विनायक चतुर्थी पर करें इन मंत्रों का जाप और स्तोत्र का पाठ

भगवान गणेश की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी दुख और दर्द दूर हो जाते हैं। साथ ही सुख समृद्धि शांति और खुशहाली आती है। अतः साधक विनायक चतुर्थी पर विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। अगर आप भी भगवान गणेश की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो विनायक चतुर्थी पर पूजा के समय इन चमत्कारी मंत्रों का जाप और स्तोत्र का पाठ करें।
सनातन पंचांग के अनुसार, 16 नवंबर को विनायक चतुर्थी है। यह पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाई जाती है। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है। भगवान गणेश को कई नामों से जाना जाता है। इनमें एक नाम विघ्नहर्ता है। अतः भगवान गणेश की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी दुख और दर्द दूर हो जाते हैं। साथ ही सुख, समृद्धि, शांति और खुशहाली आती है। अतः साधक विनायक चतुर्थी पर विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। अगर आप भी भगवान गणेश की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो विनायक चतुर्थी पर पूजा के समय इन चमत्कारी मंत्रों का जाप और स्तोत्र का पाठ करें।
गणेश स्तोत्र
प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् ।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड – माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ।।
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान – मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम् ।
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय ।।
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं गणविभुं वरकुण्जरास्यम् ।
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह-मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य ।।
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं सदा साम्राज्यदायकम् ।।
प्रातरुत्थाय सततं य: पठेत्प्रयत: पुमान् ।।
श्रीगणेश स्तुति
वन्दे गजेन्द्रवदनं वामाङ्कारूढवल्लभाश्लिष्टम् ।
कुङ्कुमरागशोणं कुवलयिनीजारकोरकापीडम् ॥
विघ्नान्धकारमित्रं शङ्करपुत्रं सरोजदलनेत्रम् ।
सिन्दूरारुणगात्रं सिन्धुरवक्त्रं नमाम्यहोरात्रम् ॥
गलद्दानगण्डं मिलद्भृङ्गषण्डं,
चलच्चारुशुण्डं जगत्त्राणशौण्डम् ।
लसद्दन्तकाण्डं विपद्भङ्गचण्डं,
शिवप्रेमपिण्डं भजे वक्रतुण्डम् ॥
गणेश्वरमुपास्महे गजमुखं कृपासागरं,
सुरासुरनमस्कृतं सुरवरं कुमाराग्रजम् ।
सुपाशसृणिमोदकस्फुटितदन्तहस्तोज्ज्वलं,
शिवोद्भवमभीष्टदं श्रितततेस्सुसिद्धिप्रदम् ॥
विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणिर्विघ्नाटवीहव्यवाट्,
विघ्नव्यालकुलप्रमत्तगरुडो विघ्नेभपञ्चाननः ।
विघ्नोत्तुङ्गगिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाब्धिकुंभोद्भवः,
विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वरः पातु नः ॥
महागणेश पंचरत्न स्तोत्र
सरागलोकदुर्लभं विरागिलोकपूजितं,
सुरासुरैर्नमस्कृतं जरापमृत्युनाशकम् ।
गिरागुरुं श्रियाहरिं जयन्ति यत्पदार्चकाः,
नमामि तं गणाधिपं कृपापयःपयोनिधिम् ॥
गिरीन्द्रजामुखांबुज-प्रमोददान-भास्करं,
करीन्द्रवक्त्र-मानताघसंघ-वारणोद्यतम् ।
सरीसृपेश-बद्धकुक्षि-माश्रयामि संततं,
शरीरकान्ति-निर्जिताब्जबन्धु-बालसंततिम् ॥
शुकादिमौनिवन्दितं गकारवाच्यमक्षरं,
प्रकाममिष्टदायिनं सकामनम्रपंक्तये ।
चकासतं चतुर्भुजैः विकासपद्म पूजितं,
प्रकाशितात्मतत्वकं नमाम्यहं गणाधिपम् ॥
नराधिपत्वदायकं स्वरादिलोकदायकं,
ज्वरादिरोगवारकं निराकृतासुरव्रजम् ।
करांबुजोल्लसत्सृणिं विकारशून्यमानसैः,
हृदा सदा विभावितं मुदा नमामि विघ्नपम् ॥
श्रमापनोदनक्षमं समाहितान्तरात्मनां,
सुमादिभिस्सदार्चितं क्षमानिधिं गणाधिपम् ।
रमाधवादिपूजितं यमान्तकात्मसंभवं,
शमादिषड्गुणप्रदं नमामि तं विभूतये ॥
गणाधिपस्य पंचकं नृणामभीष्टदायकं,
प्रणामपूर्वकं जनाः पठन्ति ये मुदायुताः ।
भवन्ति ते विदांपुरः प्रगीतवैभवा जवात्,
चिरायुषोऽधिकश्रियस्सुसूनवो न संशयः ॥
श्री गणेश मंत्र
- ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
- ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
- ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नम:।।
- श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा ॥
- ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।