समस्त पापों को दूर करता है कुंभ, घर बैठे भी कमा सकते हैं पुण्य

phpThumb_generated_thumbnail (6)देवगुरू जब मेष, सिंह, वृश्चिक व कुम्भ राशि मे आते हैं तो कुम्भ का आयोजन होता है, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कुम्भ में स्नान करना बेहद सौभाग्य की बात मानी जाती है

कुम्भ के दौरान स्थान विशेषकर नदियों के जल मे अमृत का उत्सर्जन होता है। इसमें स्नान करने से मानव ना सिर्फ जरा व मृत्यु पर विजय पाता है वरन कुम्भ में स्नान, दान, धर्म, जप, तप आदि करने से हजारों अश्वमेघ यज्ञ या सम्पूर्ण धरा की एक लाख परिक्रमा से होने वाले पुण्य के समान फल प्राप्त होता है।

भागवत के अष्टम स्कन्ध के अध्याय चार व अन्य शास्त्रों में दिए प्रमाणों के अनुसार देवताओं की शक्ति क्षीण होने पर भगवान श्रीहरि के आदेश से उन्होंने दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया और चौदह रत्नों में से एक अमृत प्राप्त हुआ। ज्योंही अमृत कलश बाहर आया दैत्य उसे छीनकर भागने लगे। यह देख देवता उसे प्राप्त करने के लिए उनके पीछे भागे। भागमभाग की इस क्रिया मे अमृत कलश से चार प्रसिद्ध स्थलों पर अमृत छलका। कुम्भ तभी से पौराणिक व अनेक संस्कृत ग्रंथों में महापर्व के रूप में वर्णित है। चार स्थानों पर ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार कुम्भ का आयोजन होता है। कुम्भ का आयोजन देवगुरू वृहस्पति के राशि भ्रमण से जुड़ा हुआ है।

देवगुरू जब मेष, सिंह, वृश्चिक व कुम्भ राशि मे आते हैं तो कुम्भ का आयोजन हरिद्वार, नासिक, उज्जैन या प्रयाग मे से किसी एक स्थान पर होता है। इन्हीं राशियों में सूर्य व चंद्रमा का प्रवेश होने पर महास्नान होता है। कुम्भ के दौरान स्थान विशेष कर नदियों के जल मे अमृत का उत्सर्जन होता है और इसमें स्नान करने से मानव न सिर्फ जरा व मृत्यु पर विजय पाता है वरन कुम्भ पर्व पर स्नान, दान, धर्म चर्चा, जप, तप आदि करने से हजारों अश्वमेध यज्ञ या सम्पूर्ण धरा की एक लाख परिक्रमा करने से होने वाले पुण्य के समान फल प्राप्त होता है। सिंह राशि में गुरू व सूर्य के आने पर शास्त्रों मे लिखा है-

सिंहराशिगते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पति:।गौदावर्या भवेत् कुम्भ: पुनरावृत्तिवर्जन:।।

वैराग्य और मोक्ष का प्रेरक

कुम्भ स्नान के दौरान ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण करे तो महास्नान के दिन लग्न भाव मे गुरू, सूर्य व चंद्र की युति रहेगी और शनिदेव चतुर्थ भाव में रहेंगे। लग्न भाव देह या शरीर का है व चतुर्थ भाव सुख भाव है। लग्न मे चंद्र सूर्य की युति जातक को मीमांसक बनाती है व जातक आत्ममंथन की प्रेरणा लेता है। इधर चतुर्थ शनि गृहत्याग की भावना पैदा कर सम्पूर्ण वैराग्य व मोक्ष की प्रेरणा मिलती है। सुखद बात यह है कि लग्न मे ही देवगुरू भी है, जो उच्चस्तरीय धार्मिक विचार धाराओं का संचार मानस पटल पर कराते हैं।

घर बैठे भी कमाएं पुण्य

यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक प्राणी अमृतरूपी कुम्भ की पुण्य सलिला में स्नान का लाभ प्राप्त कर सकें। कुम्भ स्नान नहीं कर पाने की स्थिति में आप निकटतम नदी या पवित्र सरोवर मे स्नान कर सकते हैं। यह भी संभव ना हो तो स्नान करते समय नहाने के जल मे गंगा, यमुना, गोदावरी या किसी भी पवित्र नदी या सरोवर का जल मिश्रित कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करें। पुष्प व चावल हाथ में लेकर “गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिंधुकावेरि जलेùस्मिन् सçन्नधिं कुरू।।” मंत्र से जलांजलि प्रदान करे।

 

Back to top button