आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु और आंवले की पेड़ की पूजा करने के साथ दान पुण्य करने का है ये विशेष महत्व

 हिंदू धर्म में कार्तिक मास का काफी अधिक महत्व है। क्योंकि इस माह में कई बड़े व्रत त्योहार आते हैं। इसी तरह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के नाम से जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की विधिवत पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस आंवले के पेड़ में श्री हरि विष्णु वास करते हैं।  इसी कारण अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं। इसके साथ ही सपरिवार पेड़ के नीचे बैठकर सात्विक भोजन करते हैं। माना जाता है कि इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा करने के साथ-साथ इस व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं। आइए जानते हैं आंवला नवमी की व्रत कथा।

आंवला नवमी 2022 व्रत कथा

आंवला नवमी की कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक सेठ था। वह हर साल आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को आंवले के पेड़ के नीचे बैठाकर भोजन कराता था। इसके साथ ही सोना-चांदी आदि भेट में देता है। लेकिन यह सब चीजें सेठ के बेटों को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी। ऐसे में वह अपने पिता से खूब झगड़ते थे। इन सब चीजों से तंग आकर सेठ से घर छोड़ दिया और दूसरे गांव में जाकर बस गया। इसके साथ ही जीवन यापन के लिए एक छोटी सी दुकान रख ली। इसके साथ ही उस दुकान के आगे एक आंवले का पेड़ लगाया। भगवान की कृपा इतनी हुई की दुकान खूब चलने लगीं। इसके साथ ही उसने अपने नियम को न तोड़ते हुए हर साल आंवला नवमी के दिन विधिवत पूजा करने के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देता था। वहीं, दूसरी ओर सेठ के पुत्रों का व्यापार ठप हो गया। ऐसे में सेठ के बेटों को समझ आने लगा कि वो अपने पिता के भाग्य से ही खाते थे। अपनी गलती समझ कर वे अपने पिता के पास गए और अपनी गलती की माफी मांगने लगे। फिर पिता के कहने के बाद उन्होंने भी आंवले के पेड़ की पूजा करनी शुरू की और दान करने लगे। इसके प्रभाव से सेठ के बेटों के घर पहले की तरह खुशहाली आ गई और सुख-समृद्धि के साथ रहने लगे।

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