बाल ठाकरे और प्रमोद महाजन के फॉर्मूले पर CM का नाम तय करेगा MVA

महाराष्ट्र में वरिष्ठ नेता शरद पवार ने यह कहकर महाविकास आघाड़ी (मविआ) में सीएम पद की दौड़ पर विराम लगा दिया कि मुख्यमंत्री पद का फैसला संख्याबल के आधार पर होगा। उन्होंने यह बात भले ही मविआ गठबंधन के लिए कही हो, लेकि उनका यही फार्मूला सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति के सबसे बड़े दल भाजपा के लिए समाधानकारक हो सकता है।

शरद पवार ने सेट किया फॉर्मूला

विपक्षी मविआ गठबंधन में शिवसेना (यूबीटी) की तरह से पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ही दोबारा मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर पेश करने का दबाव डाला जा रहा था, लेकिन शरद पवार और कांग्रेस दोनों इसके लिए सहमत नहीं थे। आखिर में बुधवार को शरद पवार ने स्पष्ट कर दिया कि मविआ किसी चेहरे को आगे करके चुनाव में नहीं उतरेगी। यदि मविआ सत्ता में आने लायक सीटें जुटा सकी, तो उसमें जिस दल की सीटें अधिक होंगी, उसी का मुख्यमंत्री बनेगा।

1995 में बनी थी शिवसेना-बीजेपी सरकार

वास्तव में महाराष्ट्र की गठबंधन राजनीति में यह फॉर्मूला 1995 से चलता आ रहा है, जब राज्य में पहली बार शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी थी। तब यह फॉर्मूला शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे और बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रमोद महाजन ने मिलकर तय किया था। फिर 1999 में इसी फॉर्मूले के आधार पर कांग्रेस का मुख्यमंत्री एवं राकांपा का उपमुख्यमंत्री बना। हालांकि, 2004 में राकांपा की सीटें कांग्रेस से अधिक आईं, लेकिन तब शरद पवार ने केंद्र में अपने लिए मनचाहा मंत्रालय एवं राज्य में अपनी पार्टी के लिए कुछ मलाईदार मंत्रालय लेकर मुख्यमंत्री पद दोबारा कांग्रेस को सौंप दिया था। 2009 में कांग्रेस की सीटें फिर अधिक आईं, और उसी का मुख्यमंत्री बना। पवार इसी फॉर्मूले को आगे बढ़ाने के पक्षधर हैं।

महायुति में कौन होगा सीएम पद का चेहरा?

सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति में भी यही फॉर्मूला भाजपा के लिए समाधानकारक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि महायुति में आज भी भाजपा के विधायकों की संख्या शिवसेना (शिंदे) और राकांपा (अजीत) से लगभग दो गुनी हैं। हालांकि, महायुति में अभी किसी भी दल के किसी नेता को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने की बात नहीं उठी है।

हालांकि, प्रदेश में भाजपा का चुनाव अभियान उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के ही नेतृत्व में ही चल रहा है, जिनके चेहरे पर भाजपा 2019 का विधानसभा चुनाव लड़कर कांग्रेस, राकांपा एवं शिवसेना (तब संयुक्त) से लगभग दोगुनी सीटें जीतने में सफल रही थी। प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ता भी महायुति की सत्ता आने पर देवेंद्र फडणवीस को ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानकर काम कर रहे हैं।

एनसीपी का 55 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा

प्रदेश में दो दलों में टूट के बाद नए राजनीतिक समीकरण बनने के बावजूद शिवसेना (शिंदे) एवं राकांपा (अजीत) की सीटें भाजपा के आधे से भी कम ही हैं। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे में भी भाजपा का पलड़ा भारी रहने की ही उम्मीद है। अजीत पवार खुद अपनी पार्टी की बैठक में कह चुके हैं कि वह लगभग 55 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे। यह संख्या लगभग उतनी ही है, जितनी पिछले चुनाव में अविभाजित राकांपा जीतकर आई थी।

उम्मीद है कि लगभग इसी फॉर्मूले पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी राजी हो जाएंगे। पिछले चुनाव में अविभाजित शिवसेना 124 सीटों पर लड़कर 56 सीटें जीती थी, जबकि भाजपा 152 सीटों पर लड़कर 105 जीती थी। इस प्रकार लड़ी गई सीटों पर जीत का प्रतिशत भाजपा का ही ज्यादा था। इसी तर्क के आधार पर भाजपा इस बार भी पहले से अधिक सीटों पर लड़ने का दावा कर सकती है। ताकि महायुति गठबंधन के तीनों दल मिलकर सरकार बनाने लायक सीटें भी ला सकें, और अधिक सीटों के आधार पर भाजपा मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा भी ठोंक सके।

Back to top button