महाभारत और पुराणों के रचयिता थे महर्षि वेदव्यास, पढ़ें इनके जन्म से जुड़ी कथा

आज यानी 21 जुलाई 2024 को बेहद उत्साह के साथ गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि पर महाकाव्य रचियता ऋषि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसी वजह से इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। 

गुरु पूर्णिमा व्रत कथा (Guru Purnima Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक बार भ्रमण के लिए महर्षि पराशर निकले थे। इस दौरान उनकी नजर एक महिला पर पड़ी, जिसका नाम सत्यवती था। वह एक मछुआरे की बेटी थी, वह अधिक खूबसूरत थी। उसके शरीर में से मछली की गंध आती रहती थी, क्योंकि उसका जन्म मछुआरे के घर हुआ था। इसलिए उन्हें मत्स्यगंधा भी कहा जाता था। ऋषि उसे देखकर व्याकुल हो गए, लेकिन पराशर ऋषि ने सत्यवती से संतान प्रदान करने की इच्छा जाहिर की।

ऋषि की ये बात सुनकर सत्यवती ने अधिक आश्चर्यचकित होकर कहा कि मैं इस तरह से अनैतिक संबंध कैसे बना सकती हूं। इस तरह से संतान का जन्म लेना व्यर्थ है। ऐसे में ऋषि ने कहा कि जो संतान तुम्हारी कोख से जन्म लेगी। वह पूरे संसार के लिए महान काम करेगी। ऋषि की बात को सत्यवती ने मान लिया, लेकिन उसनें पहले ऋषि के सामने अपनी तीन शर्त रखी। पहली शर्त यह कि संभोग क्रीडा करते समय कोई न देखें। दूसरी शर्त में कहा कि होने वाला बच्चा महान ज्ञानी होने के साथ मेरी कौमार्यता को जीवन में कभी भंग न करे। वहीं, तीसरी शर्त थी कि शरीर से आने वाली गंध फूलों की खुशबू में बदल जाएं। इसके बाद सत्यवती की कोख से एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम द्वैपायन रखा था जो आगे चलकर वेदव्यास कहलाएं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ माह की पूर्णिमा को हुआ। उन्हें महाभारत, अठारह पुराणों, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय वैदिक साहित्य दर्शन के रचयिता माना जाता है।

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