पिथौरागढ़: प्रसिद्ध छिपलाकेदार बुग्याल पर्यटन की दृष्टि से अछूता

अस्कोट (पिथौरागढ़)। जिले का प्रसिद्ध छिपलाकेदार बुग्याल आज भी पर्यटन की दृष्टि से अछूता है। अस्कोट से क्षेत्र से लगभग 30 किलोमीटर सड़क मार्ग से यात्रा करने वाला बरम नामक स्थान से 20 किमी खड़ी चढ़ाई पार कर प्रसिद्ध 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित छिपलाकेदार बुग्याल पहुंचते हैं। अभी तक यहां के लिए ट्रैकिंग रूट का भी निर्माण नहीं किया गया है।
छिपलाकेदार पर्यटन, धार्मिक और धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यहां दुर्लभ कस्तूरी मृग, राष्ट्रीय पक्षी मोनाल, हिम तेंदुआ सहित अन्य दुर्लभ पशु-पक्षी पाए जाते हैं। यहां बड़े-बड़े जलकुंड और चारों ओर खिले ब्रह्म कमल और अन्य फूल लोगों को आकर्षित करते हैं।

जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण छिपलाकेदार में कुटकी, अतीस, चिरायता, जटामांसी, गुगल धूप, डोलू, सालम पंजा, यारसा गंबू समेत कई तरह की जड़ी बूटियां पाई जाती है। इस स्थान पर बरम, कनार, जाराजिबली, गोगई, पय्यापौड़ी, बलुवाकोट, धारचूला के लोग यज्ञोपवित संस्कार के लिए भी जाते हैं।
यहां पहुंचने के लिए बढि़या ट्रैकिंग रूट नहीं होने से पर्यटकों को दिक्कत होती है। इसके अलावा यहां विदेशी ट्रैकर भी बड़ी संख्या में आते हैं। अगर यहां के लिए ट्रैकिंग रूट बन जाए जो यहां बड़ी संख्या में पर्यटकों के आने की उम्मीद है।
गुफा में रह सकते हैं पर्यटक
पिथौरागढ़। वन विभाग ने गुफा संरक्षण, दरकती भूमि में बुग्याल संरक्षण कार्य जियो जूट तकनीकी से अवरोधक निर्माण कार्य किए हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने और पर्यटकों के रात्रि विश्राम की व्यवस्था प्राकृतिक गुफाओं में की गई है। जैव-विविधता की सुरक्षा में वनकर्मी हमेशा पेट्रोलिंग करते हैं। छिपलाकोट कस्तूरा मृग विहार के नाम से देश-विदेश में अपनी पहचान बना ली है, लेकिन पर्यटकों के लिए ट्रेकिंग रूट साहसिक भरा कदम है। संवाद
कोट
छिपलाकेदार में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहां पर्यटक आते हैं पर्यटकों के रहने के लिए यहां प्राकृतिक गुफाओं में रहने की व्यवस्था की गई है। – बालम सिंह अलमिया, वन क्षेत्राधिकारी पिथौरागढ़।

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