पीएफआई के बैन पर आतंकपरस्त सियासतदानों में हड़कंप!
सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई और उसके आठ सहयोगी संगठनों पर पांच साल के लिए बैन लगा दिया है. बैन की खबर लगते है तथाकथित सेकुलर सियासतदानों या यूं कहे आतंकपरस्त नेताओं में खलबली मच गयी। हाल यह है कि बौखलाएं सियासतदानों में कोई पीएफआई की तुलना आरएसएस कर रहा है तो कोई इस कार्रवाई को हिटलरशाही की संज्ञा दे रहा है। लेकिन एक कौम को वोट बैंक के रुप में इस्तेमाल करने वाले सेकुलरवादी सियासतदान ये भूल गए कि यह कार्रवाई किसी कौम को डराने के लिए नहीं बल्कि देश को सुरक्षित रखने और देश विरोधी गतिविधियों में संल्पितता की पुख्ता सबूतों के आधार पर की गयी है। वैसे भी पीएफआई पर बैन की मांग पिछले कुछ समय से लगातार हो रही थी. पांच दिन के भीतर दो देशव्यापी छापों में आतंकी कनेक्शन और देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के बड़े सबूत मिलने के बाद से बैन की इसकी संभावना तेज हो गई थी और आज गृह मंत्रालय ने पीएफआई और इसके आठ सहयोगी संगठनों पर बैन लगाने का फरमान जारी कर दिया. लेकिन असदुद्दीन ओवैसी से लेकर लालू, अखिलेश समेत कई खानदानी पार्टियां इस कार्रवाई को बेहद खतरनाक बता रही है। जबकि सच तो यह है कि पीएफआई की जड़े उस ’रक्तबीज’ की तरह हो गयी है, जिन्हें बैन लगाते ही सिमी की तर्ज पर किसी अन्य नाम पर फिर से पनप उठेगी। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या पीएफआई पर बैन से आतंकपरस्त नेताओं की नींद हराम हो गयी है? और दुसरा बड़ा सवाल यह है कि क्या पीएफआई पर बैन के बाद कोई दुसरा आतंकी संगठन नहीं खड़ा होगा? क्योंकि यही बौखलाएं सियासतदान अपनी सियासत चमकाने के लिए किसी दुसरे नाम से सिमी की तर्ज पर अन्य संगठन खड़ा कर देंगे
-सुरेश गांधी
फिलहाल, आतंकवाद के लिए अपनी जीरो टोलेरेंस नीति पर काम करते हुए पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर पांच साल की अवधि के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। गृह मंत्रालय की ओर से इसके लिए अधिसूचना (नोटिफिकेशन) भी जारी कर दी गई है। बता दें, एनआईए ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर एक बार फिर से कार्रवाई करते हुए करीब 200 लोगों को हिरासत में लिया है. इससे पहले भी एनआईए ने पीएफआई के कुछ बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया था. इसी के साथ पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकड़ने लगी। बात दिल्ली के शाहीनबाग में हुए सीएए विरोधी प्रदर्शन की हो या कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद की हो या सीएए विरोधी दंगों की हो या पैगंबर टिप्पणी विवाद की. बात ’सिर तन से जुदा’ के नारे की हो या रैली में हिंदुओं के खात्मे का नारा. इन तमाम मामलों को एक-दूसरे से जोड़ने वाली जो कड़ी है, वो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई ही है. आसान शब्दों में कहें, तो कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पीएफआई का एजेंडा देश में शरिया कानून लागू कराने से शुरू होकर गजवा-ए-हिंद तक जाता है. यह अलग बात है कि कुछ लोग सरकार के इस कदम की सराहना कर रहे है। उनका कहना है कि “सरकार ने कट्टरपंथी संगठन पीएफआई पर प्रतिबंध लगाकर अच्छा कदम उठाया है. भारत की सरजमीं कट्टरपंथी विचारधारा की सरजमीं नहीं है और न यहां ऐसी कट्टरपंथी विचारधारा पनप सकती जिससे मुल्क की एकता-अखंडता को खतरा हो.“
’मिशन 2047’ के एक पिं्रट डॉक्यूमेंट जरिये पीएफआई ने बाकायदा इसका रोडमैप बनाया है. जो कुछ समय पहले बिहार में हुई छापेमारी के दौरान सामने आया था. पीएफआई पर धर्मांतरण के लिए मुस्लिम युवकों को पैसा, आवास, रोजगार भी उपलब्ध कराने की बातें भी सामने आई हैं. लव जिहाद करने के लिए मुस्लिम युवकों को बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती थी कि हिंदू युवतियों से वो किस तरह से अपनी पहचान छिपाएं? वैसे, एनआईए की हाल में की गई छापेमारी में पीएफआई नेताओं के ऑफिस और आवासों से बड़ी मात्रा में कैश, डिजिटल डिवाइस, देश विरोधी-आपत्तिजनक-भड़काऊ दस्तावेज और हथियार भी बरामद किए गए हैं. इस कार्रवाई में ये बात भी सामने आई है कि पीएफआई के निशाने पर भाजपा और आरएसएस के कई नेता थे. पीएफआई पर हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने के लिए कैंप लगाने के भी आरोप हैं. पीएफआई की केरल इकाई से जुड़े कुछ लोगों के इस्लामिक आतंकी संगठन आईएसआईएस में भी शामिल होने के मामले भी सामने आए थे. खुद को एक गैर-सरकारी संगठन बताने वाला पीएफआई धर्मांतरण से लेकर मुस्लिमों में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने समेत कई गैर-कानून गतिविधियों में शामिल रहा है. पीएफआई पर जिहादी आतंकियों से संबंध होने और इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने के आरोप भी लगे हैं. केंद्र सरकार ने पीएफआई के साथ-साथ रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन, नेशनल वीमेन फ्रंट, एंपावर फाउंडेशन पर भी पाबंदी लगाई गई है. पीएफआई पर बीते कुछ दिनों से एनआईए और ईडी की कार्रवाई यूपी समेत कई राज्यों में लगातार जारी है. इस दौरान मंगलवार तक 237 गिरफ्तारी हो चुकी है.
देखा जाएं तो पीएफआई संगठन को बनाने वालों में से काफी संख्या में आतंकी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी के सदस्य रहे हैं. और, सिमी के अनुसार, भारत की तमाम समस्याओं का समाधान सिर्फ इस्लाम ही था. आसान शब्दों में कहें, तो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को किनारे लगाकर इस्लामिक राष्ट्र बनाकर ही देश को बचाया जा सकता था. और, जब 2001 में सिमी पर बैन लगा. तो, इसी के तमाम सदस्यों ने कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, तमिलनाडु में एमएनपी और केरल में एनडीएफ के तौर पर छद्म संगठनों को बनाया. और, इसका केंद्र केरल को बनाया गया. वैसे, सिमी पर प्रतिबंध लगाए जाने का कारण इस संगठन की आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता थी. फिलहाल पीएफआई संगठन का प्रभाव देश के कई राज्यों में फैल चुका है. और, मुस्लिमों के बीच गहरी पैठ रखता है. खासकर शाहीन बाग जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में इस संगठन की मजबूत पकड़ है. वैसे, पीएफआई का दावा है कि ये संगठन मुस्लिमों के हितों और भलाई के लिए काम करता है. लेकिन, कर्नाटक के हिजाब विवाद में पीएफआई के स्टूडेंट विंग की संलिप्तता के बाद आसानी से समझा जा सकता है कि इसका एजेंडा क्या है? लेकिन अफसोस है कि केंद्र सरकार द्वारा लिए इस एक्शन पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ’अपराध करने वाले कुछ लोगों के गलत काम का ये मतलब नहीं कि संगठन को ही बैन कर दिया जाए.’ओवैसी ने कहा, इस तरह का बैन खतरनाक है. ये हर उस मुसलमान पर बैन है जो अपने मन की बात कहना चाहता है. उन्होंने आगे कहा, भारत के काले कानून, यूएपीए के तहत अब हर मुस्लिम युवा को पीएफआई पैम्फलेट के साथ गिरफ्तार किया जाएगा. मैंने यूएपीए का विरोध किया है और यूएपीए के तहत सभी कार्यों का हमेशा विरोध करूंगा. ओवैसी बोले, ये बैन स्वतंत्रता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है जो संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है.
ओवैसी ने सवाल करते हुए कहा, पीएफआई पर बैन लगाया गया लेकिन खाजा अजमेरी बम धमाकों के दोषियों से जुड़े संगठन नहीं बैन हुए. ऐसा क्यों? सरकार ने दक्षिणपंथी बहुसंख्यक संगठनों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया? इससे पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पीएफआई बैन पर कहा कि ऐसे संगठनों पर बैन लगना चाहिए. हालांकि, उन्होंने ये भी कह दिया कि इसी के साथ आरएसएस पर बैन लगना चाहिए. ये लोग मुस्लिम संगठनों को निशाना बना रहे हैं और हर बात में हिंदु-मुस्लिम करते हैं. यह अलग बात है कि इन दोनों नेताओं का जवाब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ अपने तरीके से दिया है। योगी ने कहा, “राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके अनुषांगिक संगठनों पर लगाया गया प्रतिबंध सराहनीय और स्वागत योग्य है. यह ’नया भारत’ है, यहां आतंकी, आपराधिक और राष्ट्र की एकता व अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बने संगठन एवं व्यक्ति स्वीकार्य नहीं.“ जबकि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, “भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा पीएफआई पर प्रतिबंध का स्वागत करता हूं, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का पर्याय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन चुका था पीएफआई,राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाला है यह फैसला.“
अमित शाह ने तोड़ी कट्टरपंथियों की कमर?
देश में जड़े मजबूत कर चुके कट्टरपंथी पीएफआई पर सरकार ने आखिरकार एक्शन ले ही लिया. बता दें, 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद मुस्लिमों के हित की रक्षा के लिए मुस्लिम नेताओं ने भारत में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट को जन्म दिया. 1994 में पहली बार नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट का नाम सामने आया. स्थापना के बाद से इस संगठन की पकड़ धीरे-धीरे केरल में मजबूत होची चली गई. सांप्रदायिक गतिविधियों और धर्म विशेष पर खास फोक को लेकर यह संगठन सरकार और प्रशासन की नजरों में आया. इस बीच 2003 में कोझिकोड में एक चौंका देने वाली घटना में 8 हिन्दुओं को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया है. तब एनडीएफ के आतंकी संगठन आईएसआई के साथ संबंध होने की बात कही गई थी. लेकिन इन आरोपों को संबंधित विभाग साबित नहीं कर पाया. एनडीएफ का दायरा बढ़ता चला गया. 2006 में दिल्ली में एक मीटिंग के बाद एनडीएफ और तीन अन्य मुस्लिम संगठनों विलय होकर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया तैयर किया गया. जहां तक पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई के शुरुआती फेज़ की बात है तो बीते अगस्त महीने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर्नाटक गए थे. कर्नाटक में एक कार्यक्र में शिरकत करने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और राज्य के गृह मंत्री गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र के साथ हाई लेवल मीटिंग की थी. यहीं से पीएफआई के पतन की कहानी शुरू हो गई थी. अमित शाह के दिल्ली लौटते ही पीएफआई के खिलाफ एक्शन प्लान तैयार हुआ और जांबाज अधिकारियों की टीम तैयार हुई.पीएफआई को ध्वस्त करने के लिए अगस्त के आखिरी सप्ताह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ बैठक की. बैठक में पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई का खांका खींचा गया. फिर पीएफआई के खिलाफ तैयार की गई टीमों को उनकी जिम्मेदारी सौंपी गई. इन जिम्मेदारियों में पीएफआई के नेटवर्क का नक्शा तैयार करना, इसके फंडिंग और पूर्व में हुए सभी दंगों और सांप्रदायिक घटनाओं में इसकी संलिप्तता की जांच करना प्रमुख थे. सूत्रों के मुताबिक पीएफआई के खिलाफ एक्शन को हरी झंडी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही दी.
सूत्रों की मानें तो कार्रवाई करने से पहले सारी जानकारी और एक्शन प्लान प्रधानमंत्री के सामने रखी गई. उनके ग्रीन सिग्लन देते ही डोभाल ने पीएफआई की जड़ों को हिलाना शुरू कर दिया. यहां आपका यह जानना जरूरी है कि दो सिंतबर को डोभाल और पीएम मोदी एक साथ आईएनएस विक्रांत के इवेंट में केरल पहुंचे थे. पीएम मोदी के वहां से लौटने के बाद डोभाल ने केरल के टॉप रैंक के पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग और मुंबई के लिए रवाना हुए. राजभवन के सुरक्षा अधिकारियों और महाराष्ट्र के टॉप पुलिस अफसरों के साथ डोभाल की मीटिंग हुई. कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए अजीत डोभाल ने 15 सितंबर को छप्। और म्क् के अधिकारियों के साथ बैठक की और कार्रवाई का खांका खीचा. डोभाल का आदेश मिलते ही 22 सितंबर को एनआईए और ईडी की टीमें एक्शन मोड में आई गई. केंद्रीय एजेंसियों ने एक साथ 15 राज्यों में च्थ्प् के 150 से ज्यादा ठिकानों पर छापा मारा. छापेमाररी में केरल से पीएफआई के 22, महाराष्ट्र से 20, कर्नाटक से 20, तमिलनाडु से 10, असम से 9, उत्तर प्रदेश से 8, आंध्र प्रदेश से 5, मध्य प्रदेश से 4, पुडुचेरी से 3, दिल्ली से 3 और राजस्थान से दो सदस्यों और पदाधिकारियों को अरेस्ट किया गया. एजेंसियों ने एक ही दिन में पीएफआई के 106 सदस्यों को अरेस्ट किया. 22 सितंबर के बाद केंद्रीय एजेंसी ने पीएफआई के खिलाफ दूसरी कार्रवाई 27 सितंबर को शुरू की. 7 राज्यों में पीएफआई के 206 सदस्यों को हिरासत में लिया गया. कर्नाटक में 80, यूपी में 57, असम और महाराष्ट्र से 25-25, दिल्ली में 32, मध्यप्रदेश में 21, गुजरात में 17 पीएफआई सदस्यों को अरेस्ट किया गया.