महाराष्ट्र की सियासत में नया मोड़, फड़णवीस और संजय राउत की मुलाकात से कयास तेज

नई दिल्ली। महाराष्ट्र की सियासत क्या फिर कोई नई करवट बैठने जा रही है! खासकर एक पांच सितारा होटल में शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस एवं शिवसेना नेता संजय राउत की डेढ़ घंटे की मुलाकात से ऐसे कयासों को नए सिरे से बल मिला है। हालांकि राउत एवं भाजपा की तरफ से इस मुलाकात के राजनीतिक निहितार्थ नहीं निकालने की बात कही गई है, लेकिन फड़नवीस के करीबी नेता प्रवीण दरेकर ने यह कहकर चर्चाओं को बल दिया है कि राजनीति में कुछ भी संभव है।

इंटरव्यू का बहाना नहीं आ रहा समझ

मुलाकात से पहले इसकी सूचना दोनों दलों की ओर से गुप्त रखी गई थी। बात सार्वजनिक होने पर राउत ने स्पष्टीकरण दिया कि वह शिवसेना के मुखपत्र सामना के लिए फड़णवीस का साक्षात्कार करना चाहते हैं। इसी संबंध में उनसे मिलने गए थे। बता दें कि राउत सामना के कार्यकारी संपादक हैं। बाद में भाजपा के प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने कहा कि फड़णवीस ने इस शर्त पर बिहार चुनाव के बाद सामना को साक्षात्कार देने की बात कही है कि उनकी बात बिना संपादित किए प्रकाशित की जाए।

प्रवीण दरेकर की टिप्पणी गंभीर

उपाध्ये और राउत दोनों ने कहा है कि इस मुलाकात के राजनीतिक निहितार्थ नहीं निकाले जाने चाहिए लेकिन महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता प्रवीण दरेकर ने कहा है कि राजनीति में कुछ भी संभव है। दरेकर गंभीर प्रकृति के नेता हैं। उनके इस बयान को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा और शिवसेना के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं।

कई मसलों पर महाविकास अघाड़ी में मतभेद

कोरोना काल में गठबंधन सरकार की विफलता पर हालांकि अभी भाजपा बहुत मुखर नहीं है, लेकिन आने वाले किसी चुनाव के दौरान यह मुद्दा नहीं उठेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। पांच दिन पहले पारित कृषि विधेयक सहित कई ऐसे राजनीतिक मुद्दे हैं, जिन पर शिवसेना का कांग्रेस और राकांपा के साथ कोई तालमेल नहीं बैठता. इसके बावजूद उसे इन्हीं दोनों दलों के साथ मिलकर सरकार चलानी पड़ रही है।

राउत पर टिकी निगाहें

इस विरोधाभास का दंश शीर्ष पर बैठे नेताओं से ज्यादा उन शिवसैनिकों को झेलना पड़ रहा है, जो लंबे समय से कांग्रेस-राकांपा से ही लड़ते आए हैं। चुनावों के समय यह विरोधाभास जमीनी स्तर पर शिवसेना को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। विधानसभा चुनाव के बाद राकांपा और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनवाने में राउत की भूमिका महत्तवपूर्ण रही थी। फिलहाल राज्यसभा सदस्य राउत को ही गठबंधन सरकार का शिल्पकार माना जाता है।

बीजेपी का बयान रहस्यमय

कुछ दिनों पहले ही राउत ने ट्वीट कर भाजपा-शिवसेना के संबंध सुधरने के संकेत दिए थे। अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह मुलाकात दोनों दलों के संबंधों को पुन: गठबंधन के स्तर तक ले जाने का प्रयास है? इस मुलाकात के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत दादा पाटिल ने भी यह कहकर सवाल खड़ा कर दिया है कि वर्तमान सरकार को गिराने का प्रयास हम नहीं करेंगे, लेकिन यदि यह अपने ही अंतर्विरोधों के कारण गिरी, तो आगे क्या होगा?

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