स्टडी में हुआ खुलासा, सर्दियों के मौसम में भारत में बढ़ सकता है कोरोना
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच IIT-भुवनेश्वर और एम्स की एक स्टडी के नतीजे परेशान करने वाले हैं. इस स्टडी में दावा किया गया है कि मॉनसून और सर्दियों के मौसम में तापमान में गिरावट की वजह से कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ सकते हैं. ये स्टडी IIT-भुवनेश्वर के विनोज वी, गोपीनाथ एन, लैंडू के और एम्स भुवनेश्वर के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की बिजयिनी बी और बैजयंतिमाला एम द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी.
स्टडी के अनुसार, बारिश, तापमान में कमी और सर्दियों में मौसम ठंडा होने की वजह से कोरोना वायरस को और फैलने का मौका मिल सकता है. इस स्टडी का शीर्षक ‘भारत में COVID-19 का प्रसार और तापमान और सापेक्षिक आर्द्रता पर निर्भरता’ है.
स्टडी में कहा गया है, ‘Covid-19 महामारी एक ऐसी हेल्थ इमरजेंसी है जो पहले कभी नहीं देखी गई. ये व्यापक पैमाने पर तेजी से फैल रहा है और इसकी वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को झटका लगा है. 21वीं सदी के पिछली महामारियां (SARS-CoV-2, इन्फ्लूएंजा AH1N1) भी मौसम में बदलाव की वजह से ज्यादा फैली थीं.’
ये रिपोर्ट अप्रैल और जून के बीच 28 राज्यों में कोरोना वायरस के प्रकोप, प्रकार और इनकी संख्या को ध्यान में रखकर की गई है. डॉक्टर विनोज के अनुसार स्टडी में पता चला है कि तापमान में वृद्धि से वायरस के प्रसार में गिरावट आती है. ये स्टडी अभी अपने प्री-प्रिंट चरण में है और इसका कहना है कि तापमान और ह्यूमिडिटी का किसी बीमारी की वृद्धि दर और उसके दोगुना होने के समय पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है.
डॉक्टर विनोज ने PTI को बताया, ‘तापमान में एक-डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण मामलों में 0.99 प्रतिशत की कमी होती है. साथ ही केस के दोगुना होने का समय 1.13 दिन बढ़ सकता है. स्टडी में पाया गया कि ह्यूमिडिटी की वजह से कोरोनावायरस के मामलों की वृद्धि दर और दोगुना होने के समय में 1.18 दिनों तक कमी आ सकती है.
स्कूल ऑफ अर्थ, ओशन एंड क्लाईमैटिक साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर वेलू विनोज ने बताया कि ये स्टडी मूल रूप से ये जानने के लिए की गई थी पर्यावरण की वजह से कोरोना वायरस फैलने की स्थिति कैसे प्रभावित हो सकती है.
प्रोफेसर वेलू विनोज ने कहा, ‘हमने सिर्फ मामलों की संख्या पर ध्यान दिया है कि यह कैसे समय के साथ बदल रहा है और यह किस तरह तापमान से संबंधित है. हमने पाया कि जब तापमान बढ़ता है, तो मामलों की संख्या कम हो जाती है और ये हमारी स्टडी की प्रमुख खोज थी.’
हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि इस स्टडी के सटीक प्रभाव को जानने के लिए अभी और अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है.