
2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद का गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ेगा। लेकिन चिराग पासवान उपेंद्र कुशवाहा जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को साथ जोड़कर भाजपा चुनौती का सामना करने की तैयारी में है।

विपक्षी एकता को लेकर पटना में शुक्रवार होने जा रहे बैठक पर भाजपा के शीर्ष नेताओं की नजर है, लेकिन वे इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। भाजपा नेताओं के अनुसार विपक्षी नेताओं की बैठक सुर्खियां बटोरने के लिए तो सही है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में होने वाली जमीनी लड़ाई पर इसका कोई खास असर नहीं होगा। बैठक में हिस्सा ले रहे अधिकांश विपक्षी दलों से उनके राज्यों में भाजपा की सीधी लड़ाई है और ये विपक्षी दल अपने राज्य के बाहर एक-दूसरे की मदद करने की स्थिति में ही नहीं है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस और आप को छोड़ दें तो विपक्षी एकता की कोशिश में जुटे अधिकांश दल एक राज्य तक ही सीमित
वहीं भाजपा विरोध के नाम पर आप और कांग्रेस नेतृत्व भले ही एकता के मंच पर साथ आ जाएं, लेकिन दिल्ली और पंजाब से लेकर गोवा, गुजरात और राजस्थान तक उनके बीच एक दूसरे के वोटबैंक को लेकर तीखी लड़ाई है। सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव लेकर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी तक कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं और बिना सीट के अपने हितों को कुर्बान कर कांग्रेस विपक्षी एकता के रास्ते पर ज्यादा दूर तक जाएगी, इसमें संदेह है।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और सीपीएम के बीच गठबंधन है, लेकिन ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि सीपीएम के साथ वाले कांग्रेस के साथ उनकी दोस्ती नहीं हो सकती है। इसी तरह से कांग्रेस त्रिपुरा और असम में तृणमूल कांग्रेस को साथ लेने के लिए तैयार नहीं होंगी, जहां विस्तार के लिए ममता बनर्जी पूरी कोशिश कर रही हैं। पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ भाजपा मजबूत स्थिति में है। इसी तरह से ओडिशा, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में विपक्षी एकता की बात बेमानी है।
बीजद और वाइएसआर कांग्रेस पहले ही विपक्ष से दूर है और अब बीआरएस के के चंद्रशेखर राव ने भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली विपक्षी एकता के मंच पर आने से इनकार कर दिया है। आंध्रप्रदेश में टीडीपी भी भाजपा के साथ जाने की कोशिश में जुटी है। वहीं तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस पुराने सहयोगी हैं। लेकिन विपक्षी एकता की कोशिश में कांग्रेस और सीपीएम का एक मंच पर आना केरल का गणित बिगाड़ सकता है। दोनों पार्टियां लंबे समय से केरल में एक-दूसरे की विरोधी रही हैं, उनके एक साथ आने से विपक्ष की खाली जगह को भरने के लिए भाजपा को मौका मिल सकता है। असल विपक्षी एकता की कोशिश का प्रभाव बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में पड़ सकता है।
बिहार में भाजपा के साथ छोड़कर आए नीतीश कुमार की जदयू और तेजस्वी यादव की राजद बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद का गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ेगा। लेकिन चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को साथ जोड़कर भाजपा चुनौती का सामना करने की तैयारी में है।
इसी तरह से जदयू, राजद, कांग्रेस और झामुमो के अपने-अपने वोटबैंक के सहारे विपक्षी एकता झारखंड में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी की स्थिति में होगी। लेकिन महाराष्ट्र में इसके प्रभाव को लेकर स्थिति अभी साफ नहीं है। कांग्रेस और राकांपा पहले से यहां साथ-साथ चुनाव लड़ते आए हैं। शिवसेना के दो फाड़ होने के बाद उद्धव ठाकरे गुट के जुड़ने से उन्हें कितना फायदा होगा यह देखने की बात होगी। जाहिर तौर पर विपक्षी एकता का सीधा प्रभाव बिहार और झारखंड तक सीमित रह सकता है, जहां लोकसभा की 543 सीटों में से सिर्फ 54 सीटें ही आती हैं।