ओम पुरी की आखिरी फिल्म मिस्टर कबाड़ी की जुबानी

मुंबई। हास्य और व्यंग्य से भरपूर फिल्म मिस्टर कबाड़ी प्रसिद्ध अभिनेता स्वर्गीय ओम पुरी की आखिरी फिल्म है। खास बात यह है कि इस फिल्म का निर्देशन ओम पुरी की पहली पत्नी सीमा कपूर ने किया है। फिल्म की कहानी भी सीमा कपूर ने लिखी है। जागरण डॉट कॉम के राहुल सोनी से खास बातचीत के दौरान सीमा कपूर ने फिल्म से जुड़ी कई दिलचस्प बातें बताई। यह फिल्म 8 सितंबर को सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है। निर्देशन ओम छंगानी और अनूप जलोटा ने किया है। पढ़िए पूरा इंटरव्यू –

ओम पुरी की आखिरी फिल्म मिस्टर कबाड़ी की जुबानी

फिल्म की कहानी की शुरुआत कहां से और कैसे हुई

जब हम थिएटर करते थे उस वक्त काफी फ्रेंच और रशियन लिट्रेचर पढ़ते थे। उस जमाने में नाटक बहुत मशहूर होता था। मौलियर के नाटक करते थे। एक नाटक की कहानी एेसी थी कि जिसमें पुराने धनाट्य की तरह कुछ लोग अभिनय करना चाहते थे लेकिन नहीं कर पाते। वह पकड़ में आ जाते थे। एेसी ही एक कहानी थी कि एक कबाड़ी की जो अचानक लखपती बन जाता है। लेकिन ओवनराइट लखपती बनने से वो वह स्टेटस हासिल नहीं कर पाता जो असल में अमीर लोगों का होता है। चूंकि इंग्लिश नहीं आती और पढ़ाई भी नहीं की है। लेकिन बेटे को बिजनेस में उतारना चाहता है। इसलिए जगह-जगह शौचालय की ओपनिंग करते हैं। और जब लड़के की शादी की बात हो होती है तब शर्म के कारण लड़की वालों को रेस्टोरेंट होने की बात करते हैं। लेकिन आखिर में पकड़े जाते हैं।

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फिल्म के निर्देशन में क्या खास रहेगा

1986 में पहला सीरियल किले का रहस्य का निर्देशन किया था। तब से ही निर्देशन में दिलचस्पी रही है। इसलिए थिएटर हो, टीवी सीरियल हो या फिल्में निर्देशन में हमेशा जोर रहा है। इस बार मिस्टर कबाड़ी में हास्य के साथ व्यंग्य प्रस्तुत किया है, जिससे लोगों को हास्य के जरिए संदेश दिया जा सके।

फिल्म में थिएटर की कितनी मदद मिली

थिएटर अलग विधा है। थिएटर में लॉन्ग शॉट में दर्शक देखते हैं। टीवी क्लोज़अप में चलता है। और सिनेमा समझ लीजिए कि आपकी आंख है जिसका थोड़ा सा सूक्ष्म रूप है। जिसे कंडेंस या वाइड कर सकते हैं जितनी आंख भी न देख पाए। सिनेमा जो है थिएटर और टीवी का विस्तृत रूप है। सिनेमा में कट्स फास्ट होते हैं। हम लोग सौभाग्यशाली रहे हैं कि हमने वो विधा भी देखी है। हमने वो जमाना भी देखा कि जब रेडियो ही होता था। एक साल में दो फिल्म देखते थे। उस समय मनोरंजन सिमट कर कानों में रह गया था। हमने वो सारा समय देखा। थिएटर वैसे कॉलेज में होता है शौकिया तौर पर। लेकिन हमने प्रोफेशनली भी किया है। अगर थिएटर देखने का टिकट लगता है तो कलाकारों को परफेक्शन के साथ काम करना होता है। चूंकि थिएटर में साहित्य, संगीत, अभिनय, आर्ट इन सबकी की जरुरत होती है तो फिल्म में कोई मुश्किल नहीं हुई।

ओम पुरी बाकी कलाकारों से कैसे अलग थे

मुझे हमेशा याद रहेगा कि हमारी शादी हुई थी उसके तीन महीने बाद पुरी साहब को पद्मश्री दिया गया था। पुरस्कार के लिए हम राष्ट्रपति भवन गए थे। उस दौरान उनका सरल अंदाज़ एक बार फिर देखने को मिला था। हुआ यूं कि, वहां कुछ और कलाकारों को भी पुरस्कार मिलने वाला था। इस मौके पर सभी कलाकार सज-धज कर आए थे। लेकिन पुरी साहब बिल्कुल सरल तरीके से पहुंचे थे। दरअसल, उन्होंने एक फिल्म सुसमन की थी जिसे श्याम बाबू ने डायरेक्ट किया था। इसमें वो बुनकर बने थे। इसलिए वो शूटिंग के अलावा कभी-कभी बुनते भी थे। ऐसे करते हुए उन्होंने एक कपड़ा बुना था। इस कपड़े को उन्होंने श्याम बाबू, मुझे दिया था। वही बचे हुए कपड़े की खुद एक शर्ट बनवाई थी। वो पुरस्कार वितरण समारोह में यही शर्ट पहन कर पहुंचे थे। वहां पुरस्कार लेने वालों में पुरी साहब सबसे सरल नज़र आ रहे थे। वह काफी सराहनीय था चूंकि वो सरल थे और दिखावा नहीं करते थे।

ओम पुरी की सबसे खास बात आपको क्या लगती है

पद्मश्री मिलने के बाद उन्होंने हॉलीवुड फिल्म भी की। इसके बाद भी वो कभी भी छोटे रोल्स को मना नहीं करते थे। मुझे याद है कि मेरे नाटक में वो एक छोटा सा किरदार निभा रहे थे। इसको लेकर वो इतने सजग थे कि सुबह 4 बजे उठकर स्क्रिप्ट पढ़ते थे। रोल छोटा होने के बावजूद वो मुझे बिठाकर पूछते थे कि इसके बारे में और ज्यादा बताओ जिससे वो अच्छे से परफॉर्म कर सकें। इतने बड़े अभिनेता को तो यूं ही कॉन्फीडेंस आ जाता है लेकिन वो जबरदस्त अभ्यास करते थे जिससे पूरा सौ प्रतिशत दे सकें।

ओम पुरी के अभिनय को लेकर कोई अनोखी बात

वो वेटेरन एक्टर थे जिन्हें अनुभव था अलग-अलग किरदारों को निभाने का। वो कभी भी दो या चार किरदारों में नहीं सिमटे। और जब आप अलग-अलग किरदार निभाते हैं तो आप अनप्रिडिक्टेबल हो जाते हैं। मतलब, कोई आपकी नकल नहीं कर सकता, चूंकि हर बार आपका अंदाज़ अलग होगा। पुरी साहब का यही अंदाज़ था। मुझे लगता है बलराज साहनी, मोतीलाल और ओम पुरी जैसे प्रसिद्ध अभिनेता अनप्रिडेक्टेबल थे। यह क्या करने वाले हैं इसका आंकलन नहीं किया जा सकता था। एक बात और कि अगर कोई अभिनेता एक जैसे किरदार करता है तो वह प्रिडिक्टेबल होगा, यही कारण होता है कि कोई अभिनेता 15 साल बाद दर्शकों को पसंद नहीं आता। चूंकि दर्शक को पता होता है कि अभिनेता क्या करने वाला है।

फिल्म में गीतों को लेकर कोई खास बात

फिल्म को ओम छंगानी और अनूप जलोटा ने प्रोड्यूस किया है। यह अच्छी बात है कि ओम जहां एक ओर फिल्म को प्रोड्यूस कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर उन्होंने फिल्म का एक गाना भी लिखा है। चूंकि उन्हें संगीत में काफी दिलचस्पी है। फिल्म में एक दृश्य है जिसमें अनूप जलोटा शौचालय के उद्घाटन के दौरान भजन गाते हैं। इसी भजन को ओम ने लिखा है।

आज के दौर में डायरेक्टर्स कैसे हैं और कितना अच्छा कर रहे हैं

मुझे लगता है कि आज के डायरेक्टर्स बहुत प्रॉमिसिंग हैं, खास तौर पर यंग डायरेक्टर्स। नाम लें तो इम्तियाज़ अली बहुत अच्छा कर रहे हैं। खास बात यह है कि इन यंग डायरेक्टर्स के अंदर ज्ञान की पिपासा है। यह नेशनल के साथ इंटरनेशनल सिनेमा देखते हैं। वैसे तो इंटरनेशनल सिनेमा इतनी आसानी से देखने को नहीं मिलता लेकिन फेस्टिवल में शामिल होकर देखते हैं। यंग डायरेक्टर्स के पास तकनीक अच्छी और नई है। नॉलेज के साथ तकनीक का कॉम्बिनेशन काम में परफेक्शन लाता है। जरूरी बात यह है कि समाज में प्रति थोड़ी जिम्मेदारी अगर यंग डायरेक्टर्स ले लें तो मनोरंजन के साथ अच्छा संदेश भी दिया जा सकता है।

तीन तलाक को लेकर आए निर्णय पर आपकी क्या राय है

जब भी महिलाओं के हित में कोई निर्णय आता है तो मुझे खुशी होती है क्योंकि हम एक कदम आगे बढ़ते हैं। इस बार भी हम एक कदम आगे बढ़े हैं। महिला वर्ग की बात कर रहे हैं जिसमें मैं भी आती हूं। किसी संबोधन को तीन बार कहने से रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं। अभी तक महिला को वस्तु समझा जा रहा है। रिश्ता तोड़ना भी है तो उसकी एक प्रक्रिया होती है। सबसे जरूरी बात है कि पुरुष वर्ग को एजुकेट करने की जरुरत है। 

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