमजन को सेहतमंद रहने का संदेश दे रहे हैं। देहरादून के बसंत विहार निवासी ऐरी के अनुसार गर्मी, ठंड या फिर बरसात किसी भी मौसम में वह साइक्लिंग करना नहीं छोड़ते। यहां तक की घर का छोटा-मोटा सामान लेने के लिए भी वो गाड़ी के बजाय साइकिल से जाना ही पसंद करते हैं। उनका मानना है कि अमेरिका, फ्रांस, इटली, चीन, जर्मनी कनाडा जैसे विकसित देशों में साइकिल चलाने का चलन बहुत अधिक है, जबकि अपने देश में इसके प्रति लोगों का नजरिया सही नहीं है। कोरोना काल के दौरान धीरे-धीरे इस सोच में बदलाव आ रहा है।