
राष्ट्रपति पद के लिए संसद भवन और राज्य विधानसभाओं में सोमवार को वोटिंग जारी है। इसमें चार हजार से अधिक सांसद और विधायक अपना वोट दे रहे हैं। संसद भवन में बनाए गए पोलिंग बूथ में 776 सांसद अपना वोट डालेंगे। अहम बात यह है कि ये वोट इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (EVMs) के जरिए नहीं डाले जा रहे जो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल किए जाते हैं। बल्कि बैलट पेपर यानि मतपत्र के जरिए वोटिंग हो रही है। चलिए जानते हैं बैलट पेपर क्यों, EVMs क्यों नहीं..
सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम
भारत में राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए ‘सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम’ प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें वोटर का एक ही वोट गिना जाता है, जिसमें अन्य उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के आधार पर चुनता है। दूसरे शब्दों में बैलेट पेपर में वोटर अपनी पहली, दूसरी, तीसरी पसंद का चुनाव करता है। इसके लिए वोटर को बैलट पत्र पर दिए गए उम्मीदवारों के नाम के सामने कालम 2 में अपनी पसंद और प्राथमिकता के अनुसार 1,2,3, 4, 5 देना होता है।
वेटेज के आधार पर तय होगा नतीजा
विधायकों और सांसदों के वोटों की वेटेज अलग-अलग होती है। विभिन्न राज्यों के विधायकों के वोटों की भी वेटेज अलग-अलग होती है। बता दें कि देश के पंद्रहवें राष्ट्रपति का चुनाव होना है। देश के इस अहम पद के लिए NDA की ओर से द्रौपदी मुर्मू उम्मीदवार हैं वहीं यशवंत सिन्हा विपक्ष के उम्मीदवार हैं। हालांकि द्रौपदी मुर्मू को प्रबल दावेदार माना जा रहा है। बता दें कि वोटों की गिनती के बाद 21 जुलाई को नतीजे का एलान होगा और नए राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण 25 जुलाई को होगा।
ऐसे काम करता है EVM
अपनी पसंद के उम्मीदवारों के नाम के आगे वोटर बटन दबाते हैं और उनके इसी वोट की गिनती होती है। चुनाव आयोग की पत्रिका ‘माई वोट मैटर्स’ के अगस्त, 2021 के अंक के अनुसार 2004 से अब तक चार लोकसभा और 127 विधानसभा चुनावों में EVM का इस्तेमाल किया जा चुका है।
1977 में चुनाव आयोग ने रखा था EVMs का प्रस्ताव
चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार साल 1977 में पहली बार EC ने हैदराबाद की इलेक्ट्रानिक्स कार्पोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) को EVMs के डिजायनिंग और निर्माण के काम को सौंपा। 1979 में इसका प्रोटोटाइप विकसित हुआ जिसे चुनाव आयोग ने 6 अगस्त 1980 को राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के समक्ष रखा। बेंगलुरु के भारत इलेक्ट्रानिक लिमिटेड (BEL) को भी ECIL के साथ EVMs के निर्माण कार्य का काम मिला। इन मशीनों का इस्तेमाल पहली बार साल 1982 में केरल विधानसभा चुनाव में किया गया था। 2004 लोकसभा चुनावों में 10 लाख से अधिक EVMs का इस्तेमाल देश के 543 संसदीय क्षेत्रों में हुआ।