मार्च तक और घटेगा बैंकों का NPA
भारतीय बैंकों का ग्रॉस नॉन-परफॉर्मिंग असेट (जीएनपीए) मार्च, 2025 तक 0.4 प्रतिशत घटकर 2.4 प्रतिशत हो सकता है। इसके बाद अगले वित्त वर्ष में इसमें 0.2 प्रतिशत की और गिरावट आएगी। रेटिंग एजेंसी फिच की रिपोर्ट के अनुसार, ‘यह बात ठीक है कि असुरक्षित खुदरा ऋणों में जोखिम बढ़ रहा है, लेकिन मजबूत विकास, तेज वसूली और कर्ज को बट्टे खाते में डालने से NPA में होने वाली वृद्धि की भरपाई होने की उम्मीद है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में 50 हजार रुपये तक दिए जाने वाले पर्सनल लोन में जोखिम बढ़ रहा है। इस तरह के कर्ज गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और फिनटेक द्वारा कम आय वालों को अधिक दिया जाता है, इसलिए इस वर्ग में बड़े भारतीय बैंकों को जोखिम कम है। आरबीआई को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2024-25 में बिगड़ा हुआ ऋण अनुपात कम हो जाएगा, जिसके बाद यह वित्त वर्ष 2026 में बढ़कर लगभग तीन प्रतिशत हो जाएगा। वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में यह 2.6 प्रतिशत था।
वित्त वर्ष 2024 तक के तीन सालों में असुरक्षित पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड उधारी क्रमश: 22 प्रतिशत और 25 प्रतिशत की चक्रवृद्धि दर से बढ़े हैं। असुरक्षित ऋण से जुड़े जोखिम भार में वृद्धि के बाद, सितंबर 2024 को समाप्त पहली छमाही में यह गति क्रमश: 11 प्रतिशत और 18 प्रतिशत साल-दर-साल तक धीमी हो गई। जून, 2024 तक भारत का घरेलू ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 42.9 प्रतिशत है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कई उभरते बाजारों की तुलना में कम है।
सरकार का सब्सिडी बोझ बढ़ने का अनुमान
बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) में सरकार का सब्सिडी बोझ बढ़कर लगभग 4.1-4.2 लाख करोड़ रुपये तक हो जाने की उम्मीद है। यह वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य और उर्वरक सब्सिडी पर अधिक खर्च के कारण है। सरकार ने शुरू में वित्त वर्ष 2025 के लिए खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सहित प्रमुख सब्सिडी के लिए 3.8 लाख करोड़ रुपये का बजट अनुमान (बीई) निर्धारित किया था।
हालांकि, रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि विपणन सीजन 2025-26 के लिए रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि के बाद यह आवंटन लगभग 10 प्रतिशत से अधिक होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, भंडारण और परिवहन की उच्च लागत सब्सिडी व्यय को और बढ़ा रही है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि अकेले उर्वरक सब्सिडी के चलते ही बजट नौ से दस प्रतिशत अधिक होने की उम्मीद है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मजबूत डॉलर ने आयात लागत बढ़ा दी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि वित्त वर्ष 2026 में सब्सिडी के बोझ से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, क्योंकि सरकार द्वारा इसे तर्कसंगत बनाए जाने की उम्मीद है। ऐसे में कुल सब्सिडी बोझ घटकर चार लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जबकि खाद्य सब्सिडी में बड़ी गिरावट की उम्मीद है, जिसे 2-2.1 लाख करोड़ रुपये के बीच सीमित रखने का अनुमान है। उधर, आयात लागत के निरंतर दबाव के कारण उर्वरक सब्सिडी 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये पर रहने की उम्मीद है।
रिपोर्ट में वित्त वर्ष 25 के लिए सरकार के सकल उधारी लक्ष्य पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसे 14.01 लाख करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है, जबकि शुद्ध उधारी 11.63 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है।