मेलजोल से होता है बच्चों का विकास, जानिए कैसे सिखाएं घुलना-मिलना

कई बच्चे स्वभाव से शर्मीले होते हैं और बाहरी दुनिया से दूर रहते हैं। कई बच्चे मोबाइल, लैपटॉप को ही अपनी दुनिया समझते हैं और पड़ोसी का नाम भी नहीं जानते। उन्हें लगता है कि वे मोबाइल के जरिये पूरी दुनिया के साथ सोशल हैं। माता-पिता के लिए यह एक चुनौती होती है, जब बच्चे दोस्त नहीं बना पाते या उन्हें सोशल होने में कठिनाई आती है। पढ़ाई, खेल-कूद के साथ बच्चों को सोशल वैल्यू देना भी जरूरी है। अगर वे चुपचाप और अकेले रहते हैं तो उनका विकास रुक जाता है। मेल-जोल से उनका प्रोत्साहन बढ़ता है, हिम्मत खुलती है और नई चीजें जानने का मौका मिलता है। इसलिए बच्चों को यह समझना जरूरी है कि मोबाइल के बाहर भी एक दुनिया है, जो जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आत्मसम्मान के लिए सामाजिक संबंध जरूरी हैं, लेकिन नए लोगों से घुलना-मिलना और बातचीत करना बच्चे के लिए काफी कठिन होता है। ऐसे में आप क्या करती हैं?
आस-पास क्या चल रहा है
कई बच्चे पहले से ही सोशल होते हैं। उन्हें लोगों से मिलना अच्छा लगता है। कई बच्चे घर में रिश्तेदार आते ही कमरे में चले जाते हैं। ऐसे में माता-पिता उनको सामाजिक गतिविधियों में शामिल करें, जैसे कि उन्हें पानी का ग्लास लाने को कहें या बड़ों का अभिवादन करना सिखाएं, ताकि उन्हें पता रहे कि आस-पास क्या चल रहा है। सामाजिक होने से बच्चे खुद को खुलकर अभिव्यक्त कर पाते हैं, जिससे आस-पास के लोग भी उनसे हमेशा खुश रहते हैं।
नए लोगों से बातचीत
कई बच्चे माता-पिता या नजदीकी लोगों के अलावा किसी अन्य से ज्यादा खुलते नहीं हैं। ऐसे में वे अंतर्मुखी रह जाते हैं और बाहरी दुनिया से उनका जुड़ाव नहीं हो पाता। आज के समय में बच्चों को एक्टिव और इंटरेक्ट होना बेहद जरूरी है। इसलिए माता-पिता, बच्चों को बात करना सिखाएं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और अकेलापन दूर होगा। बच्चों को दूसरे लोगों के साथ खुलने के लिए दोस्त बनाना सिखाएं। इसके लिए उन्हें सांस्कृतिक, एथलेटिक, धार्मिक और मनोरंजक गतिविधियों में शामिल होने को प्रेरित करें।
शेयरिंग-केयरिंग
बच्चों का मन कोरा होता है और सरल भी, मगर कई बच्चों का स्वभाव शेयरिंग-केयरिंग का नहीं होता। ऐसे में माता-पिता उन्हें दोस्तों के बीच शेयरिंग- केयरिंग करना सिखाएं। बुरे वक़्त में दोस्तों की मदद करने से बच्चों में सहयोग, सद्भावना की भावना पनपेगी। बच्चों को दोस्ती की प्रेरक कहानियां सुनाएं।
सवाल करना
कई बच्चे जो सुनते हैं, चुपचाप उसे अंदर समा लेते हैं। लेकिन अगर वे सवाल नहीं करेंगे तो उनका विकास रुक जाएगा। इसलिए माता-पिता, बच्चों को सवाल करना सिखाएं। इससे उनके अंदर जिज्ञासा उत्पन्न होगी और वे नई चीजें जान पाएंगे, किसी भी प्रतियोगिता में भाग ले पाएंगे।
ताकत को पहचानें
हर बच्चे के अंदर एक खास गुण होता है। वही उसकी ताकत है। इसलिए बच्चों से जबरदस्ती कुछ भी न कराएं। उनकी प्रतिभा को समझकर, बच्चे की ताकत क्या है, उसे जानकर ही आगे बढ़ें। माता-पिता बच्चे के गुणों को पहचानें।
बच्चों के लिए रोल मॉडल
पहले खुद सोशल बनें। माता-पिता काम के अलावा भी वक्त निकालें, बच्चों के साथ बैठें और सोशल हों, ताकि बच्चे उन्हें देखकर ये सारे गुण सीख सकें।
फैमिली रिलेशनशिप काउंसलर सुनीता परसरामका के मुताबिक, बच्चों के सोशल न बन पाने के पीछे माता-पिता भी उतने ही जिम्मेदार होते हैं, जितने कि बच्चे, क्योंकि एकल परिवार में पेरेंट्स के पास ही बच्चों के लिए वक्त नहीं है, वे खुद बच्चों के साथ सोशल नहीं हैं। दूसरी ओर, मोबाइल ने बच्चों को वर्चुअली तो सोशल बना दिया, लेकिन अपनों से दूर कर दिया। माता-पिता के लिए जरूरी है कि वे हफ्ते में एक दिन बच्चों के लिए निकालें, उन्हें बाहर की दुनिया से रूबरू कराएं। इससे उनके अंदर रिश्तों की समझ बढ़ेगी और वे सोशल बनेंगे।