कभी दूध खरीदने तक के नहीं थे पैसे, आज बनीं वेटलिफ्टिंग वर्ल्ड चैंपियन

बचपन में जब मैंने कुंजरानी देवी को पहली बार वेटलिफ्टिंग करते हुए देखा, तो यह खेल मुझे काफी आकर्षक लगा। मैं चकित थी कि वह इतना वजन कैसे उठा पा रही हैं। इसके बाद मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं भी ऐसा करना चाहती हूं। काफी मान-मनौव्वल के बाद वे सहमत हुए। 
हमारे राज्य मणिपुर में कुंजरानी देवी की तुलना देश में टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा की लोकप्रियता से की जा सकती है। उस दौर में हर मणिपुरी लड़की उनकी तरह बनना चाहती थी। हालांकि बचपन के दिनों में पूर्वी इंफाल स्थित मेरे गांव में कोई वेटलिफ्टिंग सेंटर नहीं था और मुझे ट्रेनिंग के लिए साठ किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी।कभी दूध खरीदने तक के नहीं थे पैसे, आज बनीं वेटलिफ्टिंग वर्ल्ड चैंपियन

2007 में जब मैं तेरह साल की थी, मैंने इंफाल में प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 2011 में मैंने अंतरराष्ट्रीय यूथ चैंपियनशिप और दक्षिण एशियाई जूनियर खेलों में स्वर्ण जीता। दो साल बाद मुझे जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में सर्वश्रेष्ठ भारोत्तोलक का खिताब मिला। दरअसल वर्ष 2013 तक जूनियर स्तर की सभी प्रतियोगिताएं मेरे लिए आसान रहीं। मगर जैसे ही मैंने सीनियर स्तर पर खेलना शुरू किया, मेरे लिए चुनौतियां बढ़ती गईं। 2014 में ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में रजत जीतने के बाद मेरे आत्मविश्वास को नई ऊंचाई मिली।
 

अभावों में बीता है बचपन
इंफाल में मुझे पता था कि मुझे अपनी प्राथमिकता तय करनी होगी। जब मैं जूनियर स्तर पर खेलना शुरू कर रही थी, तब मेरे लिए बुनियादी सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं था। हमारे कोच हमें जो डाइट चार्ट देते थे, उसमें चिकन और दूध अनिवार्य हिस्सा थे। पर मेरे घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं हर दिन चार्ट के मुताबिक खाना खा सकूं। काफी समय तक मैं अपर्याप्त पोषण के बावजूद वेटलिफ्टिंग करती रही, जिसका बुरा असर मेरे खेल पर भी पड़ा। जब मैं एक गिलास दूध भी नहीं खरीद सकती थी, मैं यही सोचती थी कि जल्द ही यह वक्त गुजर जाएगा।
 

खेल छोड़ने की भी बात हुई
रियो ओलंपिक से पहले का दौर मेरे करियर में सबसे महत्वपूर्ण रहा है। उस दौरान एक वक्त ऐसा आया, जब घर की खराब आर्थिक स्थिति की वजह से यह लगा कि मैं ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाऊंगी। मेरे घर वालों ने मुझसे भारोत्तोलन छोड़ने के बारे में सोचने को भी कह दिया था। खुशकिस्मती से मैंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। भले ही मैं वहां अच्छा नहीं खेल पाई, पर विश्व चैंपियनशिप की मौजूदा जीत ने मेरे सभी पुराने दर्द भुला दिए हैं।
 

बहन की शादी में नहीं जा सकी
विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने के बाद मैंने तुरंत अपनी मां को फोन किया। मैं उनसे काफी वक्त से दूर हूं, मेरी जीत की खबर पर वह अपने भावों को रोक नहीं पाईं और खुशी के मारे चिल्लाने लगीं। इस जीत पर मुझे परिवार की खूब याद आई। खेल की वजह से मैं अपनी बहन की शादी में भी नहीं जा सकी, पर अब इस बात को लेकर किसी को मलाल नहीं है।

-विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली चानू के साक्षात्कारों पर आधारित

 

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