चीनी मिलों के सामने गन्ने का संकट, समय से पहले दम तोड़ सकता है पेराई सत्र

गन्ना उद्योग दो-तरफा संकट से गुजर रहा है। उत्तर भारत के राज्यों में रेड रोट (लाल सड़न) और दक्षिण के राज्यों में बेमौसम वर्षा के चलते गन्ना के उत्पादन में भारी गिरावट देखी जा रही है। उत्पादकता भी बुरी तरह प्रभावित है। इसका सीधा असर चीनी मिलों पर पड़ रहा है। नवंबर से अप्रैल तक चलने वाला पेराई सत्र मार्च के मध्य में ही दम तोड़ सकता है।

राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना महासंघ (एनएफसीएसएफ) के अनुसार देश में अभी सिर्फ 507 चीनी मिलें ही चालू हैं, जबकि पिछले वर्ष 524 मिलें चालू थीं। यानी 17 मिलों को अभी तक चालू होने का इंतजार है। सबसे ज्यादा तमिलनाडु और महाराष्ट्र में चीनी मिलें बंद हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार की चीनी मिलों की स्थिति भी अच्छी नहीं है।

पेराई के लिए अभी से गन्ने की कमी होने लगी है। आशंका है कि कई चालू मिलों को मार्च में ही बंद कर देना पड़े। ऐसे में चालू सत्र में चीनी उत्पादन में 49 लाख टन की कमी आने का अनुमान है। पिछले वर्ष 319 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इस बार सिर्फ 270 लाख टन का अनुमान है। चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र है, जहां टाप शूट बोरर और रेड राट (लाल सड़न) बीमारी के चलते उत्पादन नीचे चला आया है।

महाराष्ट्र और यूपी का हाल

पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में महाराष्ट्र में करीब सौ लाख टन गन्ना अभी तक चीनी मिलों के पास नहीं पहुंच पाया है। हालांकि उत्तर प्रदेश में अभी तक आठ लाख टन ज्यादा गन्ने की पेराई हो चुकी है, लेकिन जल्द ही गन्ने की कमी का खतरा दिख रहा है, क्योंकि इस बार उत्तर भारत में पहले बाढ़ और फिर पर्याप्त ठंड नहीं पड़ने के चलते मिलों तक गन्ना पहले ही आने लगे थे।

फिलहाल गन्ने के अभाव में कई मिलों को घंटों बंद रखना पड़ रहा है। हालांकि ऐसी स्थिति किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है, क्योंकि कम आपूर्ति के चलते पेराई सत्र के आखिर में गन्ने की कीमत अच्छी मिल सकती है। अधिक से अधिक गन्ना लेने के लिए मिलों के बीच प्राइस वार के हालात बन सकते हैं। उत्तर प्रदेश की मिलें तो अभी से ही पड़ोस के राज्य उत्तराखंड एवं बिहार से अधिक मूल्य पर गन्ना मंगाना शुरू कर दिया है।

अन्य राज्यों का हाल

अन्य राज्यों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। उत्पादकता दर में 20 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में गन्ने की फसल का विकास पर्याप्त नहीं हो पाया है। समय से पूर्व फसल फ्लावरिंग स्टेज (अर्ली-मैच्योर) में पहुंच गई है। ऐसी स्थिति में सूक्रोज की मात्रा कम हो जाती है और गन्ने का वजन भी कम हो जाता है।

यही कारण है कि महाराष्ट्र में जो मिलें चालू भी हैं, उन्हें गन्ने की कमी का सामना करना पड़ रहा है। कर्नाटक एवं तमिलनाडु में भी यही स्थिति है। एनएफसीएसएफ के अनुसार तमिलनाडु में चालू सत्र के लिए 8.50 लाख टन तक ही पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले सत्र की तुलना में 10.75 लाख टन से कम है।

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