यमुना क्यों ओढ़ रही सफेदी की चादर: प्रदूषण तले दबी नदी, झाग से ढका पानी

बारिश के बीच यमुना ने सफेदी की चादर ओढ़ ली है। दूर-दूर फैली झाग की मोटी चादर दिल्ली-एनसीआर के लोगों को हैरान कर रही है। शुक्रवार को ओखला बैराज के बाद नदी का पानी भी दिखना मुश्किल है। अमूमन सर्दियों में बनने वाली झाग ने इस बार पहले ही यमुना को ढंक लिया है।

एनजीटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यमुना नदी की लंबाई करीब 1,370 किमी है। इसमें से पल्ला से कालिंदी कुंज की लंबाई 54 किमी है। वजीराबाद से कालिंदी कुंज का हिस्सा 22 किमी है। यह नदी की पूरी लंबाई का सिर्फ दो फीसदी है, लेकिन करीब 76 फीसदी प्रदूषण इसी हिस्से में होता है। मानसून के अलावा साल के नौ महीनों में नदी में ताजा पानी नहीं रहता। छठ से पहले नदी में झाग आम रहती है। लेकिन इस बार बीच मानसून की बारिश नदी झाग तले दब गई है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि साल भर प्रदूषित रहने वाली यमुना में झाग अमूमन सर्दी बढ़ने के साथ बनता है। लेकिन इस बार बारिश की मौसम में ही यह तस्वीर दिख रही है। इसका सीधा मतलब यह है कि प्रदूषण के भार तले यमुना दबी है। जब ओखला बैराज से तेजी से पानी नीचे गिरता है, तो उससे झाग बनती है। यूरोपीय देशों के अध्ययन बताते हैं कि इसकी एक वजह नदी में अचानक से दूषित पानी में शैवालों का बढ़ जाना भी हो सकता है। विशेषज्ञों ने इसके लिए अलग से अध्ययन की जरूरत है। तभी वास्तविक तस्वीर सामने आएगी।

फॉस्फेट व नाइट्रेट से बनती झाग
पर्यावरणविद् फैयाज खुदसर बताते हैं कि वैसे तो पेड़-पौधों की वसा से भी बनती है, लेकिन इससे कोई नुकसान नहीं होता। जबकि साबुन से निकला फास्फेट व नाइट्रेट त्वचा को नुकसान पहुंचाता है। फॉस्फेट पानी की बूंदों के सतह का तनाव (सर्फेस टेंशन) कम कर देता है। इससे बड़ी मात्रा में झाग बनती है। यह पानी ऊंचाई से गिरता है तो झाग की मात्रा बढ़ जाती है। इस बार बारिश के मौसम में ही झाग बन रही है।

यूं आता फास्फेट व नाइट्रेट
फास्फेट व नाइट्रेट एक तो घरों में इस्तेमाल होने वाले साबुन से आता है। वहीं, फैक्ट्रियां भी इसकी मात्रा बढ़ा देती हैं। इससे यह भी साबित होता है कि यमुना में बड़ी मात्रा में असंसोधित सीवेज छोड़ा जा रहा है। साबुन में फास्फेट कम करने से झाग भी सीमित हो जाएगी।

इसलिए बनता पानी में झाग
. कालिंदी कुंज में ज्यादा झाग इसलिए बनता है, क्योंकि इस हिस्से में नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित रहती है और पानी ओखला बैराज से ऊंचाई से छोड़ा जाता है।
. पानी में ज्यादा फॉस्फेट व नाइट्रेट होता है।
. कार्बनिक अणुओं के सड़ने से झाग बनता है।
. पेड़-पौधों के अलावा घरों व फैक्ट्रियों से निकलने वाले सीवेज से भी यह बनता है।
. इससे पानी का सतही तनाव कम हो जाता है।
. बुलबुला पानी की सतह पर तैरता है।

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