डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में H1B visa नियमों में सख्ती

विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन सरकार भारतीय सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियों के लिए कड़े नियम लागू कर सकती है, जिसमें स्थानीय कर्मचारियों के लिए उच्च वेतन आवश्यकताएं शामिल हैं। यदि डेमोक्रेट्स सत्ता में बने रहते हैं, तो कमला हैरिस की सरकार एच-1बी वीजा की बाधाओं को कम कर सकती है, जिससे भारतीय आईटी फर्मों को लाभ होगा क्योंकि वे अमेरिकी मांग को पूरा करने के लिए अधिक प्रतिभाओं को तैनात करने में सक्षम होंगी। बाइडेन प्रशासन ने एच-1बी प्रणाली को आधुनिक बनाने, लॉटरी प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ाने और धोखाधड़ी को रोकने के लिए कार्य किया।

टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस (infosys) और विप्रो सहित भारतीय आईटी कंपनियां एच-1बी वीजा प्राप्त करने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल हैं।

विशेषज्ञों की राय

पायनियर लीगल के पार्टनर अनूपम शुक्ला ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से भारतीय आईटी क्षेत्र का प्रदर्शन डेमोक्रेटिक प्रशासन के तहत बेहतर रहा है, जिसका तकनीक और नवाचार के प्रति सकारात्मक रुख है। शुक्ला ने कहा, “हैरिस की सरकार एच-1बी वीजा सीमा बढ़ाने या उच्च कुशल प्रवासियों के लिए नई राहें विकसित करने पर विचार कर सकती है।”

व्हाइट एंड Brief – एडवोकेट्स एंड सॉलिसिटर्स के प्रबंध भागीदार निलेश त्रिभुवन ने कहा कि ट्रम्प प्रशासन के तहत कड़े एच-1बी नियमों, कठोर जांच और प्रतिबंधों की उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने कहा, “यह भारतीय आईटी कंपनियों को स्थानीय भर्ती और ऑनशोर प्रतिभा पूलों में अधिक निवेश करने के लिए मजबूर करेगा।”

ट्रम्प के पिछले कार्यकाल के दौरान भारतीय आईटी उद्योग ने वीजा अस्वीकृति दरों में वृद्धि, पात्रता मानदंडों में कड़ी शर्तें, बढ़ी हुई वेतन आवश्यकताएं और लंबी प्रक्रिया समय का सामना किया, जिससे उनकी परियोजनाओं को कुशलतापूर्वक पूरा करने की क्षमता प्रभावित हुई। 

2020 में ट्रम्प प्रशासन ने एच-1बी वीजा धारकों के लिए न्यूनतम वेतन को काफी बढ़ाने के लिए एक अंतरिम अंतिम नियम पेश किया, जिसे कई लोगों ने विदेशी कर्मचारियों को काम पर रखने में बाधा के रूप में देखा। वेतन वृद्धि के अलावा ट्रम्प प्रशासन ने एच-1बी पात्रता को सीमित करने के लिए “विशेषता व्यवसायों” की संकरी परिभाषा का प्रस्ताव रखा था। शुक्ला ने कहा, “यदि ये नीतियां लौटती हैं, तो एच-1बी वीजा पर निर्भर कंपनियों को बढ़ी हुई भर्ती लागत और संभवतः प्रतिभा की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

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