राजनीतिक तापमान चढ़ा, राजेंद्र राठौड़ और नरेंद्र सिंह बुडानिया में कड़ी टक्कर

चूरू देश के सबसे गर्म इलाके के रूप में जाना जाता है। गर्मी में यहां का तापमान 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। वहीं ठंड में चूरू का तापमान शून्य से नीचे भी चला जाता है। तापमान में यह विविधता यहां की राजनीति में भी दिखाई पड़ती है। राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ 1990 से 2018 तक लगातार चूरू विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल करते रहे हैं। इस बीच केवल एक बार 2008 में कांग्रेस प्रत्याशी हाजी मकबूल ने यहां से जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने राठौड़ को चूरू की ही तारानगर विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है। इसके पहले 2008 में भी वे इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन इस बार सीट में हुए बदलाव को लेकर कांग्रेस राजेंद्र सिंह राठौड़ पर हमलावर है। उसका कहना है कि जनता के बीच अपना विश्वास खोने के कारण ही राठौड़ को अपनी सीट बदलनी पड़ी है। लेकिन स्थानीय लोग बताते हैं कि राजपूत वोटरों पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले राजेंद्र सिंह राठौड़ की जीत इस बार भी तय थी। तारानगर सीट पर भी उनकी जीत लगभग तय है। यहां के राजपूत, ब्राह्मण, ओबीसी और दलित मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता बनी हुई है।

राजेंद्र सिंह राठौड़ को किसी जमाने में वसुंधरा राजे सिंधिया के बेहद करीबी के तौर पर देखा जाता था। वे उनकी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालते रहे थे। लेकिन कहा जाता है कि अब उनकी राहें जुदा हो गई हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया अब तक राठौड़ के चुनाव प्रचार के लिए नहीं पहुंची हैं। इसके अलग मायने निकाले जा रहे हैं। जबकि इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा के कई दिग्गज नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ के प्रचार के लिए तारानगर पहुंच चुके हैं।

राठौड़ राजस्थान भाजपा के उन नेताओं में देखे जाते हैं, जिन्हें राजस्थान चुनाव में जीत मिलने पर भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जा सकता है। लिहाजा यहां उनके समर्थक भारी बहुमत से जुटाने में लगे हुए हैं। समर्थकों की कोशिश है कि तारानगर से भारी जीत हासिल कर राठौड़ की मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को ज्यादा मजबूत बनाया जाए।

तारानगर में मार्बल के थोक व्यापारी सुरेंद्र सिंह राजपूत ने अमर उजाला को बताया कि उनका पूरा समाज राजेंद्र सिंह के साथ खड़ा हो गया है। लेकिन वे इसे किसी जाति विशेष की जीत के रूप में नहीं दिखाना चाहते, लिहाजा अन्य वर्गों को भी पूरे सम्मान के साथ पार्टी से जोड़ने की बात की जा रही है। चूंकि, तारानगर की जनता पहले ही राजेंद्र सिंह राठौड़ के कामकाज को चूरू में देखती रही है, वह उनसे पहले से प्रभावित है। लोगों को लग रहा है कि भाजपा के बड़े नेता की यहां से जीत उनके इलाके की तस्वीर बदल सकती है। इस उम्मीद ने भी मतदाताओं को उनके साथ लामबंद करने का काम किया है।

कांग्रेस से भी कद्दावर नेता

लेकिन राजेंद्र सिंह राठौर की लड़ाई इतनी भी आसान नहीं है। कांग्रेस ने यहां से चूरू के पूर्व लोकसभा सांसद नरेंद्र सिंह बुडानिया को अपना उम्मीदवार बनाया है। बुडानिया तारानगर सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं। बुडानिया की भी स्थानीय जनता पर अच्छी पकड़ रही है। उन्होंने अपने क्षेत्र में अच्छा कामकाज भी कराया है। लिहाजा इस बार भी उन्हें मजबूत प्रत्याशी के तौर पर देखा जा रहा है। कहा जाता है कि राजेंद्र सिंह राठौड़ को उनके घर में घेरने के लिए ही कांग्रेस ने नरेंद्र सिंह बुढ़ानिया पर दोबारा भरोसा जताया है।

तीन बार लोकसभा, तीन बार राज्यसभा और दो बार विधानसभा पहुंच चुके नरेंद्र सिंह बुडानिया जाट समुदाय से हैं, जिसके 70 हजार वोटर हैं। लगभग 22 हजार मुस्लिम मतदाता और अच्छी संख्या में दलित उनके साथ बताए जाते हैं। वोटरों का यह जुड़ाव बुडानिया की दावेदारी को मजबूत बना देता है। दोनों दलों की ओर से मजबूत उम्मीदवार होने के कारण चूरू की लड़ाई बेहद दिलचस्प हो गई है।

किसानों के दम पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई (एम) उम्मीदवार निर्मल कुमार प्रजापति यहां 10 हजार के लगभग वोट हासिल करते रहे हैं। किसानों के लिए हमेशा संघर्ष करने वाले निर्मल कुमार प्रजापति के समर्थकों को इस बात का मलाल रहता है कि चुनाव के समय बड़े राष्ट्रीय दल जातिगत मुद्दों को हवा देकर असली मुद्दों को गायब कर देते हैं। उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ता है।

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