भगवान शिव को प्रिय है रुद्राक्ष, जानें कैसे हुए इसकी उत्पत्ति? पढ़ें रोचक कथा

सनातन धर्म में रुद्राक्ष का अधिक महत्व है। भगवान शिव को रुद्राक्ष प्रिय है। धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से जातक पर देवों के देव महादेव की कृपा सदैव बनी रहती है। रुद्राक्ष की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं मौजूद हैं। आइए जानते हैं कि किस तरह हुई रुद्राक्ष (Rudraksh Origin) की उत्पत्ति?

इस तरह हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति
प्राचीन कथा के अनुसार, एक त्रिपुरासुर नामक दैत्य था। उसे अपनी शक्ति का अधिक घमंड था। इसलिए उसने पृथ्वी के साथ देव लोक में भी हाहाकार मचा दिया था। उसे कोई भी देवी-देवता और अस्त्र परास्त नहीं कर पा रहे थे, जिस कारण देवी-देवता भगवान शिव के पास अपनी प्रार्थना लेकर पहुंचे। जब देवी-देवता कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो उस दौरान भगवान महादेव योग मुद्रा में अपने नेत्रों को बंद कर तप कर रहे थे, जब प्रभु ने नेत्र खोला तब उनकी आंखों से कुछ अश्रु छलक कर धरती पर गिर गए। शिव के इन आंसू से रुद्राक्ष के पेड़ का जन्म हुआ। मान्यता है कि जिस जगह पर महादेव के आंसू गिरे, वहां पर रुद्राक्ष के पेड़ उग आए। इसलिए रुद्राक्ष को भगवान शिव के तीसरे नेत्र का स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना की जाती है। इसी तरह रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।

इस दिन धारण कर सकते हैं रुद्राक्ष
रुद्राक्ष को धारण करने के लिए नियमों का पालन करना चाहिए। अगर आप रुद्राक्ष की माला पहनना चाहते हैं, तो इसके लिए शुभ दिन श्रावण सोमवार, शिवरात्रि, अमावस्या और पूर्णिमा है। रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व इसे सरसों के तेल और दूध से साफ कर लें। इसके बाद ‘ओम नमः शिवाय मंत्र’ मंत्र जाप के साथ रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

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