राजस्थान उच्च न्यायालय ने पीपी और एपीपी पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया पर लगाई रोक
राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अनिल कुमार उपमन ने अजमेर के लोक अभियोजक विवेक पाराशर, अपर लोक अभियोजक राजेश कुमार ईणानी, राजेन्द्र सिंह राठौड़ की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीपी, एपीपी के पदो पर रिपेनल के आधार पर नियुक्ति पर रोक लगाने के आदेश पारित करते हुए सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। प्रकरण की सुनवाई 6 सप्ताह बाद करने के भी आदेश पारित किए हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी उच्च न्यायालय के अधिवक्ता जावेद खान ने की।
गौरतलब है कि उक्त मामले को प्रतिपक्ष नेता टीकाराम जूली ने विधानसभा मे उठाया था और विधि मंत्री के पुत्र को अतिरिक्त महाअधिवक्ता के पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था। जयपुर सहित राजस्थान के विभिन्न जिलों में भाजपा संगठन के अधिवक्ताओं ने संघर्ष समिति का गठन कर आंदोलन का बिगुल बजा रखा है। पाराशर ने भी इस संबंध मे ना केवल प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, भारत सरकार सहित राज्य के मुख्यमंत्री, विधिमंत्री सहित सभी 194 विधायकों को पूर्व में ही पत्र भेजकर उक्त पदों पर नियुक्ति प्रकिया नये सिरे से विधिवत तरीके से प्रांरभ करने की मांग की थी।
विवेक पाराशर ने बताया कि याचिकाकर्ता द्वारा भारत सरकार जरिये चीफ सेक्रेटी, विशिष्ट शासन सचिव विधि एवं विधिक कार्य विभाग, राजस्थान सरकार, अतिरिक्त चीफ सेक्रेटी गृह विभाग राजस्थान सरकार व जिला कलेक्टर अजमेर को पक्षकार बनाकर विधिविरूद्ध तरीके से राजस्थान में लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ट लोक अभियोजक व राजकीय अधिवक्ता की नियुक्ति के लिये अपनाई जा रही प्रक्रिया को रिट के जरिये उच्च न्यायालय जयपुर में चुनौती दी थी। इस पर न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए राजस्थान सरकार के विधि एवं विधिक कार्य विभाग (राजकीय वादकारण) के शासन सचिव राजेश गुप्ता द्वारा दिनांक 26.6.2024 को जिला कलेक्टरों को पत्र जारी कर उक्त पदों पर नियुक्ति हेतु अधिवक्ताओं का अतिरिक्त पैनल मांगने हेतु संबंधित जिला कलेक्टर को पत्र जारी किये थे। इस संबंध में नियुक्ति हेतु पैनल के अतिरिक्त शेष रहे आवेदकों में से प्रत्येक पद के लिए अतिरिक्त तीन और अधिकतम पांच योग्य अधिवक्ताओ का अतिरिक्त पैनल योग्यता के आधार पर संबंधित जिला एवं सैशन न्यायालय से परामर्श कर अनुशसा पत्र के साथ मांगे गये थे और तीन दिवस के भीतर आवश्यक रूप से विशेष वाहक से विभाग को भिजवाने हेतु सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ पत्र जारी किया गया था, जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने रोक लगाते हुए उक्त आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगाने के आदेश जारी कर सरकार व उसके विभागों से जवाब तलब किया है। इसकी सुनवाई 6 सप्ताह बाद के लिए भी शीर्ष अदालत ने निर्देश जारी किये हैं।
विवेक पाराशर ने बताया कि उक्त याचिका में विधि एवं विधिक कार्य विभाग के मैन्यूवल 1999 व नागरिक न्याय सुरक्षा सहिता की धारा 18 के तहत उक्त पदों पर नये सिरे से आवेदन प्रकिया सरकार द्वारा जारी करते हुए नियुक्तियां करने की मांग की गई है तथा सरकार द्वारा अपनायी गयी पूरी प्रक्रिया को ही विधिविरूद्ध बताते हुए याचिका में विविध कानूनी पहलुओं पर चुनौती दी गयी है। पाराशर ने बताया कि उनकी याचिका के अतिरिक्त भी अजमेर के अधिवक्ता सुनील समदरिया द्वारा अतिरिक्त महाअधिवक्ता पदमेश मिश्रा जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश मनोज मिश्रा के पुत्र है की नियुक्ति को भी लिटिगेशन पॉलिसी के विपरीत जाकर नियुक्ति करने को राजस्थान उच्च न्यायालय में चुनौती दी है और दिनांक 22.8. 2024 को सरक्यूलेशन के जरिये मंत्रीमण्डल का निर्णय लेकर 10 वर्ष का अनुभव घटाकर 5 वर्ष कर अगले दिन 23.8.2024 को नियुक्ति करने पर भी सरकार भी नोटिस जारी किये गए हैं। उसके अतिरिक्त एक याचिका राज. उच्च न्यायालय जोधपुर में भी जो नियुक्तियां सरकार द्वारा पी.पी, ए.पी.पी, राजकीय अधिवक्ताओं को लेकर की गयी हैं उसमें भी सुनवाई प्रक्रिया जारी है। ऐसे मे सरकार की सम्पूर्ण नियुक्ति प्रक्रिया पर राजस्थान के उच्च न्यायालयों मे प्रश्नचिन्ह उत्पन्न कर दिया है जिस पर सम्पूर्ण नियुक्ति प्रकिया नये सिरे से प्रांरभ करने की राजकीय अधिवक्ता संघर्ष समिति ने मांग की है।
इस सबंध मे राजकीय अधिवक्ता द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा पारित आदेश की प्रति राजस्थान सरकार, भारत सरकार सहित विशिष्ट शासन सचिव, जिला कलेक्टर को भेजकर उच्च न्यायालय के आदेश की पालना सुनिश्चित करने की मांग की गयी है। लोक अभियोजक विवेक पाराशर, सहित राजकीय अधिवक्ता राजेन्द्र सिंह राठौड़, राजेश कुमार ईणानी, ब्रजेश कुमार पाण्डे, विक्रम सिंह शेखावत, मंजुर अली, गंगाराम रावत, अशरफ बुलंद खान, गुलाम नजमी फारूखी, रूपेन्द्र कुमार परिहार, अशोक गुर्जर इत्यादि मौजूद रहे।