लव जिहाद कानून की मंजूरी पर सपा सांसद एचटी हसन बोले- हिन्दू लड़कियों को समझें अपनी बहन
लखनऊ। यूपी में लव जिहाद कानून को यूपी कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद मुरादाबाद सांसद सांसद डॉ. एसटी हसन का बड़ा बयान आया है। सांसद ने कहा कि योगी सरकार ने जो लव जिहाद पर कानून बनाय है, वह पॉलीटिकल स्टंट है। वहीं, मुस्लिम समाज के लड़कों को नसीहत देते हुए कहा कि हिन्दू लड़कियों को अपनी बहन समझें। किसी के बहकावे में ना आएं, कोई भी ऐसा काम न करें जिससे बाद में परेशानी उठानी पड़े, आगे उन्होंने कहा कि इस सरकार के पास कानूनों की भरमार है। कौन सा दांव पेंच कब खेल दे कुछ पता भी नहीं चलेगा। इस सरकार को हिन्दू-मुस्लिमों के बीच दूरियां बढ़ाना बखूबी आता है।
उन्होंने कहा कि सालों से हिन्दू लड़के मुस्लिम लड़की और मुस्लिम लड़के हिन्दू लड़कियों से शादी करते रहे हैं। जब तक घर में सामंजस्य रहता है तब तक तो घर ठीक से चलता है लेकिन जब सोसाइटी में शादी को लेकर विरोध होने लगते हैं तो हिन्दू मुस्लिम शुरू हो जाता है। ऐसे में अब मुस्लिम लड़कों को अपने को इस कानून से दूर रखना है तो उनको हिन्दू लड़कियों को बहन समझना होगा।
लव जिहाद कहे जाने वाले मामले को ही गैर कानूनी धर्मांतरण माना जाएगा और ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 5 से 10 साल की सजा का प्रावधान किया जा सकता है। मध्य प्रदेश सरकार ने अपने प्रस्तावित बिल में पांच साल की सजा का प्रावधान किया है। देश के अन्य राज्य भी इस तरह का कानून बनाने की तैयारी है। आम बोलचाल में लव जिहाद कहे जाने वाले मामलों में बहला-फुसलाकर, झूठ बोलकर या जबरन धर्मांतरण कराते हुए अंतर धार्मिक विवाह किए जाने की घटनाओं को शामिल किया जाता है। प्रस्तावित कानून सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू होगा।
शिकायत होने पर विवाह कर रहे युवक-युवती पर ही अपनी सच्चाई साबित करने का भार होगा कि वे जोर-जबरदस्ती से ऐसा नहीं कर रहे, न ही यह लव जिहाद है। सरकारी अधिकारी या कर्मचारी अपने पद का इस्तेमाल करके ऐसे विवाह कराता है तो उसे भी पांच साल की सजा होगी। मसलन एसडीओ, थानाधिकारी या अन्य। यदि किसी केस में लव जिहाद साबित हो गया और प्रोसिक्यूशन करना है तो ऐसे प्रकरणों के बारे में फैसला शासन स्तर यानी गृह विभाग करेगा।
अभी आईटी एक्ट या धारा 153 (ए) में यही प्रावधान है जो सांप्रदायिक विवाद से जुड़े हैं। माता-पित्ता, भाई-बहन या रक्त संबंधी की शिकायत पर लव जिहाद से हुए विवाहों के मामले में फैमिली कोर्ट को यह अधिकार होगा कि वह ऐसी शादी को निरस्त कर सके। यदि कोई धर्म परिवर्तन से जुड़ा मसला है तो परिवार को एक माह पहले आवेदन तो देना ही है।