राजस्थान: एक राष्ट्र एक चुनाव नया नहीं, पहले भी हो चुके हैं संयुक्त इलेक्शन

प्रेसवार्ता में बताया कि 1951 से 1967 तक भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। लेकिन समय से पहले कुछ विधानसभाओं के भंग होने के कारण यह सिलसिला टूट गया।

एक राष्ट्र, एक चुनाव की अवधारणा भारत के लिए कोई नई व्यवस्था नहीं है। बल्कि पहले भी देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा चुके हैं। यह कहना है एक राष्ट्र, एक चुनाव जन जागरुकता अभियान के प्रदेश संयोजक सुनील भार्गव का। उन्होंने प्रेसवार्ता में बताया कि 1951 से 1967 तक भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। लेकिन समय से पहले कुछ विधानसभाओं के भंग होने के कारण यह सिलसिला टूट गया।

उन्होंने बताया कि बार-बार होने वाले चुनावों से प्रशासनिक कार्यों में बाधा, संसाधनों की बर्बादी और आर्थिक बोझ बढ़ता है। यही कारण है कि सरकार ने फिर से एक राष्ट्र, एक चुनाव व्यवस्था को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस विषय पर गठित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने इस पर अपनी रिपोर्ट 2024 में प्रस्तुत की थी, जिसे केंद्र सरकार ने 18 सितंबर 2024 को स्वीकार किया।

राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों की राय
इस व्यवस्था को लेकर 47 राजनीतिक दलों ने अपनी राय दी, जिसमें से 32 दलों ने इसका समर्थन किया। विशेषज्ञों, पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और चुनाव आयुक्तों ने भी इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने वाला कदम बताया। उद्योग संगठनों CII, FICCI और ASSOCHAM ने भी बार-बार होने वाले चुनावों से आर्थिक अस्थिरता को रोकने के लिए इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।

संवैधानिक संशोधन की जरूरत
उच्च स्तरीय समिति ने संविधान के अनुच्छेद 82ए और 324ए में संशोधन का सुझाव दिया है, जिससे लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जा सकें।

एक साथ चुनाव से होने वाले लाभ
शासन में सुधार- लगातार चुनावों के कारण सरकार का ध्यान विकास योजनाओं से हटकर चुनावों पर चला जाता है। एक साथ चुनाव से नीतिगत निर्णयों में तेजी और स्थिरता आएगी।
आदर्श आचार संहिता की बाधा कम होगी- इससे प्रशासनिक निर्णयों में देरी नहीं होगी।
संसाधनों का बेहतर उपयोग- बार-बार चुनावों के लिए सरकारी कर्मियों की तैनाती से अन्य कार्य प्रभावित होते हैं।
वित्तीय बचत- चुनावों पर होने वाला बड़ा खर्च कम होगा और इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।

पहले भी हो चुके हैं एक साथ चुनाव
1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। लेकिन 1968-69 में विधानसभाओं के असमय भंग होने और 1970 में चौथी लोकसभा के भंग होने के कारण यह प्रक्रिया बाधित हुई। इसके बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होने लगे।

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