MCD : ‘काम’ की अनदेखी या घमंड बीजेपी को ले डूबी

दिल्ली एमसीडी चुनाव में 134 सीटों के साथ आम आदमी पार्टी को बहुमत मिल गया है। बीजेपी भी सेंचुरी लगाते हुए 103 सीटे हासिल की है. कांग्रेस का नंबर 10 पर ही अटक कर रह गया है. जबकि अन्य के खाते में 3 सीटें आई हैं. मतलब साफ है केजरीवाल ने ’अंगद पांव’ की तरह दिल्ली एमसीडी पर कब्जा जामएं बीजेपी को उखाड़ फेंका है. इसकी बड़ी वजह दिल्ली नगर निगम में भाजपा द्वारा जनता के मनमुताबिक काम नहीं कराना है। हालांकि इसे एक युग परिवर्तन भी कहा जा सकता है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है 2014 से लगातार बम-बम कर रही ’महा पराक्रमी’ पार्टी बीजेपी की ये गत क्यों हुई? क्या कांग्रेस की शर्मनाक हार के चलते ही बीजेपी एमसीडी की सत्ता से बाहर हो गई? आखिर जिस बीजेपी को एमसीडी से कांग्रेस नहीं उखाड़ पाई थी, उसे 15 सालों बाद आम आदमी पार्टी ने कैसे धूल चटा दिया?

-सुरेश गांधी

देखा जाएं तो 2014 में बीजेपी केंद्र में आई, 2019 का चुनाव और ज्यादा वोट से जीती. पंजाब को छोड़ दे तो बाकी राज्यों में भी बीजेपी का बेहतर प्रदर्शन रहा। उसे सबसे बड़े राज्य यूपी में दोबारा जीत मिली. लेकिन अगर एक झटके में दिल्ली एमसीडी से उखड़ गयी तो सवाल तो बनता ही है कि आखिर अपने स्वर्णिम युग में जी रही बीजेपी को हार का सामना क्यों करना पड़ा है? खासतौर से तब जब परिसीमन से लेकर तीन निगमों का एकीकरण सहित पूरी ताकत झोकने के बाद भी वोट शेयर बढ़ाना तो दूर केजरीवाल की झाडू सफल कैसे हो गयी? 15 साल से एमसीडी की सत्ता में काबिज बीजेपी को बाहर का रास्ता क्यों देखना पड़ रहा है? क्या दिल्ली की साफ-सफाई जनता की अपेक्षा के मुताबिक बीजेपी नहीं करा सकी? क्या हार की बड़ी वजह एंटी इन्कमबेंसी है? क्या कूडे का पहाड़ और साफ-सफाई जैसे मुद्दे बीजेपी की नैया डूबोने में सफल रही? क्योंकि आम आदमी पार्टी व भाजपा के बीच इसी मुद्दे पर चुनाव हुआ है।

पिछले चुनाव में बीजेपी को 181 सीटें हासिल हुई थीं. इस बार कुल 250 सीटों में से 134 सीटों पर आम आदमी पार्टी की झाड़ू चल गयी। सबसे खास बात ये है कि नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी का ये सिर्फ दूसरा चुनाव है और पार्टी ने बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंका. वोट आफ परसेंटेज के लिहाज से देखें तो पिछले चुनाव में केजरीवाल की पार्टी ने 26.23 फीसदी वोट के साथ 49 सीटें हासिल की थीं. जबकि इस बार आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में भी काफी इजाफा देखने को मिल रहा है. चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार 42.36 फीसदी वोटर ने आप पर भरोसा जताया है. यह अलग बात है कि बीजेपी भले ही सत्ता से बाहर हो रही हो, लेकिन उसने तीन फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए हैं. इस बार बीजेपी 39.17 फीसदी वोट मिल रहा है. 2017 में हुए एमसीडी चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 36.08 फीसदी था.

दिल्लीवासियों की माने तो गाजीपुर में कूड़े का पहाड़, सड़कों का खराब-रखरखाव और गंदी यमुना नदी जैसे मुद्दों ने भी चुनाव में बीजेपी को खासा नुकसान पहुंचाया है. दिल्लीवासियों के लिए भीड़भाड़ की समस्या हमेशा से बुरा सपना रही है. अत्यधिक व्यावसायीकरण, अवैध निर्माण और विशेष रूप से पुरानी दिल्ली के इलाकों में संकरी गलियों में एमसीडी के काम के तरीके ने निराशा पैदा की है. बीजेपी को इन वजहों से भी लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा. दिल्ली में पार्किंग की समस्या भयंकर होती जा रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में औसतन हर दिन 548 वाहन रजिस्टर्ड होते हैं. इस वजह से पार्किंग में गाड़ी लगाना लोगों के लिए मुसीबत का सबब बनता गया. गली मोहल्लों में कूड़े का वही हाल है. एमसीडी के स्कूलों और अस्पतालों की बदहाली बदस्तूर जारी है. अवैध निर्माण जारी हैं. सबसे बड़ी बात एमसीडी में काम करने का ढर्रा नहीं बदला है. आज भी एमसीडी में आम नागरिक के लिए काम कराना, पहाड़ चढ़ने जैसा है. भ्रष्टाचार जारी है. सिस्टम सुधरा नहीं है. इस समस्या ने भी परेशान लोगों को नए विकल्प पर सोचने को मजबूर कर दिया.

केजरीवाल ने एमसीडी के स्कूल-अस्पताल के सामने अपने स्कूल और अस्पताल रखे. चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार कहा कि अगर दिल्ली सरकार के स्कूल और अस्पताल जैसे एमसीडी के स्कूल और अस्पताल चाहते हो तो आम आदमी पार्टी को वोट दो. बीजेपी लगातार कहती रही कि केजरीवाल के दावे झूठे हैं. जाहिर है दिल्ली की जनता को ये बात सच नहीं लगी कि केजरीवाल झूठ बोल रहे हैं. दिल्ली की जनता बीजेपी शासित एमसीडी से कितनी परेशान होगी, इसका अंदाजा आप इससे भी लगा लीजिए कि उसने बड़ा रिस्क लिया है. भले ही दिल्ली में केजरीवाल की सरकार हो, भले ही कल एमसीडी पर आम आदमी पार्टी का कब्जा हो लेकिन असल ताकत अब भी केंद्र के पास रहेगी. तो दिल्ली की जनता ने इस आशंका के बावजूद आम आदमी पार्टी को एमसीडी में बिठाया है कि कल को केंद्र और दिल्ली के बीच ठनी तो काम अटकेगा। संसद में जब एमसीडी के एकीकरण पर बहस चल रही थी तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बड़े-बड़े दावे किए. उनकी बातों को फेस वैल्यू पर लेंगे तो लगेगा कि दिल्ली चमन बन गई है, लेकिन सच ये नहीं है.

बीजेपी ने 2019 में वादा किया था कि पीएम उदय योजना के तहत दिल्ली के 40 लाख लोगों को उनके मकानों का मालिकाना हक दिया जाएगा. लेकिन योजना के ऐलान के 3 साल बाद भी सिर्फ 14 हजार लोगों को इसका फायदा मिला. 2022 चुनाव से पहले उसी योजना की रिपैकेजिंग कर दी गई और खूब बेचा गया. रिपैकेजिंग की रवायत है कि उसका चेहरा मोहरा बदल दिया जाए. लिहाजा इस बार बीजेपी ने 50 लाख लोगों को मालिकाना हक देने का वादा किया. लेकिन पब्लिक पॉलिटिकल रिपैकेजिंग की चाल को समझ चुकी है. केंद्र के चुनाव में वोटर के पास शायद विपक्ष से कोई विकल्प नहीं मिलता, लेकिन हमने देखा है कि एमसीडी जैसा हाल कई राज्यों के चुनावों में हुआ है. दिल्ली में प्रदूषण की समस्या कितना गंभीर रूप ले चुकी है, यह अब बताने की जरूरत नहीं है. बीजेपी और आम आदमी पार्टी इसके लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाती रही हैं. आप एमसीडी को दोष देती है, जबकि बीजेपी सरकार पर कुछ नहीं करने का आरोप लगाती है. लेकिन दोषारोपण में नुकसान दिल्ली वालों का ही होता रहा. दिल्ली के स्कूलों की बेहतर स्थिति और बिजली व पानी पर आम आदमी पार्टी की सब्सिडी ने भी आम आदमी पार्टी को काफी फायदा पहुंचाया. इस कारण भी बीजेपी को खासा नुकसान पहुंचा और आम आदमी पार्टी को जीत नसीब हुई.

इस चुनाव में कांग्रेस की हालत काफी बुरी नजर आ रही है. पिछले 2 विधानसभा चुनावों की तरह एमसीडी चुनाव में भी कांग्रेस की हालत खस्ता है. पिछले चुनाव को देखें तो कांग्रेस पार्टी ने 21.09 फीसदी वोट प्रतिशत के साथ 31 सीटें हासिल की थीं, इस बार पार्टी को 10 सीटें भी मुश्किल से जीती है. पार्टी के वोट प्रतिशत में भी जबरदस्त गिरावट देखने को मिली है. इस बार तकरीबन 12 फीसदी वोटर ने ही कांग्रेस पर भरोसा जताया है. दरअसल कांग्रेस, बीएसपी और निर्दलीय उम्मीदवारों का जितना वोट शेयर घटा है, उतना ही आम आदमी पार्टी का बढ़ा है. लेकिन गौर करने वाली बात है कि गैर बीजेपी वोटर ने आम आदमी पार्टी की तरफ जाना तय किया. कजेरीवाल का कहना है कि दिल्ली के लोगों ने बड़ा मैसेज दिया है। पॉजिटिव राजनीति करो, नैगेटिव राजनीति नहीं करनी। जनता के बीच जाकर कहते हैं कि आपके बच्चों के लिए स्कूल, परिवार के लिए इलाज का इंतजाम किया है। हम गाली गलौच नहीं करते। मेरा दिल कहता है कि पॉजिटिव राजनीति बढ़ेगी, तो देश दुनिया का नंबर 1 देश बनेगा। गुंगागर्दी, लफंगई से देश आगे नहीं बढ़ेगा। 75 साल से पीछे है। अब टाइम नहीं है। विकास और पॉजिटिव की राजनीति करनी पड़ेगी। दिल्ली के लोगों को बधाई। सबसे कहता हूं कि अहंकार मत करना। बड़ी-बड़ी सत्ता गिर गई है। कई सारे पार्षद, विधायक, मंत्री बने हैं, कोई अहंकार नहीं करे, अहंकार किया, तो ऊपर वाला माफ नहीं करेगा।

2015 के विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार में भाग लिया था। इसके बाद 2020 में पीएम मोदी आगे नहीं आए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रैलियां और रोड शो किए थे। एमसीडी चुनाव में मोदी और शाह, दोनों ही प्रत्यक्ष तौर पर वोटरों के बीच नहीं आए। चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल ने कहा था कि भाजपा के सात मुख्यमंत्री, एक डिप्टी सीएम और 17 से ज्यादा केंद्रीय मंत्री दिल्ली में प्रचार कर रहे हैं। मैं अकेला घूम रहा हूं। दिल्ली के लोग मुद्दों पर वोट करेंगे, सत्येंद्र जैन के वीडियो या केंद्रीय मंत्रियों की टोली को देखकर अपन मन नहीं बदलेंगे। आप नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा, भाजपा के पास कोई मुद्दा ही नहीं है। दिल्ली वालों को महंगाई, प्रदूषण व कूड़े के पहाड़ से कैसे निजात मिलेगी। स्कूल और अस्पताल कैसे बनेंगे, भाजपा यह नहीं बता रही है। खुद केजरीवाल ने लोगों के बीच भाजपा को चुनौती दी थी कि एमसीडी में 15 साल शासन करने वाली भाजपा, कोई एक काम गिना दे, जो उसने कराया हो।

हालांकि, इधर जमीन पर कुड़े के ढेर, गंदगी और गली मोहल्लों में अव्यवस्था पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा था। बीजेपी के नेताओं को लगा कि वह केजरीवाल विरोधी हवा बना कर एमसीडी चुनाव जीत जाएंगे, लेकिन शायद दिल्ली की जनता ने जमीन पर दिख रहे मुद्दों पर वोट किया और केजरीवाल इसमें बाजी मार गए। दिल्ली की सातों सीट पर बीजेपी के ही सांसद हैं और इनमें कई बड़े चेहरे हैं। पार्टी कार्यकर्ता से लेकर आम जनता जहां विधायक उनकी पार्टी के हैं नहीं सांसदों से भी उनका जुड़ाव नहीं हो पाता है। पार्टी के जिस सांसद की ओर से लगातार इलाके में बेहतर कार्य किए गए और जनता से जुड़ाव रहा वहां पार्टी को फायदा हुआ। इसका सीधा उदाहरण गौतम गंभीर हैं। गौतम गंभीर के इलाके में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। गौतम गंभीर की ओर से इलाके में 1 रुपये में पेट भर खाना खिलाया जाता है और इसकी काफी चर्चा होती है। गौतम गंभीर इसके अलावा कई मौकों पर केजरीवाल सरकार पर हमलावर भी रहते हैं। पार्टी के विधायक न होने और सांसदों की दूरी की वजह से पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ा।

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