…तो इसलिए किया जाता है यज्ञ, ये है इसके पीछे का रहस्य

जन्म से मृत्युपर्यन्त सोलह संस्कार या कोई शुभ धर्म कृत्य यज्ञ अग्निहोत्र के बिना अधूरा माना जाता है। वैज्ञानिक तथ्यानुसार जहाॅ हवन होता है, उस स्थान के आस-पास रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु शीघ्र नष्ट हो जाते है। नित्य हवन हेतु छोटा ताम्रपात्र लें, उसमें तिल से आधे जौ, जौ से आधी शक्कर, शक्कर से आधा घी लें व हवन करें। जप संख्या की दशांश आहूतियाॅ अवश्य देनी चाहिए। 

हवन कुण्ड व कलश-स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर आकर्षक सुरूचि पूर्ण हल्दी, रोली व आटे से कलश को सजाकर कुण्ड के ईशान कोण में स्थापित करें। उसमें आम के पत्तों का रखें, ढक्कन में चावल गेंहूॅ का आटा, माॅगलिक द्रव्य रखें व कलश पर कुमकुम या हल्दी का स्वास्तिक बनायें। यज्ञकर्ता कलश के पूर्व दिशा में बैठें। यज्ञकर्ता के दाएं हाथ में मोली बांधे व रोली का तिलक लगायें। अन्य लोग पश्चिम में बैठे, उनका मुख पूर्व दिशा में हो। फिर आम की लकड़ी से हवन करें। 

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पूजन की सारी सामग्री आहुतियां-मध्यया व अनामिका पर सामग्री रखें व अॅगूठे का सहारा लेकर अग्नि में हवन सामग्री छोड़े। आहुति फेंके नहीं आराम से स्वाहा बोलते हुये डाले। यज्ञ हेतु आवश्यक सामग्री-पूजन की सारी सामग्री यज्ञ करने से पूर्व एकत्रित करके रखनी चाहिए। यज्ञ सामग्री में चावल, रोली, मोली, पुष्प, गंगाजल, केसर, चन्दन, धूप, माला, दूर्बा, दूध, दही, घी, शहद, गुलाब जल, नारियल, इत्र, वस्त्र, यज्ञोवपीत, गुलाल, सिन्दूर, भस्म, अगरबत्ती, गूगल, कपूर, तिल का तेल, रूई, मिठाई, पंच फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचपात्र, घंटी, शंख, माला, काॅसे का पात्र व देव चित्र आदि। 

बांये हाथ में जल लेकर मन्त्रोच्चारण करें पवित्र होनाः सबसे पहले बांये हाथ में जल लेकर दाहिनी हथेली में बन्द करके मन्त्रोच्चारण करें व उंगलियों से शरीर पर जल छोड़े। आचमनः आंतरिक व वाहय शुद्धि हेतु पंच पात्र से आचमन करें। मन्त्रोच्चार के बाद जल पियें। शिखाः दांया हाथ मस्तिष्क पर रखें, जिससे ऊर्जा प्राप्त हो। 

थोड़ी देर तक श्वास अन्दर-बाहर छोड़े… प्रणायामः थोड़ी देर तक श्वास अन्दर-बाहर छोड़े। न्यासः बाये हाथ में जल लेकर पांचों उॅगलियों से मुख, नाक, नेत्रों, कानों, भुजाओं, जॅघाओं आदि सभी अंगों पर जल छिड़कें। आसनः अक्षत पुष्प व जल धरती मां को अर्पित करें। चारों दिशाओं में व ऊपर व नीचे जल छोड़ें दिशाः चारों दिशाओं में व ऊपर व नीचे जल छोड़ें, बांई ऐड़ी से भूमि पर तीन बार आघात करें। भूमि शुद्धिः उक्त क्रिया के उपरान्त यह विचार करें कि भूमि की शुद्धि हो गई है व सफलता हेतु प्रार्थना करें व विचार करें जैसे सब शुद्ध हो रहा है वैसे मेरा तन-मन शुद्ध हो जाये। तत्पश्चात तिलक लगायें, रोली बाॅधें, यज्ञोपवीत धारण करें। प्रत्येक कार्य हेतु अलग-अलग प्रकार के यज्ञ कुण्ड बनते हैं- अर्द्ध चन्द्राकार कुण्डः अर्द्ध चन्द्र जैसा इसका आकार होता है। इस प्रकार के हवन कुण्ड में हवन करने से समस्याओं का निराकरण होकर जीवन सुखमय होता है। इसमें दोनों पति-पत्नी मिलकर आहुति देते है। योनि कुण्डः इसका एक सिरा अर्द्ध चन्द्राकार व दूसरा त्रिकोणाकार होता है। यह कुछ पान के पत्ते जैसा दिखता है। इस हवन कुण्ड में हवन करने से सुन्दर, स्वस्थ्य व तेजस्वी सन्तान प्राप्त होती है। त्रिकोण कुण्डः यदि किसी शत्रु से आप बहुत परेशान है तो उसका शमन करने के लिए त्रिकोण आकार के कुण्ड में हवन करना चाहिए। वृत्त कुण्डः इस प्रकार के कुण्ड में हवन करने से जल देवता इन्द्र प्रसन्न होकर वर्षा करते है। सम अष्टास्त्र कुण्डः यह अष्ट आकार का कुण्ड होता है, इसमें हवन करने से परिवार में रोगों का शमन होता है या जिस रोगी के लिए हवन किया जाता है, वह शीघ्र स्वस्थ्य हो जाता है। चतुष्कोण कुण्डःचतुर्वर्ग का यह कुण्ड सर्व कार्य जैसे भौतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक साधना हेतु अधिक प्रयुक्त होता है, सामान्यतः अधिकतर इसी प्रकार के हवन कुण्ड का प्रयोग किया जाता है। पदम कुण्डः अठारह भागों में बॅटा हुआ कमल के फूल के समान सुन्दर प्रतीत होता है पदम कुण्ड। इस कुण्ड का प्रयोग तांत्रिक क्रियाओं को करने के लिए किया जाता है। 

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