…तो इसलिए पीएम मोदी के इस दौरे से चीन को हो रही है टेंशन
कूटनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के म्यांमार दौरे ने चीन की टेंशन बढ़ा दी है. दिलचस्प बात यह है कि वह चीन में आयोजित ब्रिक्स समिट में हिस्सा लेने के बाद सीधे म्यांमार पहुंचे हैं. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने 16 अगस्त 2017 को भारत और म्यांमार के बीच बढ़ती नजदीकी पर गहरी चिंता जाहिर की थी. चीनी अखबार ने कहा था कि भारत अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के जरिए म्यांमार में चीन के प्रभाव को कम करना चाहता है. हालांकि इस बार चीन ने इस पर चुप्पी साध रखी है. फिलहाल उसकी ओर से इस बाबत कोई विरोधी प्रतिक्रिया नहीं आई है.
अगर इतिहास पर नजर दौड़ाएं, तो म्यांमार भारत के मुकाबले चीन के ज्यादा करीब रहा है. जहां भारत और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 2.2 अरब डॉलर का हैं, वहीं चीन और म्यामांर के बीच द्विपक्षीय व्यापार कुल 9.5 अरब डॉलर का है. साल 2016-2017 में ही दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार छह अरब डॉलर का रहा है. इसके अलावा रक्षा के क्षेत्र में भी म्यांमार और चीन एक-दूसरे के बेहद करीब हैं. इससे साफ है कि म्यांमार भारत की बजाय चीन के ज्यादा करीब है. हालांकि भारत और म्यांमार के बीच 1,642 किमी की सीमा है. इसके अलावा बंगाल की खाड़ी में भी दोनों देशों की समुद्री सीमाएं मिलती हैं.
मोदी की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का अहम पिलर है म्यांमार
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पूर्ववर्ती भारत की सरकारों का म्यांमार के प्रति रूखा रवैया रहा है, जिसका फायदा उठाकर चीन ने म्यांमार में अपना प्रभुत्व स्थापित किया. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते की नई शुरुआत होने लगी. पीएम मोदी ने म्यांमार को भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का अहम पिलर करार दिया. इस एक्ट ईस्ट पॉलिसी का मकसद दक्षिण पूर्व आसियान देशों के साथ भारत के आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना है. म्यांमार एक ऐसा आसियान देश हैं, जिसकी जमीनी सीमा भारत से मिलती है. लिहाजा म्यांमार को भारत का गेटवे टू आसियान कहा जाता है.
आंग सान सू की के सत्ता में आने के बाद भारत-म्यांमार रिश्ते की नई शुरुआत
आंग सान सू की सरकार से पहले म्यांमार में सैन्य सरकार थी, जिसके चीन से गहरे रिश्ते थे. इस बीच चीन ने म्यांमार मं अपनी गहरी जड़े जमा लीं. सू की के सत्ता में आने के बाद भारत और म्यांमार के बीच रिश्ते बेहदतर होने की उम्मीद बढ़ी. इसकी वजह यह था कि सू की की शिक्षा भारत में ही हुई. उनको भारत समर्थक माना जाता है. हालांकि सत्ता में आने के बाद सू की ने भी भारत से पहले चीन का दौरा किया था.
इसके चलते माना जा रहा था कि म्यांमार में चीन ने मजबूत पैठ बना ली है. लिहाजा वहां भारत को पैर जमा पाना मुश्किल है, लेकिन मोदी सरकार ने पड़ोसी देश म्यांमार की अहमियत समझी और उसको रक्षा सहयोग का प्रस्ताव दिया. इससे चीन तिलमिला गया और चीनी अखबार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी. चीन ने कहा कि भारत ने म्यांमार में चीन को मात देने के लिए यह प्रस्ताव दिया है.