भव्यता, दिव्यता और आस्था का संगम होगा, गूजेंगे वेद मंत्र

13 दिसंबर को काशी विश्वनाथ धाम लोकार्पण की पहली वर्षगांठ

तीनों लोको में न्यारी शिव के त्रिशुल पर बसी हजारों वर्ष पुरानी काशी को देश की धार्मिक राजधानी कहा जाता है। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में पुर्ननिर्माण के लिए एक अरसे से छटपटाता रहा, पर वह संकट अब दूर हो चला है। काशी के बाबा विश्वनाथ धाम 352 साल बाद एक बार फिर नए कलेवर में है। 13 दिसंबर, 2021 को काशी के इस भव्य स्वरूप को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों को समर्पित किए थे। मंगलवार को धाम के लोकार्पण की पहली वर्षगांठ है। इसे यादगार बनाने के लिए मंदिर न्यास और काशीवासियों के सहयोग से भव्य बनाने की तैयारी हैं। काशीवासी जहां बाबा विश्वनाथ की शोभायात्रा निकालेंगे, वहीं मंदिर परिसर वेदमंत्रों से गुंजायमान होगा। कई संत, महात्मा और धर्माचार्य भी इस आयोजन के साक्षी बनेंगे। मंदिर में हवन, पूजन से लेकर गोष्ठी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शृंखला श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध करेगी। पार्श्व गायिका अनुराधा पौडवाल के भजनों की सुर सरिता में भक्त गोते लगाएंगे। खास बात यह है कि लोकार्पण के बाद काशी में धार्मिक पर्यटन को मानो पंख लग गये हैं

सुरेश गांधी

जी हां, धीरे धीरे ही सही काशी अपना कलेवर बदल रही है। काशी के धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भों का जीवंत दस्तावेज लिखने जा रहा काशी विश्वनाथ धाम, जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय और अनोखा बन गया है। किसी ने कभी सोचा भी नहीं था इन 7 सालों में 352 साल बाद 12 ज्योर्तिलिंगों में शुमार सोमनाथ व रामेश्वर की तर्ज पर बाबा विश्वनाथ भी नए रुप में देश-दुनिया के लिए आकर्षण के केन्द्र मेें होंगे। यह अलग बात है कि जब काशी की धरती पर साल 2014 में पीएम मोदी ने कहा था, मुझे बीजेपी ने वाराणसी नहीं भेजा है, ना ही मैं खुद आया हूं. मुझें ’गंगा मां’ ने बुलाया है, तो लोग इसके अलग-अलग मायने निकाल रहे थे। लेकिन आज जब बाबा विश्वनाथ धाम दमक रहा है। देश-दुनिया के लाखों श्रद्धालुओं का आस्था बन गया है।

वाराणसी में पर्यटन के क्षेत्र में जिस तरीके से महज एक साल में दस गुना से अधिक की बढ़ोत्तरी की है, वह इस बात का द्योतक है कि आने वाले समय में पर्यटन का भविष्य बेहद सुनहरा है। खासकर श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद तो इसमें गजब का उछाल आया। इसके इतर लगातार पर्यटन के क्षेत्र में विकास से काशी में बड़ा बदलाव आया है। वाराणसी में बढ़े पर्यटकों की संख्या से आसपास के जिले खासकर मीरजापुर और इलाहाबाद को भी लाभ मिल रहा है। ऐसा बेहतर कनेक्टिविटी की वजह से भी हो सका है। इस बार सावन में श्रद्धालुओं के आने के सारे रिकार्ड टूट गए तो आम दिनों में भी स्थिति उत्साहजनक है। अमूमन बाहर से आने वाले श्रद्धालु काशी में विश्वनाथ, काल भैरव, संकट मोचन मंदिर सहित अन्य स्थानों के साथ मीरजापुर मां विध्यवासिनी के दरबार जाते हैं। कोई ऐसा पर्व-त्योहार या महत्वपूर्ण तिथि नहीं होती जब पर्यटकों से काशी न भर जाती हो, होटल न फुल हो जाते हों। आगरा जैसे शहर से आज काशी पर्यटन के क्षेत्र में आगे है तो यह यूं ही नहीं है। यह इंगित करता है कि आने वाले समय में हम कहां होंगे।

पर्यटन विभाग भी इस दिशा में कोई कोर कसर छोड़ नहीं रहा है। यहां वाटर टूरिज्म को बढ़ावा दिया गया, जिसके तहत चार क्रूज संचालित हो रहे हैं तो बजड़ों की संख्या 50 से ऊपर हो चुकी है। रात को भी लोग नौका विहार का लुत्फ ले रहे हैं। देव दीपावली के इतर गंगा आरती, पंचकोसी यात्रा, अंतरग्रही परिक्रमा, घाटों का सुंदरीकरण, सारनाथ का विकास, गलियों का कायाकल्प पर्यटकों को लुभा रहा है। वर्ष 2019 – जनवरी: 74, 961, – जुलाई – 3, 94, 633 वर्ष 2022 – जनवरी: 7,81, 071 – जुलाई- 40, 44, 886 है। उन्होंने बताया कि श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी की वजह से बाबा के चढ़ावे में वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि अप्रैल 2021 में 71 लाख चढ़ावा आया था जबकि 2022 के अप्रैल महीने में पांच करोड़ 45 लाख दान आया है। मई 2021 में 21 लाख की आमदानी हुई थी, जबकि मई 2022 में तीन करोड़ 24 लाख का चढ़ावा आया है। वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च तक) में अभी तक यह चढ़ावा 28.37 करोड़ हो गया है. इस चढ़ावे को लेकर ये बात भी सामने आई है कि बाबा विश्वनाथ के भक्त डिजिटल इंडिया मुहिम में भी बड़ा योगदान दे रहे हैं. कुछ चढ़ावे में से 40 फीसदी ऑनलाइन चढ़ाया गया है. गौरतलब है कि कोरोना काल से ठीक पहले साल 2018-19में सर्वाधिक 26.65 करोड़ रुपये चढ़ावा आया था. इसमें अप्रैल और मई में रिकॉर्ड 9.5 करोड़ रुपये चढ़ावा के तौर पर आए थे. खास यह है कि काशी विश्वनाथ धाम में 27 मंदिरों को विग्रह सहित स्थापित किया गया है। इससे पहले राजराजेश्वर का भव्य दरबार सतरंगी रोशनी से सराबोर है। दिन के वक्त इस धाम की आभा तो अद्भुत दिखती ही है, लेकिन रात में ऐसा लगता है जैसे आसमान से तारे जमीन पर उतर आए हों। कहीं नीली, कहीं सुनहरी तो कहीं सतरंगी रोशनी बिखेरती एलईडी लाइट मंदिर परिसर की भव्यता को चार चांद लगा रही है।

ऐतिहासिक दस्तावेज
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर के के टूटने का उल्लेख 1034 में मिलता है। 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। 1194 में मोहम्मद गोरी ने इसे लूटने के बाद तोड़ा। स्थानीय लोगों ने इसे फिर बनवाया। 1447 में जौनपुर के सुल्तान ने इसे फिर से तोड़ा। अकबर की सर्वसमावेशी नीति के चलते टोडरमल ने 1585 में फिर इसका जीर्णोद्धार करवाया। औरंगजेब के फरमान के बाद एक बार फिर 1669 में मुगल सेना ने विश्वनाथ मंदिर न सिर्फ ध्वस्त कर दिया था, बल्कि परिसर में ही ज्ञानवापी मस्जिद बना दिया। 352 साल पहले इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1777 से 80 के बीच मंदिर का पुर्ननिर्माण करायी थी। लेकिन उसके पुराने स्वरुप, वैभव व गौरव को नहीं लौटा पाई। इसके बाद 1836 में महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित कराया, लेकिन तब से लेकर अब तक सदियां बीत गईं, खास तौर से उस दौर जब हर तीर्थस्थल जैसे उज्जैन का महाकालेश्वर, कोलकाता का महाकाली मंदिर, तिरुपति बालाजी, सोमनाथ से लेकर रामेश्वरम् तक के सभी मंदिर अपने नए रुप में आ चुके है। लेकिन बाबा विश्वनाथ धाम वहीं पुराने तंग गलियों में मंदिर का ढ़ाचा जस की तस रहा।

भारत ही नहीं दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन के लिए काफी झंझावतों का सामना करना पड़ता था। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उस वक्त महसूस किया जब वे वाराणसी से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वर्ष 2014 में मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आए थे। वीआईपी प्रबंधों के कारण उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं हुआ, लेकिन वे आम श्रद्धालुओं की पीड़ा को समझ चुके थे कि आम दिनों में सामान्य श्रद्धालुओं को मंदिर परिसर तक पहुंचने और दर्शन पूजन करने में कितनी परेशानियों का सामना करना होता होगा। यह संयोग है कि 118 वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रीका से आए एक अनजान गुजराती बैरिस्टर महात्मा गांधी फरवरी 1916 में बीएचयू के स्थापना सम्मेलन समारोह में आएं। इस दौरान वे काशी विश्वनाथ मंदिर गए। मंदिर में दर्शन पूजन करने में ऐसी ही दिक्कत पेश आई थी। तब उन्होंने कहा था मंदिर में गंदगी व दुर्व्यस्था और पांडवों के लालची आचरण के बीच आध्यात्मिक अनुभूति और आत्मिक शांति महसूस नहीं की जा सकती। लेकिन धन्य है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिन्होंने अपने ही कार्यकाल में कॉरीडोर का शिलान्यास कर परिसर के प्राचीन मंदिर जो चुरा कर घरों में कैद कर लिए गए थे, उन्हें मुक्त कराया।

बाबा का बढ़ा दायरा
मंदिर की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का जो परिसर 5 हजार वर्गफीट में भी नहीं था, अब उसका दायरा विश्वनाथ धाम या काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम से काशी विश्वनाथ विस्तारीकरण और सुंदरीकरण परियोजना के तहत बढ़कर 5 लाख 27 हजार 730 वर्ग फीट तक बढ़ गया है। इसमें श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए एक-दो नहीं कई इमारतें हैं। 27 मंदिरों की मणिमाला भी बनकर तैयार है। खास यह है कि लोकापर्ण के बाद 13 दिसम्बर को पहली वर्षगांठ को भव्य बनाने की तैयारी है।

सुविधाएं
स्थानीय लोगों, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और मंदिर के पुजारियों के आराम और सुरक्षा के लिए कई नई सुविधाएं जोड़ी गई हैं। इनमें लॉकर के साथ तीन तीर्थ सुविधा केंद्र शामिल हैं जहां आगंतुक अपना निजी सामान और जूते छोड़ सकते हैं, कतार के लिए पंखे के साथ कवर क्षेत्र, मंदिर ट्रस्ट के लिए एक छोटा गेस्टहाउस, तीर्थयात्रियों के लिए आवास, बुजुर्गों और विकलांगों के लिए एक धर्मशाला, आध्यात्मिक किताबों की दुकान, हस्तशिल्प की दुकानें, संग्रहालय और प्रदर्शनी स्थल, सभा के लिए एक हॉल, प्रसाद तैयार करने के लिए एक बड़ा रसोईघर और मंदिर के पुजारी के लिए कपड़े बदलने की सुविधा शामिल हैं। मुख्य द्वार के शीर्ष पर एक व्यूइंग गैलरी है, जहां से कोई भी गंगा नदी के विशाल विस्तार को देख सकता है और साथ ही मंदिर का दृश्य भी देख सकता है। देश और दुनिया से लंबी दूरी तय करने के बाद तीर्थयात्री मुश्किल से कुछ क्षण मंदिर में बिताते हैं। मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियां तक उन्हें आध्यात्मिक अनुभव से जोड़ेंगी। परियोजना ने मंदिर परिसर को दिव्यांग जनों के लिए पूरी तरह से सुलभ बना दिया है। यह गंगा नदी से मंदिर तक व्हीलचेयर के अनुकूल पहुँच प्रदान करता है। परिसर को पूरी तरह से रोशनी के लिए डिजाइन किया गया है। इसमें तीन अलग-अलग स्थानों पर उच्च गुणवत्ता वाले और पर्याप्त शौचालय हैं। इसमें स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए समर्पित स्थान भी हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सुरक्षा व्यवस्था एक विनीत तरीके से की जा सकती है, परियोजना में विभिन्न सुविधाएं हैं। प्रयास सभी लिंग और आयु समूहों के लिए एक समावेशी स्थान बनाने का है।

सुबह से शुरू होंगे आयोजन
मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील वर्मा ने बताया कि श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के एक साल पूरा होने पर 13 दिसंबर को 11 बजे से धाम में हवन पूजन का आयोजन किया गया है। इसमें साधु संतों के साथ ही गणमान्य लोग मौजूद रहेंगे। श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद की अध्यक्षता में श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव विषय पर संगोष्ठी होगी। शाम को मशहूर गायिका अनुराधा पौडवाल की प्रस्तुति होगी। भजन संध्या में कोई भी भक्त धाम में पधार सकता है।

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