Pak का कितना पानी रोक सकता है भारत? ‘सिंधु स्ट्राइक’ से कैसे होगा नुकसान; जाने

भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल समझौता निलंबित करके पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा कदम उठाया है। इस कदम के जरिये भारत ने सीधे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर चोट की है। आइये जानते हैं कि क्या हमारे पास वह जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर है जिसके जरिये हम पाकिस्तान के हिस्से का पानी रोक सकते हैं और इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कैसे प्रभावित होगी?

भारत में फिलहाल 5-10% से ज्यादा पानी नहीं रोका जा सकता है। बांध और जलाशय बनाने में समय लगता है। भारत में 5,334 बड़े बांध हैं और लगभग 447 बांध निर्माणाधीन हैं।

1/3 बिजली पाकिस्तान पैदा करता है हाइड्रो पावर से
93 प्रतिशत पानी सिंचाई के लिए इस्तेमाल करता है पाकिस्तान

तीन युद्ध और बड़े आतंकी हमले झेल गया समझौता
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते को पानी साझा करने के एक सफल समझौते के तौर पर देखा जाता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का लंबा इतिहास है। भारत-पाकिस्तान 1960 में हुए सिंधु जल समझौते के बाद 1965, 1971 और 1999 में कारगिल युद्ध लड़ चुके हैं। इसके अलावा भारत पिछले 35 वर्षों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का शिकार है।


आतंकवाद में हजारों निर्दोष नागरिकों और हजारों सुरक्षा कर्मियों ने अपनी जान गंवाई है। अर्थव्यवस्था को भी इसका नुकसान उठाना पड़ा है। इतनी बड़ी कीमत चुका कर भी मानवीय आधार पर भारत ने इस समझौते को जारी रखा। 2019 में पुलवामा हमले के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सिंधु नदी का पानी रोकने की धमकी जरूर दी थी लेकिन इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी।

संधि में क्या तय हुआ
संधि में तय किया गया कि पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों रावी, व्यास और सतलज पर भारत का अधिकार होगा, जबकि पश्चिम क्षेत्र की नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम का पानी पाकिस्तान को दिया जाएगा लेकिन भारत के पास इन नदियों के पानी से खेती व अन्य इस्तेमाल का अधिकार रहेगा।

सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के कुल 16.80 करोड़ एकड़ फीट पानी में से भारत को 3.30 एकड़ पानी दिया गया, जो कुल पानी का 20 प्रतिशत है। बाकी 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को दिया गया समझौते के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थाई आयोग का गठन किया गया, जिसे सिंधु आयोग नाम दिया गया। दोनों तरफ से एक-एक आयुक्त इस समझौते के लिए तैनात किए गए। यही दोनों अपनी-अपनी सरकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

निर्माण के लिए नियम
सिंधु जल समझौता प्रभावी होने की सूरत में इन नदियों पर किसी तरह के ढांचे का निर्माण करने के लिए पाकिस्तान की सहमति की जरूरी होगी क्योंकि इससे उसको मिलने वाले पानी की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है।

ऐसे हुआ विवाद का समाधान
भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों के पानी को लेकर विवाद बढ़ता गया।
1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ टेनसी वैली अथारिटी के पूर्व प्रमुख डेविड ललियंथल ने विवाद समाप्त करने का प्रयास किया।
सितंबर 1951 में विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन राबर्ट ने इसमें मध्यस्थता की।
कई बैठकों के बाद 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई।
इस समझौते पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्तार किए थे। इसके बाद 12 जनवरी 1961 को इस संधि की शर्ते लागू की गई।

पड़ेगा सूखा और अकाल
भारत की तरह पाकिस्तान भी कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था है। लेकिन भारत की तरह पाकिस्तान में कई नदियां नहीं हैं, जिनसे फसलों की सिंचाई हो सके। पाकिस्तान में भूगर्भजल का स्तर पहले से ही बहुत नीचे जा चुका है, ऐसे में सिंधु और उसकी सहायक नदियों का पानी ही पाकिस्तान को सूखे और अकाल से बचाता है। अगर उसे यह पानी नहीं मिलता है तो उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी।

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