जानें क्यों RCEP को बताया जा रहा है भारत के लिए तबाही का सौदा, पढ़े और समझे

आसियान देशों व भारत के बीच क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) को लेकर इन दिनों राजनीतिक दलों के बीच सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को थाईलैंड दौरे पर पहुंचे हैं और इस दौरे में इस समझौते को आखिरी रूप दिया जा सकता है.
जैसे-जैसे समझौता आखिरी चरण के नजदीक पहुंच रहा है, इसे लेकर विरोध भी बढ़ता जा रहा है. कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस समझौते को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए झटका बताया है. उन्होंने कहा कि आरसीईपी समझौता भारतीय किसानों, दुकानदारों, छोटे और मध्यम उद्यमियों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत लाएगा.
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कई अर्थशास्त्री भी इस समझौते को भारत के लिए नुकसानदायक बता रहे हैं. आइए जानते हैं आखिर क्या है आरसीईपी जिसे लेकर हंगामा मचा हुआ है.
आरसीईपी दक्षिण एशियाई देशों के प्रमुख संगठन आसियान के 10 देशों (ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, विएतनाम) और इसके 6 प्रमुख एफटीए सहयोगी देश चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है.
आरसीईपी के सदस्य देशों की आबादी 3.4 अरब है और इसकी कुल जीडीपी 49.5 ट्रिलियन है जो विश्व की जीडीपी का 39 फीसदी है. इसमें से भारत और चीन की जीडीपी का योगदान ही 50 फीसदी से ज्यादा है.
रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी पर चर्चा 2012 से ही चल रही है और यह एक समझौता वैश्विक राजनीति के परिदृश्य से लेकर वैश्विक व्यापार को बदलने की क्षमता रखता है. भारत पार्टनर देशों से आने वाले सामान को टैरिफ फ्री रखने समेत इस समझौते के कई बिंदुओं को लेकर पशोपेश में है. इस व्यापक समझौते में चीनी आयात की भारतीय बाजार में डंपिंग को लेकर भी चिंता जताई जा रही है. कहा जा रहा है कि इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारतीय बाजार में चीनी वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी.
दूसरी तरफ, किसानों और तमाम संगठन सरकार से इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने की अपील कर रहे हैं. उनकी मांग है कि कृषि उत्पादों और डेयरी सेक्टर को आसीईपी से बाहर रखा जाए. ऑल इंडिया किसान सभा ने 4 नवंबर को देशव्यापी प्रदर्शन का भी ऐलान किया है. प्रस्तावित मेगा डील के खिलाफ किसान संगठनों और कृषि क्षेत्र से जुड़ीं गैर-सरकारी संस्थाओं ने मिलकर एक कोऑर्डिनेशन कमिटी भी बना ली है ताकि देश भर में एक साथ विरोध-प्रदर्शन किए जा सके. आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने भी आरसीईपी के खिलाफ इसी महीने विरोध-प्रदर्शन किए थे.
भारतीय अधिकारी सस्ते चीनी आयात के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा की शर्तें शामिल कराने की कोशिश करा रहे हैं ताकि भारतीय उद्योगों और कृषि को नुकसान ना पहुंचे. हालांकि, आरसीईपी में शामिल होने के लिए भारत को आसियान देशों, जापान, दक्षिण कोरिया से आने वाले 90 फीसदी वस्तुओं पर से टैरिफ हटाना होगा. इसके अलावा, चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से 74 फीसदी आइटम्स टैरिफ फ्री करनी होगी.
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि आरसीईपी में शामिल होना भारत सरकार के लिए एक बेहद मुश्किल फैसला होगा और अगर यह समझौता होता है तो भारत का बाजार खत्म होने के कगार पर पहुंच सकता है.
पूर्व भारतीय राजदूत राजीव भाटिया ने आईएनएस से बातचीत में कहा, आरसीईपी के ड्राफ्ट में कई बदलाव हो सकते हैं. अगर भारतीय नेतृत्व को लगेगा कि यह कुल मिलाकर भारत के लिए फायदेमंद है तो वे इस पर हस्ताक्षर करेंगे, अगर उन्हें लगता है कि साझेदार देश सहयोग करने के लिए तैयार नहीं है तो वे इसे होल्ड कर सकते हैं.
आरसीईपी को लेकर भारत के लिए दो चुनौतियां हैं. सबसे बड़ी चुनौती है चीनी बाजार में पहुंच. भारत को सुनिश्चित करना होगा कि चीन के बाजार में अपना सामान भी बड़े पैमाने पर बेचे और उनका सामान भारतीय बाजार में उचित अनुपात में आए. चीनी वस्तुओं के लिए एकदम से पूरा भारतीय बाजार खोलना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा क्योंकि वे हमारी तुलना में ज्यादा प्रतिस्पर्धी हैं.
दूसरी चुनौती आसियान देशों के रूप में है. भारत के सामने अपने सेवा उत्पादों के लिए आसियान बाजारों को खुलवाना और वहां निवेश करने की चुनौती है. इसीलिए पीएम मोदी ने कहा था कि हम संतुलित और समावेशी समझौता चाहते हैं. संतुलित से मतलब है कि भारत के नजरिए से बराबर का लेन-देन हो.
भाटिया कहते हैं, भारत के लिए यह समझौता राजनीतिक और कूटनीतिक नजरिए से भी अहम है. भारत का पूरा जोर ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी पर है ऐसे में आरसीईपी में शामिल होकर क्षेत्र की आर्थिक व्यवस्था का अहम हिस्सेदार बन सकता है. हालांकि, आखिर में रणनीतिक महत्व से ज्यादा आर्थिक नजरिए से ही इस मामले पर फैसला किया जाएगा.
अगर भारत 4 नवंबर को इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करता है तो ऐसी सूरत में या तो सभी देशों को निगोसिएशन के लिए और वक्त दिया जा सकता है या फिर भारत को छोड़कर बाकी देश इस समझौते पर आगे बढ़ सकते हैं.
भाटिया ने कहा, फिलहाल केवल तीन नतीजे ही सामने आ सकते हैं- भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर कर आरसीईपी पर आगे बढ़ सकता है, भारत इससे पीछे हट जाता है और आरसीईपी पर बाकी देश हस्ताक्षर कर आगे बढ़ जाएं और तीसरा- सारे देशों को बातचीत के लिए और वक्त दिया जाए.