उत्पन्ना एकादशी पर करें श्रीकृष्ण की खास पूजा

सनातन धर्म में एकादशी व्रत बेहद लाभकारी माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। मान्यताओं के अनुसार, भक्त इस दिन का उपवास रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि (Utpanna Ekadashi 2024) यानी 26 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। कहा जाता है कि इस तिथि पर कृष्ण जी की आराधना भी जरूर करनी चाहिए, क्योंकि वह श्री हरि का अवतार हैं। ऐसे में सुबह उठकर स्नान करें। सूर्य देव को अर्घ्य दें। फिर कान्हा जी और भगवान विष्णु को फल, फूल, मिठाई और माखन-मिश्री आदि चीजें चढ़ाएं।

उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें और कृष्ण चालीसा का पाठ करें। आरती से पूजा को पूर्ण करें, तो आइए यहां पढ़ते हैं। माना जाता है कि मुरलीधर की पूजा से घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।

।।कृष्ण चालीसा।। (Krishna Chalisa)

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।

अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥

जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।

जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

जय नट-नागर नाग नथैया।

कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।

आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी।

होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो।

आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

रंजित राजिव नयन विशाला।

मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।

कटि किंकणी काछन काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे।

छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।

आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो।

अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।

भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।

मसूर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।

गोवर्धन नखधारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।

मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो।

कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।

चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

करि गोपिन संग रास विलासा।

सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

केतिक महा असुर संहारयो।

कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

महि से मृतक छहों सुत लायो।

मातु देवकी शोक मिटायो॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

लाये षट दश सहसकुमारी॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।

जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो।

भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो।

तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

लखि प्रेम की महिमा भारी।

ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके।

लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये।

भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

मीरा थी ऐसी मतवाली।

विष पी गई बजाकर ताली॥

राना भेजा सांप पिटारी।

शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

उर ते संशय सकल मिटायो॥

तब शत निन्दा करी तत्काला।

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

दीनानाथ लाज अब जाई॥

तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।

बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया।

डूबत भंवर बचावत नैया॥

सुन्दरदास आस उर धारी।

दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो।

क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै।

बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

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