बच्चे बनकर दूर करें ये बड़े-बड़े प्रॉब्लम्स, ये रहा ‘फेल-प्रूफ’ तरीका

एक बच्चा है, जो बड़ों के दिलों में बैठा रहता है। बड़े लगातार उसकी अनदेखी करते रहते हैं और अपने आस-पास तनाव की एक बोझिल दुनिया बसाते रहते हैं। तनाव से मुक्ति चाहिए, तो उस बच्चे को बाहर निकालिए।
फिट रहने के लिए जिम जाते हैं। वजन कम करने के लिए घंटों एक्सरसाइज करते हैं। खुश रहने के लिए सौ तरीके आजमाते हैं। फिर भी न तो मन शांत रहता है, न तनाव से छुटकारा मिलता है, न पूरी तरह से फिट रहते हैं और न ही मूड अच्छा रहता है। करें तो करें क्या? तो अब ‘किडल्टिंग’ को गले लगाकर देखिए। किडल्टिंग यानी अपने अंदर छिपे बच्चे को बाहर लाना। एक बार फिर से उसी रंग में खुद को ढाल लेना जैसा कि आप बचपन में हुआ करते थे। लंदन की साइकोलॉजिस्ट डॉ. मेग एरॉल द्वारा किए गए एक अध्ययन में उन्होंने कहा है कि यदि आप जीवन में ज्यादा खुश, स्वस्थ और तनाव मुक्त रहना चाहते हैं, तो अपने ‘इनर चाइल्ड’ से एक बार फिर से रिश्ता जोड़कर देखिए। जो लोग ऐसा करते हैं, वे अधिक ऊर्जावान और फिट महसूस करते हैं।

क्या है किडल्ट
‘किडल्ट’ यानी वे वयस्क, जो उन चीजों को करने में आनंदित महसूस करते हैं, जो खासतौर से बच्चों के लिए बनाए गए हैं जैसे कोई गेम, खिलौने या फिर कोई रोचक एक्टिविटी। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि किडल्ट वे लोग होते हैं, जो दिमागी रूप से बढ़ना नहीं चाहते। ये उन लोगों में शामिल होते हैं, जो थोड़ी देर के लिए अपनी वयस्कता को भूलकर बच्चे बन जाते हैं। बच्चों की तरह पेंटिंग करते हैं। अपने दोस्तों के साथ बोर्ड गेम खेलते हैं। पजल्स सॉल्व करते हैं। आर्ट एक्टिविटी में शामिल होते हैं। मानसिक रूप से कुछ पल के लिए भागदौड़ भरी जिंदगी से बाहर निकल कर सुकून और खुशियों भरी दुनिया में खो जाना चाहते हैं।
‘किडल्ट’ यानी वे वयस्क, जो उन चीजों को करने में आनंदित महसूस करते हैं, जो खासतौर से बच्चों के लिए बनाए गए हैं जैसे कोई गेम, खिलौने या फिर कोई रोचक एक्टिविटी। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि किडल्ट वे लोग होते हैं, जो दिमागी रूप से बढ़ना नहीं चाहते। ये उन लोगों में शामिल होते हैं, जो थोड़ी देर के लिए अपनी वयस्कता को भूलकर बच्चे बन जाते हैं। बच्चों की तरह पेंटिंग करते हैं। अपने दोस्तों के साथ बोर्ड गेम खेलते हैं। पजल्स सॉल्व करते हैं। आर्ट एक्टिविटी में शामिल होते हैं। मानसिक रूप से कुछ पल के लिए भागदौड़ भरी जिंदगी से बाहर निकल कर सुकून और खुशियों भरी दुनिया में खो जाना चाहते हैं।
किडल्ट होने से आपको अपने बच्चों, पेरेंट्स, परिवार और दोस्तों के साथ अधिक से अधिक मस्ती करने और समय व्यतीत करने का मौका मिलता है। एक बार ऐसा करके देखिए, आप तन-मन से रिलैक्स, तनाव मुक्त और खुद को पहले से और भी ज्यादा खुश पाएंगे। ऐसा करने से आपकी उम्र में भी इजाफा होगा। आप स्वस्थ जीवन जिएंगे।
चाइल्डिश वर्सेज चाइल्डलाइक
किडल्ट होने का यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि आप बचकानी हरकतें करने लगें, बल्कि आपको बच्चों-सा बनना है। जिस तरह बच्चे बेफ्रिक, बेपरवाह होकर जीते हैं। किसी बात की ज्यादा चिंता नहीं करते। आप भी जिंदगी में थोड़ा केयरफ्री बनिए। चिंता मुक्त रहिए। बेपरवाह होकर जिंदगी को जीना सीखिए। अपने काम, रिश्तों आदि को लेकर जितनी चिंता करेंगे, उतनी ही ज्यादा परेशानियों में घिरते चले जाएंगे।
किडल्ट होने का यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि आप बचकानी हरकतें करने लगें, बल्कि आपको बच्चों-सा बनना है। जिस तरह बच्चे बेफ्रिक, बेपरवाह होकर जीते हैं। किसी बात की ज्यादा चिंता नहीं करते। आप भी जिंदगी में थोड़ा केयरफ्री बनिए। चिंता मुक्त रहिए। बेपरवाह होकर जिंदगी को जीना सीखिए। अपने काम, रिश्तों आदि को लेकर जितनी चिंता करेंगे, उतनी ही ज्यादा परेशानियों में घिरते चले जाएंगे।
पुरानी यादों में खो जाएं
एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पुरानी यादों को (नॉस्टैल्जिक) महसूस करने के लिए पुरानी फिल्में और टीवी कार्यक्रमों को देखने से बेहतर कुछ भी नहीं है। बीते वक्त की यादें (सेंस ऑफ नॉस्टैल्जिया) सही मायने में मानसिक सेहत के लिए अच्छे होते हैं। यादें ताजा करने से डिप्रेशन के लक्षणों को कम किया जा सकता है। यदि आपका बीता हुआ कल आज से बेहतर था, तो उसे जरूर याद करें। पुरानी बातों को याद करने से आत्मसम्मान, आत्मविश्वास बूस्ट होता है। आप अधिक आशावादी बनते हैं। अर्थपूर्ण जीवन जीने की तरफ बढ़ते हैं। इससे अकेलापन भी दूर होता है।
एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पुरानी यादों को (नॉस्टैल्जिक) महसूस करने के लिए पुरानी फिल्में और टीवी कार्यक्रमों को देखने से बेहतर कुछ भी नहीं है। बीते वक्त की यादें (सेंस ऑफ नॉस्टैल्जिया) सही मायने में मानसिक सेहत के लिए अच्छे होते हैं। यादें ताजा करने से डिप्रेशन के लक्षणों को कम किया जा सकता है। यदि आपका बीता हुआ कल आज से बेहतर था, तो उसे जरूर याद करें। पुरानी बातों को याद करने से आत्मसम्मान, आत्मविश्वास बूस्ट होता है। आप अधिक आशावादी बनते हैं। अर्थपूर्ण जीवन जीने की तरफ बढ़ते हैं। इससे अकेलापन भी दूर होता है।
लाइफ कोच एवं साइकोलॉजिस्ट डॉ. रेणु ठाकुर के मुताबिक, बड़े कई बार दूसरों को सीख देने में ही अपना सारा समय बिता देते हैं। ऐसा करके हम अपने अंदर के बच्चे को कहीं खो देते हैं। बेफ्रिक और खुश रहने के लिए जरूरी है, हम भी कभी बच्चे बन जाएं। यदि आप अपने अंदर की भावनाओं को व्यक्त करें, गाना गाएं या फिर बच्चों की तरह तितलियों के पीछे भागें, तो आप अपने बचपन से अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे। ऐसा करने से मानसिक रूप से फिट रहेंगे। तनाव नहीं होगा।