EVM को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ‘मध्य प्रदेश जन विकास पार्टी’ की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को चुनाव आयोग द्वारा नहीं, बल्कि कुछ कंपनियों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। शीर्ष अदालत ने साथ ही कहा कि अदालत ऐसी जगह नहीं है जहां हर कोई सिर्फ कुछ प्रचार पाने के लिए चला आए।

पीठ ने लगाया 50 हजार रुपये का जुर्माना

जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने 50 हजार रुपये जुर्माने के साथ याचिका खारिज करते हुए कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत निर्वाचन आयोग जैसा संवैधानिक निकाय चुनाव प्रक्रिया की निगरानी करता है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, ‘हमारे देश में ईवीएम का इस्तेमाल दशकों से किया जा रहा है, लेकिन समय-समय पर ये मुद्दे उठाए जाते हैं। यह भी ऐसा ही एक प्रयास है। ऐसा लगता है, जिस पार्टी को मतदाताओं से ज्यादा पहचान नहीं मिलती, वह अब याचिकाएं दाखिल करके पहचान बनाना चाहती है

पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि ऐसी याचिकाओं को रोका जाना चाहिए और इसलिए यह याचिका 50 हजार रुपये जुर्माने के साथ खारिज की जाती है। यह राशि चार हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट समूह-ग (गैर लिपिकीय) कर्मचारी कल्याण संघ के कोष में जमा कराई जाएगी।’ मध्य प्रदेश जन विकास पार्टी ने हाई कोर्ट के पिछले साल दिसंबर के आदेश को चुनौती थी। उसने भी पार्टी की याचिका खारिज कर दी थी।

आईएनआई-सीईटी की बाकी दौर की काउंसलिंग की मांग 

सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया जिसमें केंद्र और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित अन्य को बिना किसी और देरी के आइएनआइ-सीईटी काउंसलिंग के शेष दौर आयोजित करने का निर्देश देने की मांग की गई है। राष्ट्रीय महत्व के संस्थान की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (आइएनआइ-सीईटी) कुछ एम्स और अन्य चिकित्सा संस्थानों के स्नातकोत्तर (पीजी) पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित की जाती है।

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