तो इसलिए भगवान शिव को चढ़ाया जाता हैं भांग, धतूरा और बेलपत्र, जानें इसके पीछे का यह बड़ा रहस्य

सावन का महीना जारी हैं और शिव मंदिरों में शिव की पूजा के लिए भक्तों का जमवाड़ा लगा हुआ हैं। शिव को भोले-भंडारी कहा जाता हैं। जो भी उनकी शरण में गया हैं उन्होंने अपनी कृपा बरसाई ही हैं फिर वह चाहे देवता हो, असुर हो या मानव। हर भक्त शिव की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करते हुए आशीर्वाद पाना चाहते हैं। शिव की पूजा में सभी लोग शिव के पसंदीदा आक, भांग, बेलपत्र, धतूरा आदि चढ़ाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर भगवान शिव को भांग, धतूरा और बेलपत्र इतने अतिप्रिय क्यों हैं? इसके पीछे एक पौराणिक कहानी हैं जिसका वर्णन शिव महापुराण की कथा में मिलता है और आज हम आपको उसी के बारे बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं…

शिव महापुराण के अनुसार, जब अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने साथ मिलकर सागर मंथन किया था तो मंथन के दौरान कई तरह की रत्न, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी आदि निकले थे। इसके साथ अमृत से पहले हलाहल भी निकला था। हलाहल विष इतना विषैला था कि इसकी अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, इस विष से पूरी सृष्टि में हाहाकार मचना शुरू हो गया था। तब भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए हलाहल विष का पान कर लिया था। भगवान शिव ने विष को गले से नीचे नहीं उतरने दिया था, जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था और उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ गया। विष का प्रभाव धीरे-धीरे महादेव के मस्तिष्क पर चढ़ने लगा, जिसकी वजह से वह काफी परेशान हो गए और अचेत अवस्था में आ गए। भोलेनाथ की इस तरह की स्थिति में देखकर सभी देवी-देवताओं अचंभित हो गए और उनको इस चुनौती से निकालना बड़ी परेशानी बन गई।

देवीभागवत पुराण में बताया गया है कि देवताओं की ऐसी स्थिति से निकालने के लिए मां आदि शक्ति प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान शिव का कई जड़ी-बूटियों और जल से उनका उपचार करना शुरू कर दिया। मां भगवती के कहने पर सभी देवी-देवताओं ने महादेव के सिर पर भांग, आक, धतूरा व बेलपत्र रखा और निरंतर जलाभिषेक करते रहे। जिसकी वजह से महादेव के मस्तिष्क का ताप कम हुआ। उसी समय से भगवान शिव को भांग, बेलपत्र, धतूरा और आक चढ़ाया जाता है। इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इन चीजों को अर्पित किया जाता है।

शिव को भूलकर भी न चढ़ाएं ये चीजें

भगवान शिव का अभिषेक आप लौटे में जल भर कर सकते हैं लेकिन इस बात का खास ख्याल रखें की कभी भी शंख में जल भरकर शिवजी का अभिषेक नहीं करना चाहिए।


शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी माना गया है। जिसके कारण इन्हे विष्णुजी तथा उनके अवतारों के अलावा और किसी देवता में अर्पित नहीं किया जा सकता है।


टूटा हुआ चावल पूर्ण नहीं होता है इसे अशुद्ध माना जाता है। इसलिए यह शिवजी को अर्पित नहीं करना चाहिए।


भगवान शिव पर कभी भी नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए। साथ ही बात का भी ख्याल रखें की भगवान शिव को चढ़ाया गया नारियल कभी भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए।


कभी भी कटे-फटे बिल्वपत्र भगवान को न चढाए। इसका फल आपको उल्टा मिलेगा। इसीलिए जब भी भगवान को बिल्व पत्र चढाए तो धोकर और देखकर चढाए।


कहा जाता है कि भगवान शिव की पूजा में केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता। केतकी का फूल भगवान शिव को पूजा में स्वीकार्य नहीं होता है।


भगवान शिव को कभी भी हल्दी मेहंदी और सिंदूर नहीं चढ़ाना चाहिए। दरअसल, ये चीजों स्त्रियों के श्रृंगार में काम आती है। शिव पौरुषत्व का प्रतीक है।


महादेव की पूजा में तिल और चम्पा के फूल का प्रयोग नहीं किया जाता है, इसलिए इसे भूलकर भी न चढ़ाएं।

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